जयपुर :भारत में महिलाओं के सम्मान और योगदान की गौरवशाली परंपरा रही है. चाहे माता सीता, रानी लक्ष्मी बाई हों या देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, इन सभी ने समाज में अपनी अमिट छाप छोड़ी. इसके बावजूद आज भी महिलाएं सम्मान और समानता के लिए संघर्ष कर रही हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को बढ़ावा देने के लिए हर साल 25 नवंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ मनाया जाता है. राजस्थान में यह दिवस सामाजिक संगठनों द्वारा पखवाड़े के रूप में मनाया जाता है. इस दौरान महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकने और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
महिला हिंसा के आंकड़ों में सुधार :राजस्थान में महिला अपराध के आंकड़े हालिया वर्षों में कम हुए हैं. राज्य क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2022 में अगस्त तक महिला अपराधों के कुल मामले 31,188 थे, जो 2023 में घटकर 30,343 हो गए. वहीं, 2024 में ये आंकड़ा और गिरकर 28,112 पर पहुंच गया.
अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (ETV Bharat Jaipur) इसे भी पढ़ें-महिला हिंसा उन्मूलन दिवस: सीकर में चार साल में पांच गुना बढ़ी महिला हिंसा
‘मान द वैल्यू फाउंडेशन’ की संरक्षिका डॉ. मनीषा सिंह का कहना है कि इस पखवाड़े के जरिए महिलाओं के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इनका उद्देश्य महिलाओं में नारीवादी सोच विकसित करना, शिक्षा को बढ़ावा देना और उनके अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करना है. उन्होंने कहा कि "राजस्थान ऐतिहासिक रूप से महिला सम्मान के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में बढ़ते महिला अपराधों ने हमें शर्मसार किया. हालांकि, अब आंकड़ों में आई कमी राहत की बात है. महिलाओं को सुरक्षित माहौल देकर उन्हें प्रदेश की प्रगति में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करना चाहिए." मीरा बाई, पन्ना धाय, और पद्मिनी जैसी महिलाओं के योगदान को राजस्थान कभी नहीं भूल सकता. ये उदाहरण आज भी महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा हैं.
महिला हिंसा के आंकड़े (ETV Bharat GFX) महिला हिंसा उन्मूलन दिवस का इतिहास :सामाजिक कार्यकर्ता अनिता माथुर बताती हैं कि 25 नवंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ के रूप में 1999 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित किया गया. इस दिन का उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करना और उनके बुनियादी अधिकारों व लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता बढ़ाना है. महिला कार्यकर्ता निशा सिद्धू का कहना है कि महिलाओं ने भले ही कई उपलब्धियां हासिल की हों, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. कई कानून बन चुके हैं, लेकिन उनका प्रभावी क्रियान्वयन अभी भी चुनौती है. उन्होंने यह भी कहा कि महिला हिंसा के आंकड़ों में कमी उत्साहजनक है, लेकिन सरकार को और ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि यह बदलाव स्थायी बने. महिला हिंसा उन्मूलन दिवस और इसके पखवाड़े के जरिए महिलाओं के अधिकारों, सम्मान, और सुरक्षा को लेकर उठाए गए ये कदम समाज में सकारात्मक बदलाव का संकेत हैं.