राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / state

दक्षिणी राजस्थान में किसान और ग्रामीणों की आय बढ़ाने की पहल, स्थानीय फलों से तैयार होंगे हेल्दी उत्पाद - HEALTHY PRODUCTS FROM LOCAL FRUITS

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में किसानों और ग्रामीणों की आय बढ़ाने के लिए स्थानीय फलों से नए उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं.

HEALTHY PRODUCTS FROM LOCAL FRUITS
किसान और ग्रामीणों की बढ़ेगी आय (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 15, 2025, 11:33 AM IST

उदयपुर :दक्षिणी राजस्थान के किसानों और ग्रामीणों की आय को बढ़ावा देने के लिए अब उदयपुर स्थित महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) के डेयरी कॉलेज में स्थानीय फलों के जैम, अचार और पाउडर जैसे उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. इस शोध का उद्देश्य ग्रामीणों और किसानों की आय में वृद्धि करना और उन्हें नए स्रोतों से लाभ पहुंचाना है. इसके तहत विश्वविद्यालय में रिसर्च की जा रही है, जिसके अंतर्गत दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में उगने वाले फलों और सब्जियों के व्यावसायिक उत्पादों का विकास किया जा रहा है.

यह महत्वपूर्ण पहल महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के डेयरी और खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डॉ. निकिता वधावन के नेतृत्व में चल रही है. इस परियोजना को केंद्रीय कृषि विकास योजना द्वारा पोषित किया जा रहा है. परियोजना का मुख्य उद्देश्य दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी इलाकों में उगने वाले फलों जैसे कैर, गोंदी, बेल, आंवला, काला जामुन, खेजड़ी, बोरदी, झाड़ बेर, पीलू और बेर आदि के उत्पाद तैयार करना है.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की पहल (ETV Bharat Udaipur)

इसे भी पढ़ें-राजस्थान का यह छोटा सा गांव बना मिनी इजरायल, 11 साल में 40 किसान बने करोड़पति

डॉ. निकिता वधावन ने बताया कि इन स्थानीय फलों के व्यावसायिक उत्पादों के विकास से न केवल कुपोषण से बचाव होगा, बल्कि ग्रामीण समुदायों के लिए आय का नया स्रोत भी उत्पन्न होगा. इसके अलावा इन फलों से जैम, अचार और पाउडर जैसे नए उत्पाद बनाने से कृषि-जैव विविधता का संरक्षण होगा और आदिवासी महिलाएं अपने आर्थिक स्तर को सुधार सकेंगी. इन खाद्य पदार्थों का व्यवसायीकरण किया जाएगा, जिससे ग्रामीण महिलाओं को अतिरिक्त आमदनी का अवसर मिलेगा.

आदिवासी अंचलों में पोषण और प्रशिक्षण :इस परियोजना के पहले चरण में आदिवासी अंचलों के निवासियों का पोषण मूल्यांकन किया जा रहा है. इसके साथ ही विभिन्न कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है, ताकि ग्रामीणों को इन फलों के महत्व और उनके उत्पाद तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी मिल सके. समानांतर रूप से प्रशिक्षकों को भी इस विषय पर शिक्षा दी जा रही है, ताकि वे अपने समुदाय को सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकें.

ग्रामीणों की आय बढ़ाने की पहल (ETV Bharat Udaipur)

दक्षिणी राजस्थान अपनी विविध वनस्पति और अनोखे जलवायु के लिए जाना जाता है. यहां विभिन्न प्रकार के देसी फल और सब्जियां पाई जाती हैं, जो विशेष रूप से इस क्षेत्र के मौसम में उगती हैं. इन फलों का विशेष महत्व है, क्योंकि ये न केवल स्वाद में लाजवाब होते हैं, बल्कि पोषण के मामले में भी अत्यधिक लाभकारी होते हैं. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के डेयरी और खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में ऐसे ही स्थानीय फलों के विभिन्न मूल्यवर्धक उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. इसके तहत, सीताफल, इमली, आंवला, काला जामुन जैसे कई महत्वपूर्ण फल शामिल हैं.

इसे भी पढ़ें-भरतपुर: किसान तेजवीर सिंह ने तरबूज की खेती से कमाया लाखों का मुनाफा, बने प्रेरणा स्रोत

सीताफल :सीताफल जो विशेष रूप से दक्षिण राजस्थान में पाया जाता है, एक उष्णकटिबंधीय फल है. इसका मीठा और मलाईदार गूदा गर्मी के मौसम में बहुत लोकप्रिय होता है. डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में सीताफल के गूदे से विभिन्न उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. इसके अलावा, इसके गूदे को सुखाकर बारीक पाउडर भी बनाया जाता है, जिसे अन्य खाद्य पदार्थों में उपयोग किया जा सकता है.

स्थानीय फलों से बनेंगे हल्दी उत्पाद (ETV Bharat Udaipur)

इमली :इमली का पेड़ दक्षिण राजस्थान की सूखी और अर्ध-रेगिस्तानी जलवायु में उगता है. इसका खट्टा गूदा स्थानीय व्यं जनों में प्रमुखता से उपयोग किया जाता है. इमली उच्च फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होती है, जो पाचन क्रिया को सुधारने में मदद करती है. इसके अलावा यह खट्टा-मीठा स्वाद सूप, चटनी, दाल और करी में एक खास स्वाद जोड़ता है. डेयरी और खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में इमली से कैंडी, शरबत और चटनी जैसे उत्पाद बनाए जा रहे हैं.

इसे भी पढ़ें-किसानों के लिए बड़ी राहत, फसल बीमा योजना में अब सब्जियां भी शामिल, 31 दिसंबर तक करवाएं बीमा

आंवला :आंवला को भारतीय गूसबेरी भी कहा जाता है. यह राजस्थान के जंगलों और ग्रामीण इलाकों में पाया जाता है. यह फल अपने खट्टे मीठे स्वाद और विटामिन सी की प्रचुर मात्रा के लिए प्रसिद्ध है. आंवला पाचन को बेहतर बनाता है. ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. यह खट्टा-मीठा स्वाद सबको पसंद आता है और इससे मुरब्बा, जूस, कैंडी, आचार, और चटनी जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं.

काला जामुन :काला जामुन, जिसे ब्लैक प्लम या जाम्बुल भी कहा जाता है. यह एक मौसमी फल है जो गहरे बैंगनी या काले रंग का होता है. यह फल स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है. काला जामुन का सेवन ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने, पाचन सुधारने और एनीमिया से बचने में मदद करता है. इसके बीजों का पाउडर आयुर्वेद में डायबिटीज के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है. काला जामुन से सिरका, जूस, जैम और शर्बत जैसे उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं.

इसे भी पढ़ें-रबी के सीजन में मिलेगी किसानों को सहकार जीवन सुरक्षा, डेढ़ साल बाद बीमा के दायरे में आए किसान

बेर का स्वास्थ्य पेय :इस परियोजना के अंतर्गत बेर से एक स्वास्थ्य पेय पदार्थ तैयार किया जाएगा, जिसे विकसित प्रोबायोटिक कार्बोनेटेड बेर फ्रूट आरटीएस (रेडी टू सर्व) कहा जाएगा. यह स्वास्थ्यवर्धक पेय पदार्थ तेजी से बढ़ते उपभोक्ता बाजार में अपनी जगह बना सकता है, खासकर उन लोगों के बीच जो शाकाहारी जीवनशैली को अपनाने के साथ-साथ स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं. इस पेय का लैक्टोज असहिष्णुता, कम वसा और कम कोलेस्ट्रॉल वाले उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने में भी मदद मिलेगी.

महिलाओं को मिलेगा रोजगार :डॉ. निकिता वधावन ने बताया किइस परियोजना से आदिवासी अंचल में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे. महिलाओं को इन फलों के संग्रहण, प्रसंस्करण और बिक्री के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा, जिससे उन्हें स्थायी आजीविका प्राप्त हो सकेगी. वे अचार, जैम और सूखे फल जैसे मूल्यवर्धित उत्पाद तैयार करने में मदद करेंगी. इसके साथ ही, राजस्थान की शुष्क और अर्ध-शुष्क परिस्थितियों में इन फलों की खेती आसानी से हो सकती है, जिससे इनकी खपत बढ़ेगी और जंगलों का संरक्षण होगा.

इसे भी पढ़ें-Rajasthan: इजराइल-हमास युद्ध का बड़ा नुकसान उठा रहा किसान, धान की खेती में रोजाना 10 करोड़ का घाटा

डॉ. वधावन ने कहा कि इस शोध और परियोजना के माध्यम से न केवल दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी और ग्रामीण समुदायों को आर्थिक सहायता मिलेगी, बल्कि स्थानीय कृषि और जैव विविधता का भी संरक्षण होगा. इन स्थानीय फलों से बने उत्पादों की बढ़ती मांग और व्यावसायीकरण से ग्रामीण और आदिवासी महिलाएं अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकेंगी. यह पहल राजस्थान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है और भविष्य में इस क्षेत्र के किसानों और ग्रामीणों के लिए एक स्थायी आय का स्रोत बन सकती है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details