इंदौर। आपके उपयोग की हर चीज जिसे आप अधिकतम खुदरा मूल्य या मैक्सिमम रिटेल प्राइस पर खरीदते हैं. वास्तविकता में उसकी कीमत काफी कम होती है, लेकिन उपभोक्ता से ज्यादा से ज्यादा कमाने के लालच में तमाम तरह के प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियां कई दशकों से अपने विभिन्न उत्पादों पर लागत से भी ज्यादा के रेट प्रिंट करके ग्राहकों को ठगने में जुटी हैं. पहली बार इंदौर से अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत द्वारा भारत सरकार को इस स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए एमआरपी के साथ फर्स्ट सेलिंग प्राइस यानी की एफएसपी भी प्रिंट कराने की मुहिम शुरू की गई है, जिससे कि उपभोक्ता अधिकतम मूल्य देने की बजाय संबंधित उत्पाद या सामग्री को उसके वास्तविक मूल्य के हिसाब से खरीद सके.
डिस्काउंट के नाम पर धोखा
देश भर में उत्पादों पर मिलने वाले 80% से 90% डिस्काउंट को लेकर भी यही स्थिति है, जिसमें उत्पाद के मूल्य बढ़ाकर उसे डिस्काउंट पर दिया जाता है. अब ग्राहक पंचायत की कोशिश यह है कि भारत सरकार एक नई नीति बनाए, जिससे कि किसी भी उत्पाद का सही मूल्य निर्धारण किया जा सके. जिसमें कच्चा माल तैयार करने से लेकर उसके खर्च जोड़ने के बाद एक निश्चित कीमत लिखी जाए. इसका निर्धारण सरकार की निगरानी में किया जाए.
मूल्य निर्धारण की नहीं है पारदर्शी प्रक्रिया
दरअसल, देश भर में वस्तुओं के मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है. इसके अलावा इस पर भारत सरकार का भी प्रभावी नियंत्रण नहीं है. यही वजह है कि तमाम तरह की कंपनियां अपने द्वारा बनाए जाने वाले उत्पाद के मूल्य खुद ही निर्धारित करती रही हैं. इसके बाद मैक्सिमम रिटेल प्राइस यानी अधिकतम खुदरा मूल्य पर वस्तुएं बेची जाती हैं, लेकिन यह मूल्य भी संबंधित उत्पाद की वास्तविक कीमत से दोगुने के बराबर होता है. जाहिर है इस स्थिति से उपभोक्ताओं को हर उत्पाद पर ज्यादा कीमत चुकानी होती है. उपभोक्ताओं को एमआरपी के निर्धारण की कोई जानकारी नहीं होती है इस वजह से उन्हे ज्यादा कीमतें देनी पड़ती हैं. ये सबसे ज्यादा दवाओं पर देखने को मिलता है.