हाजीपुर लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी का जमानत जब्त होने से बचा (ETV Bharat) वैशाली: बिहार के वैशाली जिले के हाजीपुर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से लोजपा आर के टिकट पर एनडीए प्रत्याशी चिराग पासवान लगातार बढ़त बनाए हुए हैं, जिससे चिराग के खेमे में खुशी की लहर है. वहीं राजद की टिकट पर चुनाव लड़ रहे शिवचंद्र राम दूसरे नंबर पर हैं. राजद के खेमे में जाहिर है मायूसी होगी. लेकिन इसी बीच एक तीसरा खेमा भी है जो अपनी जमानत बचाने को लेकर भी काफी टेंशन में है. यही नहीं चिराग पासवान और शिवचंद्र राम के बाद तीसरे नंबर पर चल रहे निर्दलीय प्रत्याशी सुरेंद्र कुमार पासवान इस बात से भी बेहद खुश है कि जनता उनका जमानत बचा देगी.
सुरेंद्र पासवान का जमानत बचा: मिली जानकारी के अनुसार, सुरेंद्र कुमार पासवान का 12 हजार 500 सौ रुपया बचने वाला है, जिसका आभार व्यक्त करने वह जनता के बीच जाएंगे. हाजीपुर के आर्य कॉलेज में मतगणना के दौरान सुरेंद्र कुमार पासवान ने बताया कि मैं हाजीपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी हूं. मुझे टेंशन था कि मैं किस स्थान पर आउंगा. लेकिन जनता के आशिर्वाद से मैं तीसरा स्थान पर हूं. मेरा जमानत निश्चित बचेगा. जनता बच्चा देगी. पहले जीत हार का टेंशन था अब है की जमानत बचे और हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र का सम्मान प्यार मिले. जमानत बचता है तो अगली बार फिर तैयारी करेंगे.
"चुनाव का नॉमिनेशन फीस 12 हजार 500 वापस होता है. हम लोग जमीनी नेता हैं हम लोग समाज के सुख-दुख में रहते हैं. हम लोग कोई हवा हवाई है नहीं. जमीनी स्तर से होने के कारण हम लोग एक-एक पैसा को देखकर चलना पड़ता है. जनता को भी यह चीज सोचना चाहिए जमीनी नेता कौन है और किसको सपोर्ट करना चाहिए. इसीलिए हम लोगों को टेंशन रहता है. जीत तो अलग बात है, जनता जमानत बचा ले तीसरा स्थान पर लाकर वही बड़ी बात है. इसलिए मैं जनता के बीच जाकर उनका आशीर्वाद मागूंगा." - सुरेंद्र कुमार पासवान, निर्दलीय प्रत्याशी
हाजीपुर में चिराग Vs शिवचंद्र राम :बता दें कि हाजीपुर लोकसभा संसदीय सीट से एनडीए प्रत्याशी चिराग पासवान को राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे शिवचंद्र राम कड़ी टक्कर दे रहे हैं. दोनों ही नेताओं के अपने-अपने दावे हैं. हाजीपुर सीट को रामविलास पासवान के परिवार की परंपरागत सीट भी कहा जा सकता है. ऐसा इसलिए कि इस सीट से रामविलास पासवान ने 1977, 1980, 1989, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में जीत दर्ज की वहीं 2019 में उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने महागठबंधन की चुनौती को ध्वस्त करते हुए विजय पताका लहराई.
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