चंडीगढ़: हरियाणा के जिला हिसार-हांसी, विशेषकर ग्रामीणों का 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय योगदान रहा है. हिसार देश का ऐसा पहला नगर था जहां देशभक्तों को दिन-दहाड़े सरेआम गोली मारकर हत्या की गई थी. भरी कचहरी में जब डिप्टी कलेक्टर बेडर्नबर्न को कोर्ट रूम में गोली मारी गई थी तो जनक्रांति का बिगुल बज गया था. इसके बाद ब्रिटिश शासन के विरुद्ध मोर्चा खोला गया था.
परंपरागत हथियारों से लड़ाई लड़ी:ग्रामीणों ने अपने परंपरागत हथियारों जैली, बर्छी, भाला, तलवार, कुल्हाड़ी व गंडासी आदि से ब्रिटिश सैनिकों के विरूद्ध लड़ाईयां लड़ी. यही कारण रहा कि उन्हें अंग्रेजों की यातनाओं और बर्बरता का शिकार होना पड़ा. 19 अगस्त 1857 को हिसार किले में नागोरी गेट की लड़ाई में यहां के मंगाली, रोहनात, पुठ्ठी मंगल खां, जमालपुर, हाजमपुर, बलियाली, भाटला आदि गांवों के सैंकड़ों देशभक्त शहीद हुए. वहीं, 260 बहादुर घायल हुए. जबकि एक बेमिसाल शहादत की घटना भी है. बचे हुए वीरों को उन्हीं के गांवों में वृक्षों पर फांसी पर लटका दिया गया. सैंकड़ों लोगों को काले पानी की सजा देकर अंडमान-निकोबार भेजा गया. यहां तक की शहीदों के खून से लाल हुई हांसी की एक सड़क आज भी ‘लाल सड़क’ के नाम से जानी जाती है.
तोपों के साथ हमला:अंग्रेजी सेना ने तोपों के साथ पुठी मंगल खां और गांव रोहनात पर हमला किया. तोपें लगाकर गांव को उड़ा दिया गया. जिसमें सैंकड़ों क्रांतिकारी ग्रामीण शहीद हुए. पुठी मंगल खां के मुखिया मंगल खां को फांसी दे दी गई. इसके अलावा अंग्रेजों ने रोहनात, मंगाली, जमालपुर, हाजमपुर व पुठी मंगल खां गांवों को नीलाम कर दिया और किसानों से उनकी जमीन छीनकर मालिकाना हक से बेदखल कर दिया.
592 जांबाज सिपाहियों ने हिस्सा लिया:नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के आह्वान पर आजाद हिंद फौज में हिसार के 592 जांबाज सिपाहियों ने हिस्सा लिया. इनमें से 53 अधिकारी व सिपाही देश की आजादी की लड़ाई में शहीद हुए. पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने सन् 1886 से 1892 तक हिसार को अपनी कर्मभूमि बनाया. यही से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, पंडित जवाहर लाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय और सरोजिनी नायडू ने अनेक जनसभाओं को संबोधित किया.
जांबाजों ने दिया सर्वोच्च बलिदान: जांबाजों ने राष्ट्र सेवा, सहयोग, सामर्थ्य, शक्ति, शौर्य एवं बलिदान का अनूठा इतिहास रचा है. हिसार के वीरों ने आजादी से पहले, आजादी के समय और आजादी के बाद भी देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिए. स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हिसार वासियों के समर्थन व त्याग को सदैव याद रखा जाएगा.