शिमला: भारत को ब्रिटिश हुकूमत के शासन से आजादी मिले अब आठ दशक बीतने वाले हैं. देश की आजादी के आसपास जन्मी पीढ़ी उम्र की ढलान पर है. नई पीढ़ी को भारत की स्वतंत्रता के साथ-साथ देश विभाजन से जुड़ी तथ्यात्मक जानकारियां होनी चाहिए. इतिहास से ही वर्तमान है और वर्तमान ही भविष्य की नींव रखता है. देश के नक्शे में शिमला का स्थान अहम है और इसी पर्वतीय शहर में ब्रिटिश हुकूमत के सबसे बड़े नाम यानी वायसराय रहते थे. वे जिस इमारत में रहते थे, उसका नाम तब वाइसरीगल लॉज था. आजादी के बाद ये इमारत राष्ट्रपति निवास बनी और फिर बाद में देश के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस इमारत को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में तब्दील कर दिया. इसी इमारत में देश की स्वतंत्रता से जुड़ी एक एक हलचल दर्ज है.
1945 में शिमला कॉन्फ्रेंस, फिर कैबिनेट मिशन की मीटिंग
ये इमारत 1884 में बनना शुरू हुई थी. चार साल निर्माण कार्य चलता रहा. वर्ष 1888 में ये इमारत बनकर पूरी हुई. इसी इमारत में वर्ष 1945 में शिमला कान्फ्रेंस हुई थी. उसके बाद वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन की मीटिंग हुई, जिसमें देश की आजादी के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई थी. इस बैठक में जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद सहित कई अन्य नेता शामिल थे. महात्मा गांधी भी उस दौरान शिमला में थे, लेकिन वे वायसरीगल लॉज में हो रही बैठकों में शामिल नहीं हुए थे. अलबत्ता वे शिमला में ही एक स्थान पर कांग्रेस के नेताओं को सलाह आदि देते रहे थे. देश की आजादी से पूर्व की दो महत्वपूर्ण बैठकों के ब्यौरे से पहले यहां इस इमारत के संक्षिप्त इतिहास को जानना जरूरी है. नई सदी यानी वर्ष 2000 के बाद जन्मी पीढ़ी इस समय युवा अवस्था में है. उनमें से अधिकांश को शायद ही मालूम होगा कि देश की आजादी और विभाजन से जुड़े तमाम दस्तावेजों पर एक इमारत में चर्चा हुई होगी. इस इमारत ने बापू गांधी, चाचा नेहरू से लेकर मौलाना आजाद और मोहम्मद अली जिन्ना सहित कई नामी हस्तियों के कदमों की आहट सुनी है. यही नहीं, देश की आजादी के परवाने पर हुए दस्तखत की इबारत भी इस इमारत ने देखी है.
कुल 38 लाख में बनी ये भव्य इमारत
ब्रिटिश शासक गर्मियों के दिन बिताने के लिए किसी पहाड़ी स्टेशन की तलाश में थे. उनकी ये तलाश शिमला में पूरी हुई. तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लार्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला लिया. उसके लिए यहां एक आलीशान इमारत तैयार करने की जरूरत महसूस हुई. वर्ष 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ. कुल 38 लाख रुपए की लागत से वर्ष 1888 में ये इमारत बनकर तैयार हुई. इस इमारत में देश की आजादी तक कुल 13 वायसराय रहे. लार्ड माउंटबेटन अंतिम वायसराय थे. ये इमारत स्कॉटिश बेरोनियन शैली की है. यहां मौजूद फर्नीचर विक्टोरियन शैली का है. इमारत में कुल 120 कमरे हैं. इमारत की आंतरिक साज-सज्जा बर्मा से मंगवाई गई टीक की लकड़ी से हुई है.
1945 में हुई थी अहम शिमला कॉन्फ्रेंस