राजगढ़। भारत देश सहित दुनिया के अलग अलग मुल्क में इस्लामिक माह रमजान की आख़िरी तरावी मंगलवार को अदा की जा चुकी है. वहीं, बुधवार को आख़िरी रोजा पूरा होने के पश्चात गुरुवार को मुस्लिम धर्मावलंबी ईद उल फितर का त्योहार मनाएंगे, लेकिन उससे पहले कुछ जरूरी बाते हैं जिन्हे ध्यान में रखना इस्लाम धर्म का अनुसरण करने वाले मुस्लिमों के लिए बहुत ज्यादा जरूरी है. जिन्हें अदा किए बगैर मुस्लिम धर्मावलंबी ईदगाह नहीं पहुंचते हैं.
जानिए क्यों दिया जाता है फितरा
आपको बता दें कि, इस्लाम धर्म के अनुसार ईद की नमाज़ और ईदगाह पर पहुंचने से पहले मुस्लिम धर्मावलंबी जकात और फितरा अदा करते हैं, ताकि जो जरूरतमंद हैं उन लोगों तक यह माल पहले पहुंच जाए और उनकी भी ईद हो सके. लेकिन किन लोगों को इसे देना जरूरी है और इसके योग्य कौन-कौन लोग होते हैं और आमदनी या कैपिटल में से इसे कैसे कैलकुलेट किया जाता है. उसी सिलसिले में ईटीवी भारत ने राजगढ़ जिला काज़ी सैय्यद नाजिम अली और मदीना मस्जिद के पेश इमाम हाफ़िज़ सादिक से बात की.
जानिए कैसे कैलकुलेट होता है इस्लामिक इनकम टैक्स
जिला काज़ी सैय्यद नाजिम अली ने बताया कि, ''अल्लाह रब्बुल इज्जत ने जकात को इस्लाम के अंदर साहिबे निसाब (दौलतमंद) पर फर्ज (जरूरी) किया है. जिसमें से बचे हुए माल में से ढाई फीसदी हिस्सा गरीबों, मिसकीनो (मोहताज) और जरूरतमंदों के लिए निकाला जाता है. जिसकी उन्होंने मिसाल देते हुए कहा कि यदि आपके पास कुछ रकम है और आप साहिबे निसाब (दौलतमंद) हो और वो रकम आपके काम नहीं आ रही हो और उसके ऊपर पूरा एक साल गुजर गया. साल गुजरने के बाद उस रकम का ढाई फीसद हिस्सा मोहताज, गरीब और जरूरतमंदों को देना होगा, ताकि उनकी जरूरत पूरी हो और उनकी भी ईद हो सके. इसलिए अल्लाह ने ये व्यवस्था की है, ताकि जिन्हें दौलत से नवाजा गया है वे लोग गरीबों पर खर्च करें, इसलिए जकात के इस हिस्से को फर्ज किया गया है,जकात की शक्ल बैंक बैलेंस, नगदी, सोना चांदी के जेवरात या मुनाफा कमाने के लिए खरीदी गई प्रॉपर्टी या अन्य चीजें भी हो सकती हैं''.