रांची:झारखंड में लोकतंत्र के महापर्व की तैयारियां जोरशोर से चल रही है. सभी दलों के नेता वोट के लिए जनता के बीच पसीना बहा रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप का दौर चरम पर है. एनडीए ने माटी, रोटी, बेटी और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है तो इंडिया ब्लॉक ने मंईयां सम्मान, सर्वजन पेंशन, ओबीसी आरक्षण और सरना धर्म कोड को. इन सबके बीच चुनाव आयोग वोट प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश में जुटा है. जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. अब सवाल है कि क्या इस बार वोट प्रतिशत बढ़ेगा? दरअसल, 13 नवंबर को पहले फेज में 43 सीटों पर चुनाव होना है. इसी दौरान लोक आस्था के महापर्व छठ की गहमागहमी रहेगी.
लोकतंत्र के पर्व पर आस्था के महापर्व का असर
दरअसल, छठ महापर्व 5 नवंबर से 8 नवंबर तक चलेगा. इस पर्व के समापन के चार दिन बाद 13 नवंबर को पहले फेज में 43 सीटों के लिए मतदान होना है. अब सवाल है कि क्या लोकतंत्र के पर्व पर लोक आस्था के महापर्व का असर पड़ सकता है.
इस पर सेंट्रल यूनिवर्सिटी, रांची में जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. देवव्रत सिंह का कहना है कि फर्स्ट फेज के चुनाव के ठीक पहले दीपावली और छठ का त्यौहार है. इस दौरान खासकर शहरी क्षेत्रों के लोग अपने पैतृक ठिकानों की ओर मूव करते हैं. इसका असर अभी से दिखने भी लगा है. स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रहीं हैं. ट्रेनों में जबरदस्त भीड़ है. बाजार गुलजार हैं. लेकिन चुनाव का माहौल नहीं दिख रहा है.
उन्होंने कहा कि झारखंड की राजधानी रांची, धनबाद, जमशेदपुर और बोकारो ऐसे शहर हैं जहां की एक बड़ी आबादी बिहार और पड़ोसी राज्यों से कनेक्टेड है. जाहिर है कि छठ पर्व के दौरान लोगों के शिफ्ट होने से वोट प्रतिशत पर असर पड़ सकता है. ऊपर से छठ जैसे महत्वपूर्ण पर्व के एक-दो दिन बाद तक थकान वाली स्थिति रहती है. बहुत से लोग अपने पैतृक ठिकानों में जाकर कुछ दिन के लिए रुक जाते हैं.
हालांकि प्रोफेसर देवव्रत सिंह मानते हैं कि झारखंड के ग्रामीण इलाकों में पर्व की वजह से वोट प्रतिशत पर असर की संभावना कम है. क्योंकि झारखंड के ग्रामीण इलाकों में आदिवासी और मूलवासी वास करते हैं. उनकी शिफ्टिंग की गुंजाईश नहीं है.
'त्यौहार के समय नहीं होने चाहिए थे चुनाव'