वाराणसनी: मलेशिया का पॉम ऑयल इन दिनों पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मलेशिया में इस वेस्टेज को साफ नहीं किया गया तो यह समस्या लाइलाज होने की स्थिति में चली जाएगी. वहां की जमीन पर इसका असर पड़ेगा. इस बीच मलेशिया के इस कचरे को साफ करने की तकनीक आईआईटी बीएचयू में तैयार की जा रही है. यहां पर बाकायदा सेरेमिक साइंटिस्ट के जरिए बायोमास से हाइड्रोजन की तकनीक विकसित की गई है. यही नहीं इसको लेकर के प्लांट भी लगाया गया है. इस तकनीक को लेकर मलेशिया गवर्नमेंट के साथ IIT-BHU ने एमओयू भी साइन किया है.
मलेशिया और इंडोनेशिया दुनिया के 70 फीसदी से अधिक पॉम ऑयल का उत्पादन करते हैं. अब यही पॉम ऑयल इनके लिए सबसे बड़ी परेशानी बन चुका है. मलेशिया की करीब 10 फीसदी जमीन पर पॉम ऑयल वेस्ट का पहाड़ बन चुका है. इसे जल्द खत्म नहीं किया गया तो जल्द ही वहां की जमीन पॉम ऑयल वेस्ट में ही खप जाएगी. ऐसे में मलेशिया की इस समस्या को खत्म करने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के IIT के वैज्ञानिकों ने मोर्चा संभाला है. वैज्ञानिकों ने बायोमास से हाइड्रोजन बनाने की तकनीकि विकसित की है. अब इसी तकनीकि के आधार पर पॉम ऑयल वेस्टेज से हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाएगा.
बनाया जा रहा सबसे सस्ता हाइड्रोजन: IIT-BHU के सिरामिक साइंटिस्ट प्रो. प्रीतम सिंह ने बायोमास से हाइड्रोजन बनाने की तकनीकि विकसित की है. इस तकनीकि से मीरजापुर में बीजल ग्रीन एनर्जी नामक संस्था ने प्लांट लगाया है. इस प्लांट पर हाइड्रोजन के साथ ही साथ जीरो कार्बन इमीशन वाला शुद्ध कोयले का भी उत्पादन किया जाता है. यहां पर धान की भूसी और पराली से सबसे सस्ता हाइड्रोजन बनाया जाता है. किसानों से वेस्ट मैटेरियल लिया जाता है. प्रो. प्रीतम सिंह बताते हैं कि, जिस तरह से हमारे यहां पर कृषि वेस्ट है. उसी तरीके से मलेशिया में भी है. मलेशिया दुनिया का सबसे बड़ा पॉम ऑयल एक्सपोर्टर है. पॉम ऑयल निकाला जाता है तो उसके साथ वेस्ट निकलता है, जो वहां पर बहुत अधिक हो गया है.
पॉम ऑयल वेस्ट में होती है बहुत अधिक एनर्जी: वे बताते हैं कि, पॉम ऑयल वेस्ट को पोम भी कहते हैं. इसमें बहुत अधिक एनर्जी है. इसको खाने के उपयोग में नहीं लाया जा सकता. इसे जलाया जा सकता है, लेकिन जलाने से बहुत अधिक प्रदूषण भी होगा. मलेशिया को इस कचरे का निवारण चाहिए था. यह हमारे यहां बहुत ही हाई एनर्जी फ्यूल है. जिस प्रोडक्ड में अधिक ऊर्जा है तो उसे अच्छे रिफाइंड प्रोडक्ट में बदला जा सकता है. अगर हम पॉम ऑयल के वेस्ट की बात करें तो उसमें एक किलोग्राम वेस्ट से 40 से 45 ग्राम हाइड्रोजन बनाई जा सकती है. साथ ही 130 ग्राम मेथेन और लगभग 300 ग्राम बहुत ही हाई एनर्जी का कोयला बनेगा, जिसकी डेन्सिटी लगभग 7000 किलो कैलोरी प्रति ग्राम होगी.
दो कंपनियों के बीच में हुआ है समझौता: प्रो. प्रीतम सिंह बताते हैं कि, मलेशिया सरकार के रिक्वेस्ट पर हमने उनके लिए प्लान किया है. मलेशिया की एक कंपनी है ग्रीन मिलेनियम, जोकि यहां पर आई तो. उनका प्लान है कि इस तरह का प्लांट वे मलेशिया में भी शुरू करना चाहते हैं. इसके लिए बीजल ग्रीन एनर्जी और ग्रीन मिलेनियम के बीच समझौता भी हुआ है. हमारे यहां अमेरिका की भी एक कंपनी है एग्री फ्यूल. अमेरिका में फॉरेस्ट्री वेस्ट बहुत अधिक मात्रा में है. कैलिफोर्निया के जंगलों में आग लगती है, क्योंकि वहां पर सूखी लकड़ियां बहुत अधिक हैं. वह भी बहुत अच्छा हाइड्रोजन प्रोडक्ट हैं. हमारे यहां अभी लगभग 10 हजार किलो फॉरेस्ट्री वेस्ट आया था. इसे हमें टेस्ट करना है.
मलेशिया के स्पीकर ने देखी थी तकनीकि:वे बताते हैं कि हमने मलेशिया के स्पीकर शिवादास के सामने ये प्रस्ताव रखा था. वे काशी आए थे और उन्होंने मीरजापुर के प्लांट को भी देखा था. इसके बाद उन्होंने अपने देश में प्लांट खोलने का फैसला लिया. मलेशिया में अभी तक धान की भूसी से डायजेस्टर तकनीकि पर मीथेन बनाने का काम किया जा रहा है. हाइड्रोजन का उत्पादन वहां नहीं हो रहा है. वहीं हमारे मीरजापुर के प्लांट में पराली, धान की भूसी, फसलों के वेस्ट से हाइड्रोजन तैयार होता ही है. साथ ही बायो फ्यूल और सबसे उच्च कोटि के इको फ्रेंडली कोयले का भी उत्पादन किया जाता है. हमारी इसी तकनीकि से प्रभावित होकर मलेशिया के स्पीकर ने अपने देश में प्लांट शुरू करने पर हामी भरी है.
एक किलोग्राम एग्रीकल्चर वेस्ट मिलेगी ये एनर्जी, भारत को भी फ़ायदा: प्रो. प्रीतम सिंह बताते हैं कि, एक किलोग्राम अमरेकिन पाइन से लगभग 45 ग्राम हाइड्रोजन, 120 ग्राम लगभग मीथेन और 250 ग्राम के करीब कोयला का उत्पादन हो रहा है. अभी हम लोग जो काम कर रहे हैं उसमें एग्रीकल्चर वेस्ट को फैक्सिनेशन तकनीकि के माध्यम से हाई एनर्जी बायोफ्यूल में कन्वर्ट करते हैं. अगर एक किलोग्राम एग्रीकल्चर वेस्ट है, जैसे- पराली, भूसा आदि से लगभग 30 ग्राम के करीब हाइड्रोजन बना सकते हैं. इसके साथ ही लगभग 120-125 ग्राम मीथेन या सीएनजी तैयार कर लेंगे और लगभग 350 ग्राम कोयला भी बनेगा. ये तीनों एनर्जी प्रोडक्ट हो जाते हैं. एक तरह से कहा जा सकता है कि किसान के खेत में एनर्जी पैदा की जा सकती है.
लगभग 550 लाख मिलियन टन कृषि वेस्ट हर साल: उन्होंने बताया कि जो लैंड लॉक्ड स्टेट हैं या जो कृषि क्षेत्र हैं जहां पर और एनर्जी के साधन नहीं हैं, खनिज नहीं है वहां पर धरती के ऊपर भी पर्याप्त मात्रा में एनर्जी या फ्यूल का उत्पादन किया जा सकता है. यह तकनीकि उन सभी देशों के लिए महत्वपूर्ण है जो कृषि संसाधन में बहुत ही उन्नत हैं. जहां पर जितनी अधिक खेती है वहां उतने अधिक कृषि के अवशिष्ट हैं. ऐसे में हम स्वदेशी ईंधन का निर्माण कर सकते हैं. हम पर्याप्त मात्रा में हाइड्रोजन, मीथेन और कोयला का उत्पादन कर सकते हैं. अगर अपने देश के कृषि वेस्ट की बात करें तो लगभग 550 लाख मिलियन टन साल भर में तैयार होते हैं. इसका 4 फीसदी भी हाइड्रोजन में बदल जाए 20 मीट्रिक टन से अधिक हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकेगा. जो लगभग 50 मिलयन टन पेट्रोलियम प्रोडक्ट के बराबर होगा.
पेट्रोल से कम कीमत पर मिलेगी अधिक एनर्जी:प्रो. प्रीतम सिंह बताते हैं कि, हम लोगों ने मिनी रिएक्टर से मल्टिपल रिएक्टर बनाने शुरू किए. आज बीजल ग्रीन एनर्जी ने जो रिएक्टर बनाए हैं उनमें एक बार में 1500 से 2000 किलो तक बायो वेस्ट डाला जा सकता है. इनसे एक बार में लगभग 50 किलो हाइड्रोजन, 150 किलो के करीब सीएनजी और 350 किलो कोयला तैयार किया जा सकता है. इससे आगे बढ़कर अब 30 मीट्रिक टन के रिएक्टर को बनाया जा रहा है, जिसमें कि एक बार में ही एक टन हाइड्रोजन एक रिएक्टर से तैयार किया जाएगा. एक लीटर पेट्रोल से जितनी एनर्जी मिलती है उससे कम पैसा खर्च कर हाइड्रोजन से एनर्जी मिल सकती है. एक लीटर पेट्रोल से करीब 3.54 मेगा जूल एनर्जी मिलती है. इसकी कीमत लगभग 95 रुपये है. इतनी ही एनर्जी 80 रुपये के हाइड्रोजन में मिल जाएगी.
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