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छत्तीसगढ़ के जशपुर में मानव पशु संघर्ष में आई कमी, जशपुर डीएफओ का दावा

छत्तीसगढ़ के जशपुर वन अमले का दावा है कि पिछले 2 वर्षों में मानव-पशु संघर्ष से जान माल की हानि में काफी कमी आई है.

Human animal conflict
जशपुर में मानव पशु संघर्ष घटी (ETV Bharat)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 10, 2024, 2:30 PM IST

जशपुर :छत्तीसगढ़ में आए दिन वन्यजीवों और मानव के बीच संघर्ष की घटनाएं सामने आती रहती है. कभी हाथियों के तांडव से फसले और जान माल का हानि होती है. कहीं तेंदुए, तो कही बाघ आवादी वाले इलाकों में घुस आते हैं. इस दौरान कई बार इंसानों से आमना सामना होने पर ये हमलावर हो जाते हैं, जिससे जान माल की हानि होती है. लेकिन जशपुर डीएफओ का दावा है कि ट्रैकर टीमों की वजह से जशपुर जिले में पिछले 2 वर्षों में जान माल की हानि में काफी कमी आई है.

जशपुर डीएफओ का बड़ा दावा : जशपुर के जिला वन अधिकारी जितेंद्र उपाध्याय ने क्षेत्र में मानव-पशु संघर्ष को कम करने के लिए ट्रैकर टीमों की प्रशंसा की. वन विभाग के डेटा से पता चला है कि जशपुर जिले में पिछले दो वर्षों में किसी भी जानवर या मानव की जान नहीं गई है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के निर्देश पर ट्रैकर्स का गठन किया गया था और संघर्ष को रोकने में यह मील का पत्थर साबित हो रहा है. इस क्षेत्र में काम कर रही एक त्वरित प्रतिक्रिया टीम ने किसी भी संभावित घटना से निपटने में मदद की और जानवरों और मनुष्यों की मृत्यु को कम किया.

सभी वन कर्मचारियों, ट्रैकर्स , रैपिड रिस्पॉन्सिंग टीम और मित्र दल की कड़ी मेहनत के कारण हाथी-मानव संघर्ष में हाथियों की हानि रुक ​​गई है और जानमाल की हानि भी बहुत कम हुई है. हाथियों को भी सुरक्षित किया गया है। पिछले 2 वर्षों से इस जिले में हाथियों की कोई हानि नहीं हुई है. जनहानि का ग्राफ भी लगातार नीचे जा रहा है. स्थानीय जनप्रतिनिधियों, ग्रामीणों और वन अमले के साथ हाथियों के व्यवहार को समझकर जिला सहजीवन की ओर बढ़ रहा है. : जितेंद्र उपाध्याय, डीएफओ, जशपुर

टीम के प्रयासों और परिणामों की प्रशंसा : डीएफओ जितेंद्र उपाध्याय ने कहा है कि जशपुर छत्तीसगढ़ का प्रवेश द्वार कहा जाता है और यह हाथी मानव संघर्ष के मामले में सबसे संवेदनशील जिला है. मुख्यमंत्री की पहल और निर्देश के अनुसार, पिछले 10 महीनों से लगातार जन जागरूकता पैदा की जा रही है. उन्होंने टीम के प्रयासों और इसके परिणामों की प्रशंसा करते हुए कहा कि हाथियों को समझने और विभिन्न ग्रामीणों, वन कर्मचारियों और प्रतिनिधियों के साथ सहयोग करके जिला सहजीवन की ओर बढ़ रहा है.

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड राज्यों में हाथियों के बड़े झुंड देखे जाते हैं. हाथियों को काफी बुद्धिमान माना जाता है, लेकिन वे अपने झुंड की रक्षा के लिए आक्रामक भी हो जाते हैं. अक्सर हाथियों के झुंड भोजन की तलाश में दशकों तक एक ही रास्ते पर चलते हैं. हाथी ट्रैकर हाथियों को जंगलों में खदेड़ते हैं और हाथियों को गांव से दूर रखते हैं. इस संघर्ष में अक्सर हाथी या इंसान अपनी जान गंवा देते हैं. : जितेंद्र उपाध्याय, डीएफओ, जशपुर

हाथी ट्रैकर की वनविभाग में भूमिका : छत्तीसगढ़ सरकार हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष को रोकने का प्रयास कर रही है. इसी क्रम में हाथी ट्रैकर नियुक्त किए हैं. हाथी ट्रैकर राजेश राम यादव ने बताया कि हाथियों के समूह वाले इलाके के लोगों को जंगल में न जाने की सलाह देना हमारा काम है. खासकर ग्रामीण इलाके, जो जंगल के किनारे बसे हैं, हम उन्हें हाथियों से दूरी बनाए रखने, रात में घर से बाहर न निकलने, जंगल से दूरी बनाए रखने की सलाह देते हैं. कई हाथी ज़्यादातर घरों की तरफ जाते हैं. हम ट्रैकर और वन विभाग की टीम मिलकर हाथियों को जंगल की तरफ खदेड़ते हैं. हम कोशिश करते हैं कि हाथियों और ग्रामीणों को कोई नुकसान न पहुंचे. हम माइक और सायरन के जरिए ग्रामीणों को सचेत करते हैं.

(एएनआई)

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