शिमला: हिमाचल पथ परिवहन निगम के चालक-परिचालक अब चैन की नींद सोते हैं. उन्हें आराम करने का भरपूर समय मिलता है और वे कुछ समय परिवार के साथ भी बिता पाते हैं. यही नहीं, जीरो ओवरटाइम के कारण अब एचआरटीसी के डिपो सालाना सरकारी खजाने में पांच करोड़ रुपए की बचत की रकम डालते हैं. ये सब संभव हुआ है मात्र एक आइडिया के लागू होने से. ये आइडिया एक दूरदर्शी अफसर का है. हर समय घाटे का रोना रोने वाले अफसरों के लिए ये आंखें खोल देने वाली खबर है.
अगर नौकरशाही क्रिएटिव आइडिया के साथ काम करे तो सरकार का खजाना भी भरता है और कार्यकुशलता भी बढ़ती है. एचआरटीसी के अफसर विवेक लखनपाल ने ओवरटाइम बंद करके चालक-परिचालक वर्ग को सुख दिया है. विवेक लखनपाल एचआरटीसी में डीडीएम यानी डिप्टी डिवीजनल मैनेजर के पद पर बिलासपुर में तैनात हैं. वे एचआरटीसी के कई डिपो में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. उन्होंने सबसे पहले हमीरपुर डिपो से इस मुहिम की शुरुआत की थी. तब वे हमीरपुर डिपो के आरएम यानी रीजनल मैनेजर थे. उसके बाद वे बिलासपुर में डीडीएम बने तो ये काम बिलासपुर डिपो में भी आरंभ हुआ. अब कई डिपो इसे अपना चुके हैं.
ओवरटाइम की समस्या को ऐसे किया ओवरटेक
हिमाचल में एचआरटीसी प्रबंधन के सामने ओवरटाइम का भुगतान एक बड़ी समस्या रहा है. कई चालक-परिचालकों का ओवरटाइम दस साल से ड्यू है. इसके लिए एक बड़ी रकम चाहिए. ऐसे में विवेक लखनपाल ने एक प्रयोग किया. उन्होंने हमीरपुर डिपो में पहले-पहल जीरो ओवरटाइम लागू किया. यानी कोई भी चालक व परिचालक अपनी तय ड्यूटी से अधिक काम नहीं करेगा. उसे आठ घंटे की ड्यूटी के अलावा ओवरटाइम के लिए नहीं कहा जाएगा. इससे चालक व परिचालक को आराम भी मिलेगा और एचआरटीसी को ओवरटाइम का भुगतान भी नहीं करना होगा. इसका लाभ ये हुआ कि एचआरटीसी के खजाने को सालाना पांच करोड़ रुपए की बचत होने लगी. कुछ चालक-परिचालक अपनी ड्यूटी को लेकर नियमित नहीं थे. विवेक लखनपाल ने इसे नियमित किया और जरूरत के हिसाब से सभी की ड्यूटी तय की. इसका लाभ ये हुआ कि ओवरटाइम की जरूरत ही न्यूनतम हो गई.