पटनाः बिहार की राजनीति में तीन महत्वपूर्ण मुद्दे - जातिवाद, परिवारवाद, और भ्रष्टाचार, ने हमेशा ही अहम भूमिका निभाई है. इन्हीं मुद्दों के संगम में बिहार की राजनीतिक परिभाषाओं में बदलाव आता रहा है. इन मुद्दों ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार की राजनीति को प्रभावित किया. जातिवाद, परिवारवाद, और भ्रष्टाचार के ये तीन स्तंभ क्या हैं, और कैसे इन्होंने चुनावी परिणामों को प्रभावित किया, इसे हम यहां जानेंगे.
परिवारवाद की नई परिभाषाः परिवारवाद पर प्रो नवल किशोर चौधरी का कहना है कि परिवारवाद को दो रूप में देखने की जरूरत है.एक वह जिसमें पूरी पार्टी एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है. दूसरा वह जिसमें बड़े नेता के पुत्र को पार्टी टिकट देती है. बिहार में एनडीए की तरफ से कई उम्मीदवार ऐसे हुए जिनके पिता राजनीति में रहे हैं और उनके संतानों को टिकट दिया गया. बीजेपी ने सीपी ठाकुर के पुत्र विवेक ठाकुर को टिकट दिया तो लोजपा ने अशोक चौधरी की बेटी शांभवी को टिकट दिया. खुद चिराग पासवान और उनके बहनोई अरुण भारती चुनाव मैदान में नजर आए.
परिवारवाद का मुद्दा कमजोर हो रहाः प्रो नवल किशोर चौधरी का कहना है कि लेकिन दूसरी तरफ आरजेडी ऐसी पार्टी है जिसमें पूरी पार्टी का कंट्रोल एक परिवार कर रहा है. लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी पूर्व चीफ मिनिस्टर रहे हैं. दो बेटा विधायक और एक बेटी अब सांसद बन गई हैं. यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद पर बिहार में हमला बोला था. प्रो चौधरी का कहना है कि अब परिवारवाद की धार धीरे-धीरे कमजोर होने लगा है, क्योंकि देश में अनेक ऐसे राजनीतिक परिवार हैं जिनके इर्दगिर्द उनकी पार्टी की राजनीति घूम रही है.
भ्रष्टाचार पर आमने-सामनेः भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रो नवल किशोर चौधरी का कहना है कि यह मुद्दा अभी भी है. बिहार में चारा घोटाले के कारण ही अभी तक आरजेडी इस मुद्दे पर बैकफुट पर रही है. लेकिन, बीजेपी ने कई ऐसे नेताओं को बीजेपी में शामिल करवाया या उनसे गठबंधन किया जिस पर करप्शन का आरोप लगा है. यही कारण है कि इस चुनाव में करप्शन का जो मुद्दा था वह धीरे-धीरे कमजोर होता दिखा. जहां तक बिहार की बात है तो बिहार के लोगों को अभी भी भ्रष्टाचार, परिवारवाद एवं जातिवाद प्रभावित करता है. जिसका परिणाम चुनाव के रिजल्ट में देखने को मिला.