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गुरु के सानिध्य के बाद ही शुरू होती है शिक्षा-दीक्षा, जानिए क्या है श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े का इतिहास और परंपरा? - MAHAKUMBH 2025

प्रयागराज में 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक हो रहा है महाकुंभ का आयोजन.

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर (Photo credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 24, 2024, 2:46 PM IST

प्रयागराज :धर्म और आस्था की नगरी में तैयारियां जोरों पर हैं. इस बार प्रयागराज में 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक महाकुंभ का आयोजन हो रहा है. अखाड़ों के नगर प्रवेश के बाद अब अलग-अलग अखाड़ों का छावनी प्रवेश, भूमि पूजन के साथ-साथ ध्वज स्थापित करने का कार्यक्रम भी शुरू हो चुका है. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा भी इस महाकुंभ में भाग ले रहा है. शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा बताया जाता है. इस अखाड़े में लाखों नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं. इनमें से अधिकतर नागा साधु हैं.

महंत प्रहलाद महाराज थानापति ने दी जानकारी (Video credit: ETV Bharat)

अखाड़ा के महंत प्रहलाद महाराज थानापति के मुताबिक, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा सहित 13 अखाड़े हैं. शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े और उदासीन संप्रदाय के 4 अखाड़े हैं. जूना अखाड़ा शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े में से एक है. इन अखाड़ों के संन्यासियों का कार्य है ध्यान, तप, साधना और धार्मिक प्रवचन देना. लोगों को धर्म का मार्ग बताना. जूना अखाड़ा ने सबसे पहले छावनी में प्रवेश किया है. सबसे ज्यादा साधु संत जूना अखाड़े में ही हैं. इसके इष्ट देवता दत्तात्रेय भगवान हैं. इसकी स्थापना उत्तराखंड में हुई थी.


बिल्कुल अलग है शिक्षा-दीक्षा : अखाड़े के महंत के मुताबिक, अखाड़े में शिक्षा-दीक्षा भी एक अलग ढंग से दी जाती है. अखाड़े के काम का तरीका अन्य अखाड़ों से अलग है, क्योंकि यहां देशी-विदेशी दोनों तरह के भक्तों को न सिर्फ प्रवेश की अनुमति है, बल्कि शिक्षा-दीक्षा भी उन्हें दी जाती है. सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए नागा साधुओं की फौज तैयार करता है. इनको अस्त्र-शस्त्र के साथ शास्त्र की शिक्षा दी जाती है. मान्यता है कि धर्म की रक्षा के लिए इसकी शुरुआत आदि शंकराचार्य ने छठवीं शताब्दी में की थी. कुल 7 अखाड़ों की स्थापना के साथ शुरू हुई परंपरा, अब धीरे-धीरे 13 अखाड़ों तक पहुंच चुकी है.

गलतियों पर सजा का प्रावधान :अखाड़े के महंत के मुताबिक, अन्य अखाड़ों की तरह इस अखाड़े का भी अपना अलग नियम कानून है. साधु-संन्यासियों की गलतियों पर सजा देने से लेकर उन्हें निष्कासित करने और अन्य कड़े फैसले लेने के लिए अखाड़ा का अलग कानून चलता है, जिसका फैसला महामंडलेश्वर और अखाड़ा परिषद मिलकर लेते हैं.


कुंभ मेले के दौरान होते हैं चुनाव :अखाड़े के महंत के मुताबिक, सभी बड़े सदस्यों की एक कमेटी बनती है. इस अखाड़े में कुल 17 लोगों की कैबिनेट है. 17 लोगों में काशी के चार श्रीमंत थानापति, चार सेक्रेटरी, चार रमता पंच, चार श्री महंत, चार अष्ट कौशल महंत और एक सभापति मिलकर यह कैबिनेट बनाते हैं. ये सभी लोग अखाड़े के लिए सभापति का चुनाव करते हैं. ये चुनाव कुंभ मेले के दौरान होते हैं. जूना अखाड़े के महंत ने बताया कि अखाड़े में शामिल होने के अलग-अलग नियम हैं, लेकिन मुख्य नियम सामाजिक कुरीतियों और समाज में व्याप्त अन्य मोह माया को छोड़ना महत्वपूर्ण है.

वर्षों तक करनी होती है गुरु की सेवा :अखाड़ा में शामिल संतों का कहना है कि अखाड़े में जो चाहे वह नहीं शामिल हो सकता है. इसके लिए 3 से 12 साल से ज्यादा का वक्त अपने गुरु की सेवा में देना होता है. गुरु के सानिध्य के बाद ही शिक्षा-दीक्षा शुरू होती है. गुरु सेवा करते-करते जब आप सच्चे संत और महंत के रूप में आगे बढ़ते हैं, तब अखाड़े के श्री महंत कुंभ मेले में आपको साधु के रूप में स्वीकार करते हैं. जूना अखाड़ा की खास बात यह है कि नागा साधुओं की विशेष ट्रेनिंग होती है.




अखाड़े के महंत के मुताबिक, जूना अखाड़े में साधु-संन्यासियों से लेकर नागा साधुओं को शस्त्र और शास्त्र में पारंगत किया जाता है. यहां से तैयार नागा साधुओं को धर्म रक्षार्थ अलग-अलग राज्यों और जिलों में तैनात किया जाता है. जूना अखाड़े का हेड क्वार्टर या मुख्य मठ वाराणसी के हनुमान घाट में स्थित है, जहां पर साधु-संन्यासियों की दिनचर्या स्नान ध्यान से शुरू होती है. फिर धीरे-धीरे गुरु सेवा, पूजा-पाठ, भोजन और अध्ययन के साथ आगे बढ़ती है. जूना अखाड़े की स्थापना 12वीं शताब्दी में बताई जाती है



आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी स्थापना :अखाड़े के महंत के मुताबिक, सनातन धर्म पर अत्याचार हो रहे थे, तब आदि गुरु शंकराचार्य ने मठ-मंदिरों को तोड़े जाने से बचाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की. साधु-संन्यासियों को नागा साधु के रूप में तैयार कर उन्हें शस्त्र के साथ शास्त्र की शिक्षा देकर मजबूत बनाया गया. यह युद्ध कौशल में पारंगत होकर सनातन धर्म को नुकसान पहुंचाने वालों के ऊपर कहर बनकर टूटने लगे और तब से ही अखाड़ा परंपरा अनवरत चली आ रही है.

शैव धारा है दशनामी संप्रदाय :अखाड़े के महंत के मुताबिक, शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही दशनामी संप्रदाय आता है. इन दशनामी संप्रदायों के नाम गिरी, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम हैं. 7 अखाड़ों में से जूना अखाड़ा इनका खास अखाड़ा है. किसी भी अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सबसे ऊंचा होता है. जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी हैं. इस अखाड़े से तमाम देशी-विदेशी भक्त जुड़े हुए हैं, जिनकी संख्या करोड़ों में है.



52 परिवार से जुड़कर बना :अखाड़े के महंत के मुताबिक, यह अखाड़ा 52 परिवारों से जुड़कर बना है, जिसमें सभी साधु-संन्यासी हैं. सभी बड़े सदस्यों की एक कमेटी बनती है. इस अखाड़े में कुल 17 लोगों की कैबिनेट है. 17 लोगों में काशी के चार श्रीमंत थानापति, चार सेक्रेटरी, चार रमता पंच, चार श्री महंत, चार अष्ट कौशल महंत और एक सभापति मिलकर यह कैबिनेट बनाने हैं. ये सभी लोग अखाड़े के लिए सभापति का चुनाव करते हैं. ये चुनाव कुंभ मेले के दौरान होते हैं.

अखाड़े के महंत के मुताबिक, शुरुआत में संन्यास की दीक्षा गुरु के द्वारा दी जाती है. मंत्रोच्चार से शरीर पर समस्त चीजों को धारण करवाया जाता है. इसके बाद विजया संस्कार होता है, जिसमें संन्यास लेने वाले व्यक्ति का पिंडदान और अन्य आहुतियां करवाकर उसे सांसारिक मोह माया से दूर कर संन्यासी बनाने के क्रम में आगे बढ़ाया जाता है. दीक्षा मिलने के बाद नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. उस वक्त धर्म ध्वजा के नीचे सभी साधुओं को एकत्रित करके जिसको भी नागा दीक्षा दी जाती है, उसका एक अलग गुरु बनाया जाता है. उनका गुरु दिगंबर बनता है. फिर उन्हें अलग से दीक्षा दी जाती है. फिर अलग-अलग गुरु अच्छे नागाओं को चुनकर उनकी अखाड़ों में ड्यूटी लगाते हैं. आज भी अखाड़ों में लेखी से ज्यादा वचनों का पालन होता है.



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