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लोकसभा चुनाव 2024: रांची लोकसभा सीट का सफरनामा, यहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच होती है कड़ी टक्कर

History of Ranchi Loksabha seat. झारखंड के रांची लोकसभा सीट पर कांग्रेस और बीजेपी की सीधी टक्कर होती है. ये एक ऐसी सीट है जिस पर राज्य की सत्ता पर काबिज झामुमो कभी भी जीत नहीं पाई है. पिछले दो चुनावों में यहां से बीजेपी जीतती आ रही रही है. जानिए

History of Ranchi loksabha seat
History of Ranchi loksabha seat

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 5, 2024, 7:58 PM IST

रांची:झारखंड की राजधानी रांची संयुक्त बिहार के समय से ही राजनीति का मुख्य केंद्र रही है. देश के पहले लोकसभा चुनाव के समय रांची संसदीय क्षेत्र आज जैसा नहीं था. उस समय रांची तीन लोकसभा क्षेत्रों में बंटा हुआ था. रांची नॉर्थ इस्ट, रांची वेस्ट और पलामू-हजारीबाग-रांची लोकसभा सीट. तब से लेकर अब तक रांची लोकसभा सीट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सबसे ज्यादा दबदबा रहा है. लेकिन पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी ने कांग्रेस के इस दबदबे को कम कर दिया है और बीजेपी इस सीट को अपने नाम कर रही है.

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1952 का लोकसभा चुनाव

1952 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने रांची नॉर्थ इस्ट सीट जीती. कांग्रेस पार्टी के अब्दुल इब्राहिम 32.6 फीसदी वोटों के साथ जीते. जबकि सोशलिस्ट पार्टी को 24.01 फीसदी वोट, छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी को 18 फीसदी वोट और मार्क्सवादी ग्रुप के फॉरवर्ड ब्लॉक को 11.6 फीसदी वोट मिले थे. 1952 के लोकसभा चुनाव में झारखंड पार्टी ने रांची वेस्ट सीट जीती थी, जिसे जयपाल सिंह ने जीता था. जबकि 1952 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तीसरी लोकसभा सीट रांची, पलामू हज़ारीबाग़ रांची लोकसभा सीट जीती थी, जिसे जेठन सिंह खेरवार ने जीता था. उन्हें कुल 20.7 फीसदी वोट मिले थे जबकि झारखंड पार्टी को 15.9 और छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी को 11.02 फीसदी वोट मिले थे.

1957 का लोकसभा चुनाव

1957 के लोकसभा चुनाव में एक लोकसभा क्षेत्र रांची से अलग कर दिया गया. अब रांची में दो लोकसभा क्षेत्र थे, रांची इस्ट और रांची वेस्ट. 1957 के लोकसभा चुनाव में झारखंड पार्टी के उम्मीदवार एमआर मसानी ने रांची इस्ट से 34.6 प्रतिशत वोट पाकर जीत हासिल की थी, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मोहम्मद इब्राहिम अंसारी को 32.6 प्रतिशत वोट मिले थे. झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह एक बार फिर रांची वेस्ट सीट से जीते और उन्हें 60.3 फीसदी वोट मिले. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 25.2 फीसदी वोट प्राप्त हुआ था.

1962 में रांची दो लोकसभा क्षेत्र

1962 में भी रांची में दो लोकसभा क्षेत्र हुआ करते थे. इधर, रांची वेस्ट से झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह जीते, जबकि स्वतंत्र पार्टी के जोसेफ तिग्गा दूसरे स्थान पर रहे. जयपाल सिंह को 48.9 फीसदी वोट मिले, जबकि स्वतंत्र पार्टी के जोसेफ तिग्गा को 24.8 फीसदी वोट मिले, वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार को 19.3 फीसदी वोट मिले थे. 1962 में प्रशांत कुमार घोष 30.4 फीसदी वोट पाकर रांची ईस्ट से जीते, जबकि इंडियन नेशनल कांग्रेस के इब्राहिम अंसारी को 26.9 फीसदी और झारखंड पार्टी के अर्जुन अग्रवाल को 20.7 फीसदी वोट मिले. ये दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे.

1967 में रांची अलग लोकसभा क्षेत्र

1967 में रांची एक अलग लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बन गया और 1962 में रांची इस्ट सीट के विजेता प्रशांत कुमार घोष को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पार्टी में शामिल कर लिया. 1967 के लोकसभा चुनाव में प्रशांत कुमार घोष को 18.3 प्रतिशत वोट मिले जबकि भारतीय जनसंघ को 16 प्रतिशत वोट मिले. इस तरह प्रशांत कुमार घोष ने फिर बाजी मार ली.

1971 में जीती कांग्रेस

1971 के लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने रांची से जीत हासिल की और एक बार फिर प्रशांत कुमार घोष इस सीट से जीते. इस बार प्रशांत कुमार घोष को 41.9 फीसदी वोट मिले. भारतीय जनसंघ के रुद्र प्रताप सारंगी को जहां 33.30 प्रतिशत वोट मिले, वहीं अन्य राजनीतिक दल वोट प्रतिशत को दहाई अंक में भी नहीं ले जा सके.

1971 में दोबारा जीती कांग्रेस

1977 में कांग्रेस ने शिव प्रसाद साहू को रांची लोकसभा सीट से मैदान में उतारा. कांग्रेस ने दो बार के विजेता प्रशांत कुमार घोष की जगह शिव प्रसाद साहू को मैदान में उतारा था और कांग्रेस यह सीट हार गयी. 1977 में भारतीय लोकदल ने रांची लोकसभा सीट से जीत हासिल की. भारतीय लोक दल के रवींद्र वर्मा 45.4 फीसदी वोट के साथ विजयी हुए. जबकि इंडियन नेशनल कांग्रेस के शिव प्रसाद साहू को 24.7 फीसदी वोट मिले थे.

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1980 में कांग्रेस ने लगाया जीत का हैट्रिक

1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर रांची लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया और शिवप्रसाद साहू ने इस सीट से जीत हासिल की. इस बार शिव प्रसाद साहू को 37.7 फीसदी वोट मिले, जबकि जनता पार्टी के शिवकुमार सिंह को 24.2 फीसदी वोट मिले.

1984 में चौथी बार जीती कांग्रेस

1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट पर जीत हासिल की. शिव प्रसाद साहू यहां से दोबारा लोकसभा चुनाव जीते. इस बार उन्हें कुल 47.2 फीसदी वोट मिले. जबकि भारतीय जनता पार्टी के राम टहल चौधरी को 16 फीसदी वोट मिले. जनता पार्टी के उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय को 15.1 फीसदी वोट मिले थे.

1989 में कांग्रेस को मिली हार

1989 के लोकसभा चुनाव में यह सीट एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के हाथ से निकल गई और इस बार इस सीट पर जनता दल के उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय ने जीत हासिल की, उन्हें 34.3 फीसदी वोट मिले, जबकि भारतीय जनता पार्टी के राम टहल चौधरी को 31.2 फीसदी, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शिव प्रसाद साहू को 26.7 फीसदी वोट मिले.

1991 में पहली बार जीती बीजेपी

1991 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार रांची सीट जीती. इस बार भारतीय जनता पार्टी के रामटहल चौधरी को 47.6 फीसदी वोट मिले थे, जिससे वे विजयी रहे. जबकि 1989 में इस सीट से जीते सुबोधकांत सहाय को जनता दल ने टिकट नहीं दिया. सुबोध कांत सहाय ने झारखंड पार्टी से चुनाव लड़ा और चौथे स्थान पर रहे. जनता दल ने अवधेश कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था, जिन्हें 22 फीसदी वोट मिले थे.

1996 में बीजेपी ने फिर किया रांची पर कब्जा

1996 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर रांची सीट पर कब्जा कर लिया. इस बार भी भारतीय जनता पार्टी के रामटहल चौधरी विजयी रहे, जिन्हें 35.02 फीसदी वोट मिले थे. इस बार कांग्रेस पार्टी ने अपना उम्मीदवार बदल दिया था और केशव महतो कमलेश को अपना उम्मीदवार बनाया था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 28.8 प्रतिशत वोट मिले, जबकि जनता दल को 25.9 प्रतिशत वोट मिले.

1998 में बीजेपी के रामटहल चौधरी फिर जीते

1998 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के रामटहल चौधरी एक बार फिर रांची सीट से जीते. उन्हें कुल 57.2 फीसदी वोट मिले. जबकि इंडियन नेशनल कांग्रेस के केशव महतो कमलेश को 36.6 फीसदी वोट मिले थे.

1999 में चौथी बार जीती बीजेपी

1999 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने इस बार फिर रांची सीट पर कब्जा कर लिया. रामटहल चौधरी एक बार फिर रांची सीट से जीते और इस बार उन्हें 65 फीसदी वोट मिले. वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलते हुए इस सीट से केके तिवारी को मैदान में उतारा था, लेकिन केके तिवारी को कुल 23.7 फीसदी वोट मिले थे.

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बंटवारे के बाद बीजेपी को मिली हार

2004 के लोकसभा चुनाव में झारखंड राज्य बनने के बाद रांची सीट पर पहला लोकसभा चुनाव हुआ और इस बार लगातार चार बार रांची से सांसद रहे रामटहल चौधरी को हार का सामना करना पड़ा. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सुबोधकांत सहाय को अपना उम्मीदवार बनाया और सुबोध कांत सहाय 40.8 फीसदी वोट पाकर विजयी रहे. भारतीय जनता पार्टी के रामटहल चौधरी को 38.6 फीसदी वोट मिले, जबकि निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले बंधु तिर्की को 7.5 फीसदी वोट मिले.

2009 में कांग्रेस से सुबोधकांत सहाय जीते

2009 के लोकसभा चुनाव में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय ने रांची लोकसभा सीट से जीत हासिल की . 2009 के लोकसभा चुनाव में सुबोध कांत सहाय को 42.9 फीसदी वोट मिले जबकि भारतीय जनता पार्टी के रामटहल चौधरी को 41 फीसदी वोट मिले.

2014 में दिखा मोदी लहर का असर

2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से रांची लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया और इस बार रामटहल चौधरी को 42.7 फीसदी वोट मिले. जबकि इंडियन नेशनल कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को 23.8 फीसदी वोट मिले थे. जबकि रांची से चुनाव लड़ने वाले आजसू पार्टी के अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो को 13.6 फीसदी वोट, झारखंड विकास मोर्चा के अमिताभ चौधरी को 6.5 फीसदी वोट जबकि बंधु तिर्की ने ऑल इंडिया त्रिमुल कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा था, जिन्हें कुल 4.4 फीसदी वोट मिले थे.

2019 में भी दिखा मोदी मैजिक

2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी का मैजिक फिर दिखा. हालांकि इस बार भारतीय जनता पार्टी ने रांची से रामटहल चौधरी को टिकट नहीं दिया, जिन्होंने पांच बार रांची की लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलाई थी. भारतीय जनता पार्टी ने रांची लोकसभा सीट से संजय सेठ को मैदान में उतारा. इससे नाराज होकर रामटहल चौधरी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. हालांकि, मोदी के विकास की गति पर सवार होकर भारतीय जनता पार्टी ने फिर से रांची सीट पर कब्ज़ा कर लिया और यहां से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार संजय सेठ को कुल 57.30 वोट मिले. जबकि इंडियन नेशनल कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को 34.3 फीसदी वोट मिले. वहीं रांची से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले रामटहल चौधरी को महज 2.4 फीसदी वोट ही मिल सके.

2024 की तैयारी

2024 की तैयारी में जुटे राजनीतिक दलों के लिए रांची बेहद अहम है. 2024 के लिए एक बार फिर बीजेपी ने संजय सेठ पर भरोसा जताया है. हालांकि, झारखंड की सत्ता पर काबिज झारखंड मुक्ति मोर्चा अब तक रांची लोकसभा सीट पर कब्जा नहीं कर पाई है. अब देखने वाली बात होती है कि 2024 में रांची की जनता किसे चुनती है.

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