पूर्णिया: बिहार में पहली बार पूर्णिया से हवाई जहाज ने उड़ान भरी थी. इस उड़ान का मकसद माउंट एवरेस्ट की सही उंचाई मापना था. इसलिए अंग्रेजों ने 3 अप्रैल 1933 को पूर्णिया के लाल बालू मैदान एयरपोर्ट पर विमान उतर गया था. विमान से माउंट एवरेस्ट की पहली तस्वीर उतारी गई थी. उस वक्त पटना और दरभंगा एयरपोर्ट बना लेकिन सीमांचल के लोगों का इंतजार अब तक खत्म नहीं हुआ.
पूर्णिया से पटना के लिए शुरू हुई थी उड़ान: पूर्णिया में चौथी और अंतिम बार जब हवाई सेवा शुरू हुई थी तो उस समय पूर्णिया में एयरफोर्स की तरफ से वहां स्टेशन कंमांडर विश्वजीत कुमार को बनाया गया था. जिन्होंने 2012-13 में पूर्णिया से कलकता और पूर्णिया से पटना की प्लाइट शुरू कराई थी, लेकिन एक साल के बाद ये सेवा बंद हो गई. आज एयरफोर्स से रिटार्यड ग्रुप कैप्टन विश्वजीत कुमार से जानेंगे कि विमानन के क्षेत्र में पूर्णिया का क्या इतिहास रहा है.
3 अप्रैल 1933 से उड़ी थी प्लेन :ग्रुप कैप्टन विश्वजीत कुमार बताते हैं कि 3 अप्रैल 1933 को पूर्णिया का वास्ता हवाई जहाज से पड़ा था. पहली बार पूर्णिया की धरती से एयरक्राफ्ट ने उड़ान भरी थी. अंग्रेजों ने यहां से पहली उड़ान भरी थी. वजह यह थी कि माउंट एवरेस्ट जो नेपाल में स्थित है, उसकी दूरी पूर्णिया से काफी नजदीक है. 1933 तक माउंट एवरेस्ट की हाइट का मेजरमेंट तब तक दुनिया में नहीं हुआ था. यही वजह है कि ब्रिटिश गवर्नमेंट ने यह बीड़ा उठाया कि उसकी हाइट को मापा जाए.
माउंट एवरेस्ट के नापी गई थी ऊंचाई: उन्होंने कहा कि उस प्रोजेक्ट को लेकर दो जहाज लेकर इंग्लैंड से कराची लेकर आए. वहां एयरक्राफ्ट को असेंबल करके पूर्णिया लेकर आए. वहां से दो अटेंप्ट किया गया और फाइनल 3 अप्रैल 1933 को अंग्रेज जहाज से गए और माउंट एवरेस्ट की एक्चुअल हाइट को उस दिन नापा गया. यह उस समय बार सोनी लाल बालू जगह के नाम से जाना जाता है. वह ऐतिहासिक जगह है.
'मैं इस एयरपोर्ट से इसलिए जुड़ा हुआ हूं क्योंकि मैं पूर्णिया का नागरिक हूं और जब मैं स्टेशन कमांडर था. एक सिविल एयरपोर्ट बनना चाहिए और क्षेत्र के लोगों को यह सुविधा मिलनी चाहिए. यह कनेक्टिविटी लोगों को मिलने चाहिए. 2012 में फ्लाइट जरूर चलवाया था लेकिन, मुझे पता था कि यह लंबे समय तक नहीं चल पाएगा. क्योंकि वह टेंपरेरी था. जितनी बार भी यहां फ्लाइट की सेवा रुकी उसकी वजह यह थी कि यहां कभी भी परमानेंट सेटअप नहीं था."- विश्वजीत कुमार, ग्रुप कैप्टन, एयरफोर्स रिटार्यड
1956 में पूर्णिया-कोलकता प्लाइट:उन्होने बताया कि उसके बाद 1956 तक कोई फ्लाइट नहीं चली फिर 1956 में बालू घाट एयरवेज जो कि कोलकाता की एक प्राइवेट फ्लाइट कंपनी थी. जिसने पूर्णिया से कोलकाता तक फ्लाइट चलाई थी. उसे कंपनी ने 1956 से लेकर 1958 तक कोलकाता से पूर्णिया तक फ्लाइट चलाई. उसके बाद फ्लाइट नहीं चली. क्योंकि पूर्णिया में प्रॉपर एयरपोर्ट नहीं बना था. जो अभी एयरपोर्ट देखा जा रहा है वह 1962 की लड़ाई के बाद 1963 में पूरा हो पाया था.
1974 में पूर्णिया से चली थी तीसरी फ्लाइट: उन्होंने कहा कि तीसरी बार जब पूर्णिया में फ्लाइट चली वह 1974 में चली थी. कंपनी का नाम जैम एयरवेज था. उसने भी पूर्णिया में फ्लाइट चलाई थी. जो पूर्णिया से कोलकाता के बीच में चलती थी. यह कंपनी भी 1974 से लेकर 1975 तक ही फ्लाइट चलाई. वह एक प्राइवेट कंपनी थी और छोटा जहाज था. ज्यादा चली नहीं और फिर वह फ्लाइट भी बंद हो गई.
2012-13 में भी उड़ान भरी गई थी : ग्रुप कैप्टेन विश्वजीत कुमार बताते हैं की अंतिम बार जब पूर्णिया में फ्लाइट चली थी तो उसे समय पूर्णिया एयरपोर्ट का स्टेशन कमांडर मैं था. 2012-13 में हमने फ्लाइट चलाई थी. वह स्प्लिट एयरवेज की फ्लाइट चली थी. पूर्णिया-कोलकाता-पूर्णिया-पटना फ्लाइट चलती थी. ये प्लाईट हफ्ते में 2 से 3 बार चलती थी. अब तक चार बार वहां हवाई सेवा शुरू होकर बंद हो चुकी है.