शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला के ढली स्थित दृष्टिबाधित, मूक व बधिर बच्चों के स्कूल/होम संस्थान में तैनात शिक्षकों को सरकार की नीति के मुताबिक नियमित करने व अन्य सेवा लाभ दिए जाने के आदेश पारित किए हैं. राज्य बाल कल्याण एवं शिक्षा परिषद के तहत अनुबंध के आधार पर नियुक्त किए शिक्षकों की एक साथ 9 याचिकाओं का निपटारा करते हुए अदालत ने ये आदेश दिए.
मामले की सुनवाई न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने की. अदालत ने कहा कि प्रार्थियो की सुरक्षित नौकरी और उज्ज्वल भविष्य की उम्मीदें शह और मात का खेल बनकर रह गई हैं. प्रार्थियों को अनुबंध पर जारी रखना, उनकी सेवाओं को नियमित न करना, उन्हें उनके समकक्षों के बराबर भुगतान न करना और उन्हें पेंशन एवं अन्य सेवानिवृत्ति लाभों से वंचित करना उनके भविष्य के प्रति भरोसे के साथ खिलवाड़ है.
प्रार्थियों की दलील थी कि उन्हें अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया था. नियुक्ति के बाद वे दृष्टिहीन, मूक और बधिर बच्चों के लिए सरकारी स्कूलों में कार्यरत उनके समकक्षों के बराबर अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं, लेकिन नियमितीकरण और पेंशन जैसे लाभों के लिए उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है. हाईकोर्ट ने प्रार्थियों की दलीलों से सहमति जताते हुए आदेश दिए कि प्रतिवादीगण याचिकाओं को दाखिल करने की तारीख से प्रार्थियों को सभी सेवा लाभों सहित दृष्टिहीन, मूक व बधिर बच्चों के लिए सरकारी स्कूलों में उनके समकक्षों के समान वेतनमान प्रदान करें.
कोर्ट ने प्रार्थियों को समय-समय पर जारी सरकारी नीति के अनुसार अनुबंध सेवा के अपेक्षित वर्षों को पूरा करने की तारीख से नियमित करने के आदेश जारी किए है. कोर्ट ने प्रार्थियो के वेतन निर्धारण व पेंशन के लिए अनुबंध वाली सेवाओं को गिने जाने के आदेश भी पारित किए. साथ ही प्रतिवादियों को उन मामलों में ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण/पेंशन लाभ जैसे सेवा लाभ जारी करने के आदेश जारी किए है, जो सेवानिवृत्त हो गए हैं. हालांकि, वास्तविक आर्थिक लाभ इन याचिकाओं को दाखिल करने से तीन साल पहले तक ही सीमित रहेगा.
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