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केरल और असम से हिमाचल पहुंची 5 हजार पौधों की डिमांड, 320 रुपये प्रति किलो बिक रहा ये फल - JAPANI FRUIT PLANT DEMAND

कुल्लू की नर्सरियों में तैयार जापानी फल के पौधों की डिमांड केरल और असम से आ रही है. डिटेल में पढ़ें खबर.

जापानी फल के पौधों की बढ़ी डिमांड
जापानी फल के पौधों की बढ़ी डिमांड (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 28, 2025, 10:31 PM IST

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में अब सेब के बाद जापानी फल बागवानों की पसंद बनता जा रहा है. ऐसे में जापानी फल के पौधों को बागवान जिला कुल्लू, मंडी, शिमला और रामपुर के बगीचों के लिए खरीद रहे हैं. इतना ही नहीं अब हिमाचल प्रदेश से बाहर भी जापानी फल की मांग बढ़ रही है. ऐसे में दक्षिण भारत के राज्य केरल और पूर्वोत्तर राज्य असम के बागवान भी जिला कुल्लू से जापानी फल के पौधे ले जा रहे हैं. यहां पर स्थानीय नर्सरी में भी इस पौधे की डिमांड बढ़ गई है.

केरल और असम जा रहे पौधे

कुल्लू की नर्सरियों में तैयार जापानी फल के पौधों की खेप इन राज्यों में जा रही है. जिला कुल्लू से अब जापानी फल के पांच हजार से अधिक पौधे केरल और असम जा चुके हैं. हालांकि केरल में अभी बागवान जापानी फल का प्रयोग कर रहे हैं जबकि असम में पिछली बार जापानी फल का पौधा गया था. इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य पंजाब व साथ लगते क्षेत्र में प्लम के पौधों को लगाने के लिए बागवान कुल्लू की नर्सरियों में ला रहे हैं. पंजाब व साथ लगते क्षेत्रों के बागवान प्लम की अधिक डिमांड कर रहे हैं. इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के शिमला, कोटखाई, रोहड़ू के बागवान सेब के पौधों की खरीद के लिए नर्सरियों में आ रहे हैं.

जापानी फल बन रहा बागवानों की पसंद (ETV Bharat)

कुल्लू की नर्सरियों में सेब, प्लम व जापानी फल के करीब 19 लाख पौधे तैयार किए गए थे. इनमें अब तक करीब 10 लाख पौधे बिक चुके हैं. बीते दिनों हुई बारिश के बाद सेब, प्लम, जापानी फल के पौधों की खरीद में तेजी आई है. कुल्लू जिले के रायसन से लेकर सेउबाग, हुरला, थरास, बजौरा, मौहल आदि क्षेत्रों में 200 से अधिक पंजीकृत नर्सरियां हैं. इनमें गुणवत्ता और वैरायटी के आधार बागवानों को पौधे उपलब्ध करवाए जा रहे हैं.

हालांकि, बागवानी विभाग की ओर से नर्सरी में सेब, नाशपाती, पलम और जापानी फल के पौधों के लिए ऑर्डर आ रहे हैं. नर्सरी संचालक बनवारी शर्मा ने बताया "जापानी फल का पौधा केरल और असम जा रहा है. जनवरी महीने के आखिरी सप्ताह तक नर्सरी का स्टॉक 80 फीसदी तक खत्म होने के आसार हैं. इसके अलावा सेब, पलम, नाशपाती के पौधों की भी मांग बढ़ गई है. जिला कुल्लू के अलावा पंजाब, शिमला, उत्तराखंड के बागवान भी इसके लिए संपर्क कर रहे हैं."

जापानी फल के पौधे
जापानी फल के पौधे (ETV Bharat)

रोशन आनंद, विषयवाद विशेषज्ञ, उद्यान फल विकास परियोजना ने बताया "कुल्लू जिला की नर्सरियों में तैयार होने वाला सेब, जापानी फल, प्लम व अन्य फलदार पौधों की नई पौध की डिमांड काफी अधिक होती है. बाहरी राज्यों में भी कुल्लू से पौधों की सप्लाई जाती है जिसमें उत्तराखंड, असम और केरल भी अब शामिल हुए हैं. वही, बागवानों से अपील की गई है कि वे पौधे खरीदने के बाद नर्सरी से बिल जरूर लें."

320 रुपये प्रति किलो मिल रहा दाम

गौर रहे कि जिला कुल्लू में जापानी फल की फुयु और हेचिया प्रजाति का उत्पादन हो रहा है. इसमें फुयु प्रजाति के फल की मांग बाजार में अधिक है और बागवानों को इसके 230 रुपये प्रति किलो तक दाम मिल रहे हैं. फुयु प्रजाति का फल कच्चा भी खाया जा सकता है, जबकि हेचिया प्रजाति के फल को पकने के बाद ही खा सकते हैं. प्रदेश में जापानी फल की छह प्रजातियों अमेरिकन पैसोमन, जर्मनी पैसोमन, फूयू, हैचिया, टैक्सीस और पैरूमन का उत्पाद होता है. कुल्लू की लगघाटी, मणिकर्ण, गड़सा, बजौरा, झिड़ी, हुरला में जापानी फल का अधिक उत्पादन होता है.

कुल्लू में जापानी फल के पौधों के साथ बागवान
कुल्लू में जापानी फल के पौधों के साथ बागवान (ETV Bharat)

जापानी फल में होती है विटामिन सी

जापानी फल की बात करें तो इसमें न्यूट्रिशन और विटामिन सी की मात्रा अधिक है. जिस कारण इस फल की डिमांड अधिक रहती है. जिला कुल्लू में जब सेब का सीजन खत्म हो जाता है तो उसके बाद जापानी फल का सीजन शुरू हो जाता है. इन दिनों जापानी फल से भरे हुए पेड़ लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. दिसंबर माह में सभी फलों के पौधे खाली हो गए हैं लेकिन जापानी फल के पौधे फलों से भरे हुए रहते हैं.

जापानी फल को सबसे पहले चीन में उगाया गया और उसके बाद चीन, जापान से होते हुए यह कोरिया पहुंचा. भारत में जापानी फल के पौधे साल 1921 में लाए गए थे. साल 1941 में शिमला के बागवानों ने सेब के पौधों में जापानी फल के पौधे लगाए थे और एक अनुमान के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में करीब 10 हजार बागवान अपनी जमीन पर जापानी फल की खेती करते हैं.

ये भी पढ़ें: अब सुक्खू सरकार की ऐसे भी होगी कमाई, अतिरिक्त राजस्व अर्जित करने के लिए कमेटी का गठन

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में अब सेब के बाद जापानी फल बागवानों की पसंद बनता जा रहा है. ऐसे में जापानी फल के पौधों को बागवान जिला कुल्लू, मंडी, शिमला और रामपुर के बगीचों के लिए खरीद रहे हैं. इतना ही नहीं अब हिमाचल प्रदेश से बाहर भी जापानी फल की मांग बढ़ रही है. ऐसे में दक्षिण भारत के राज्य केरल और पूर्वोत्तर राज्य असम के बागवान भी जिला कुल्लू से जापानी फल के पौधे ले जा रहे हैं. यहां पर स्थानीय नर्सरी में भी इस पौधे की डिमांड बढ़ गई है.

केरल और असम जा रहे पौधे

कुल्लू की नर्सरियों में तैयार जापानी फल के पौधों की खेप इन राज्यों में जा रही है. जिला कुल्लू से अब जापानी फल के पांच हजार से अधिक पौधे केरल और असम जा चुके हैं. हालांकि केरल में अभी बागवान जापानी फल का प्रयोग कर रहे हैं जबकि असम में पिछली बार जापानी फल का पौधा गया था. इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य पंजाब व साथ लगते क्षेत्र में प्लम के पौधों को लगाने के लिए बागवान कुल्लू की नर्सरियों में ला रहे हैं. पंजाब व साथ लगते क्षेत्रों के बागवान प्लम की अधिक डिमांड कर रहे हैं. इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के शिमला, कोटखाई, रोहड़ू के बागवान सेब के पौधों की खरीद के लिए नर्सरियों में आ रहे हैं.

जापानी फल बन रहा बागवानों की पसंद (ETV Bharat)

कुल्लू की नर्सरियों में सेब, प्लम व जापानी फल के करीब 19 लाख पौधे तैयार किए गए थे. इनमें अब तक करीब 10 लाख पौधे बिक चुके हैं. बीते दिनों हुई बारिश के बाद सेब, प्लम, जापानी फल के पौधों की खरीद में तेजी आई है. कुल्लू जिले के रायसन से लेकर सेउबाग, हुरला, थरास, बजौरा, मौहल आदि क्षेत्रों में 200 से अधिक पंजीकृत नर्सरियां हैं. इनमें गुणवत्ता और वैरायटी के आधार बागवानों को पौधे उपलब्ध करवाए जा रहे हैं.

हालांकि, बागवानी विभाग की ओर से नर्सरी में सेब, नाशपाती, पलम और जापानी फल के पौधों के लिए ऑर्डर आ रहे हैं. नर्सरी संचालक बनवारी शर्मा ने बताया "जापानी फल का पौधा केरल और असम जा रहा है. जनवरी महीने के आखिरी सप्ताह तक नर्सरी का स्टॉक 80 फीसदी तक खत्म होने के आसार हैं. इसके अलावा सेब, पलम, नाशपाती के पौधों की भी मांग बढ़ गई है. जिला कुल्लू के अलावा पंजाब, शिमला, उत्तराखंड के बागवान भी इसके लिए संपर्क कर रहे हैं."

जापानी फल के पौधे
जापानी फल के पौधे (ETV Bharat)

रोशन आनंद, विषयवाद विशेषज्ञ, उद्यान फल विकास परियोजना ने बताया "कुल्लू जिला की नर्सरियों में तैयार होने वाला सेब, जापानी फल, प्लम व अन्य फलदार पौधों की नई पौध की डिमांड काफी अधिक होती है. बाहरी राज्यों में भी कुल्लू से पौधों की सप्लाई जाती है जिसमें उत्तराखंड, असम और केरल भी अब शामिल हुए हैं. वही, बागवानों से अपील की गई है कि वे पौधे खरीदने के बाद नर्सरी से बिल जरूर लें."

320 रुपये प्रति किलो मिल रहा दाम

गौर रहे कि जिला कुल्लू में जापानी फल की फुयु और हेचिया प्रजाति का उत्पादन हो रहा है. इसमें फुयु प्रजाति के फल की मांग बाजार में अधिक है और बागवानों को इसके 230 रुपये प्रति किलो तक दाम मिल रहे हैं. फुयु प्रजाति का फल कच्चा भी खाया जा सकता है, जबकि हेचिया प्रजाति के फल को पकने के बाद ही खा सकते हैं. प्रदेश में जापानी फल की छह प्रजातियों अमेरिकन पैसोमन, जर्मनी पैसोमन, फूयू, हैचिया, टैक्सीस और पैरूमन का उत्पाद होता है. कुल्लू की लगघाटी, मणिकर्ण, गड़सा, बजौरा, झिड़ी, हुरला में जापानी फल का अधिक उत्पादन होता है.

कुल्लू में जापानी फल के पौधों के साथ बागवान
कुल्लू में जापानी फल के पौधों के साथ बागवान (ETV Bharat)

जापानी फल में होती है विटामिन सी

जापानी फल की बात करें तो इसमें न्यूट्रिशन और विटामिन सी की मात्रा अधिक है. जिस कारण इस फल की डिमांड अधिक रहती है. जिला कुल्लू में जब सेब का सीजन खत्म हो जाता है तो उसके बाद जापानी फल का सीजन शुरू हो जाता है. इन दिनों जापानी फल से भरे हुए पेड़ लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. दिसंबर माह में सभी फलों के पौधे खाली हो गए हैं लेकिन जापानी फल के पौधे फलों से भरे हुए रहते हैं.

जापानी फल को सबसे पहले चीन में उगाया गया और उसके बाद चीन, जापान से होते हुए यह कोरिया पहुंचा. भारत में जापानी फल के पौधे साल 1921 में लाए गए थे. साल 1941 में शिमला के बागवानों ने सेब के पौधों में जापानी फल के पौधे लगाए थे और एक अनुमान के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में करीब 10 हजार बागवान अपनी जमीन पर जापानी फल की खेती करते हैं.

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