प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार काउंसिल आफ उत्तर प्रदेश से वकीलों को हड़ताल और शोक सभाओं जैसे आयोजनों से रोकने के लिए गाइडलाइन प्रस्तुत करने के लिए कहा है. कोर्ट ने बलिया की रसड़ा तहसील में एक साल से चल रही हड़ताल पर गंभीर रूप अख्तियार करते हुए बार काउंसिल को यह निर्देश दिया है. अदालत ने बार काउंसिल से यह भी पूछा है कि ऐसी स्थिति में जिम्मेदार पदाधिकारी या अधिवक्ताओं के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है या क्या कार्रवाई की गई है, इसकी जानकारी भी दी जाए. बलिया के जंग बहादुर कुशवाहा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने यह आदेश दिए.
याची ने जनहित याचिका दाखिल कर बलिया की रसड़ा तहसील में 31 जनवरी 2023 से चल रही हड़ताल का मुद्दा उठाया. कहा गया कि वकीलों की हड़ताल के कारण आम लोगों को काफी परेशानी हो रही है. उनके मुकदमों का निस्तारण नहीं हो पा रहा है. हाईकोर्ट ने इस मामले में बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश से जानकारी मांगी थी कि उन्होंने इस मसले पर क्या कदम उठाए हैं. बार काउंसिल की ओर से बताया गया कि फिलहाल हड़ताल समाप्त हो गई है.
कोर्ट का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने हरीश उप्पल सहित कई न्यायिक निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि वकीलों की हड़ताल गैर व्यावसायिक है. कोर्ट ने कहा कि अगर अदालतें लंबे समय तक बंद रहेंगी तो लोग न्याय पाने के लिए गैरकानूनी उपायों का सहारा लेने लगेंगे. जैसे कि वह अपराधियों से अपना मामला सुलझाने में मदद ले सकते हैं या खुद अपराध करने लगेंगे या फिर अन्य कोई भ्रष्ट तरीका अपनाएंगे. अगर यह स्थिति लंबे समय तक रहती है तो यह समाज और लोगों तथा देश के हित में नहीं होगी.
कोर्ट ने कहा कि हर मुकदमा जो किसी जज या वकील के सामने आता है उसमें कोई न कोई मानवीय समस्या लोगों के जीवन, स्वतंत्रता, आजीविका, परिवार, व्यवसाय, कार्य, आवास, आश्रय आदि से संबंधित होता है. बहुत से गरीब लोग अदालत आते हैं, जिनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है.