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हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपी डाक्टर दंपति के खिलाफ जारी सम्मन किया रद्द - High Court Judgment

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजीपुर के डॉक्टर दंपति के खिलाफ सीजेएम कोर्ट द्वारा जारी सम्मन को रद्द करते हुए अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि फाइनल रिपोर्ट खारिज करने के बाद आरोपी को सम्मन जारी करना गंभीर मामला है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 24, 2024, 9:49 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सम्मन जारी करना है गंभीर मामला है. यह तब और गंभीर हो जाता है जब विवेचना के नतीजे को रद्द करने के बाद जारी किया जाए. मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसा करने से पूर्व अपने आदेश में इसका कारण दर्ज करना जरूरी है. कोर्ट ने गाजीपुर के डॉक्टर दंपति के खिलाफ सीजेएम कोर्ट गाजीपुर द्वारा जारी सम्मन को रद्द कर दिया है. डॉ. राजेश सिंह और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिया.

डॉ. राजेश और उनकी पत्नी व अस्पताल के कुछ स्टाफ के खिलाफ शिकायतकर्ता ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी. जिसमें शिकायकर्ता ने बताया कि वह अपनी पत्नी को ऑपरेशन के लिए सिंह लाइफ केयर हॉस्पिटल राजेपुर गाजीपुर में भर्ती किया था. उनका बेटा जब डॉक्टर को बुलाने गया तो वहां किसी बात को लेकर डॉक्टर और स्टाफ के लोगों ने उसकी पिटाई कर दी. जिससे उसकी मौत हो गई. शिकायतकर्ता का दावा था कि उसने स्वयं उसकी बेटी और भतीजे ने घटना को अपनी आंखों से देखा.

इस घटना की जांच के लिए एसआईटी गठित की गई. एसआईटी ने अपनी विस्तृत जांच में पाया कि मृतक का कुछ अन्य मरीजों के तीमारदारों के साथ झगड़ा हुआ था. अस्पताल के स्टाफ ने बीच बचाव के बाद उसे अस्पताल से बाहर कर दिया और बाहर दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई. एसआईटी ने कई गवाहों के लाई डिटेक्टर टेस्ट और नार्को टेस्ट भी करवाए. तीनों चश्मदीद गवाहों का बयान भी लिया गया. उनके बयानों में भी भिन्नता पाई गई. इस आधार पर एसआईटी ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

इसके खिलाफ शिकायतकर्ता ने प्रोटेस्ट पिटीशन दाखिल की. सीजेएम ने प्रोटेस्ट पिटीशन स्वीकार करते हुए फाइनल रिपोर्ट रद्द कर दी और इसके खिलाफ निगरानी भी सेशन कोर्ट ने रद्द कर दी. जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट ने कहा कि अगर विवेचना सही नहीं थी तो अग्रिम विवेचना का आदेश देना चाहिए था. ट्रायल कोर्ट को पूरी रिपोर्ट रद्द नहीं करनी चाहिए थी, वह भी सिर्फ इसलिए की जांच में कुछ सवाल अधूरे रह गए हैं. सीजेएम के आदेश में ऐसा करने का कारण दर्ज़ नहीं किया गया है.

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