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महिला से शादी का वादा कर संबंध बनाने के आरोपी न्यायिक मजिस्ट्रेट को मिली राहत - high court allahabad

high court allahabad: न्याायिक मजिस्ट्रेट के एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश आया है. चलिए जानते हैं इस बारे में.

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high court allahabad (photo credit: social media)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 30, 2024, 6:46 AM IST

high court allahabad: प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला से शादी का वादा कर संबंध बनाने के आरोपी न्यायिक मजिस्ट्रेट को राहत देते हुए उनके विरुद्ध महानिबंधक द्वारा की गई कार्रवाई को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि महिला की ओर से लगाए गए आरोपों से याची को विभागीय जांच में बरी किया गया है इसलिए बिना आरोप साबित हुए कार्रवाई उचित नहीं है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि न्यायिक अधिकारी के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई में अनियमितताएं हैं. ऐसे में अधिकारी के 2018 से वेतन वृद्धि रोकने का आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है. यह आदेश न्यायमित्र सौमित्र दयाल सिंह व न्यायमूर्ति डी रमेश की पीठ ने सुनवाई करते हुए दिया.


मामले के अनुसार याचिकाकर्ता का चयन सिविल जज के पद पर चयन हुआ था और पहली नियुक्ति मऊ जिले में न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में हुई. इस दौरान प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले कई लोग फेसबुक के माध्यम से याची से जुड़े. लखनऊ निवासी 25 वर्षीय महिला भी फेसबुक के माध्यम से दोस्त बनी. इसके बाद महिला ने न्यायिक मजिस्ट्रेट पर आरोप लगाया कि शादी का झूठा वादा करके उसके साथ संबंध बनाए. इसका विरोध किया, तो जान से मारने की धमकी दी और झूठे मुकदमे में फंसाकर उसके पूरे परिवार को जेल में डालने की धमकी दी. महिला ने इस संबंध में जिला जज मऊ से शिकायत की. रजिस्ट्रार जनरल, हाईकोर्ट ने इस मामले में जिला जज मऊ को जांच अधिकारी नियुक्त किया.

जांच रिपोर्ट में याची को मुख्य आरोप से मुक्त कर दिया. साथ ही टिप्पणी की कि अज्ञात महिला से फेसबुक फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार करना और उसके साथ बातचीत करना. महिला के बैंक खाते में रुपये का भुगतान करना न्यायिक मानदंडों के खिलाफ है. रिपोर्ट के आधार पर रजिस्ट्रार जनरल ने 2018 से वेतन वृद्धि रोकने का आदेश दिया. इसके विरोध में हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध लगाए गए प्राथमिक आरोप सिद्ध नहीं हुए. जांच रिपोर्ट में दोषमुक्त करने का स्पष्ट उल्लेख है. ऐसे में जब तक कि शिकायतकर्ता उपस्थित होकर अपनी शिकायत को सिद्ध नहीं कर देती तब तक याची के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करना उचित नहीं. कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए 13 मई 2022 का आदेश रद्द कर दिया.

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