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कृष्ण जन्मभूमि मामले में जारी रहेगी सुनवाई, एमिकस क्यूरी मनीष गोयल को हटाने की मुस्लिम पक्ष ने दी अर्जी - Amicus Curiae Manish Goyal

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों की पोषणीयता को लेकर चल रही सुनवाई गुरुवार को भी पूरी नहीं हो सकी. चौथे दिन भी मुस्लिम पक्ष अपनी बहस को खत्म नहीं कर सका..

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 29, 2024, 6:37 PM IST

प्रयागराज : श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों की पोषणीयता को लेकर चल रही सुनवाई गुरुवार को भी पूरी नहीं हो सकी. अदालत इस मामले में अब 13 मार्च को सुनवाई करेगी. सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से करीब डेढ़ घंटे तक दलीलें पेश की गईं. हालांकि चौथे दिन भी मुस्लिम पक्ष अपनी बहस को खत्म नहीं कर सका है. मुस्लिम पक्ष की तरफ से चार प्रमुख बिंदुओं पर दलीलें पेश की गईं.

न्यायमित्र को हटाने की मांग

मुस्लिम पक्ष की तरफ से कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर मुकदमे में एमिकस क्यूरी यानी न्यायमित्र नियुक्त किए गए यूपी सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल को हटाए जाने की मांग की गई. मुस्लिम पक्ष की अर्जी में कहा गया है कि एमिकस क्यूरी मनीष गोयल पक्षपात कर रहे हैं. वह हिंदू पक्ष की मदद कर रहे हैं. मुस्लिम पक्ष की बहस पर वह हिंदू पक्ष के वकीलों से पहले ही उनका बचाव करने के लिए खड़े हो जाते हैं. अर्जी में यह भी कहा गया है कि वह यूपी सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल हैं. सरकारी वकील हैं. सरकार की मंशा और निर्देशों के मुताबिक कोर्ट में दलीलें पेश करते हैं. ऐसे में वह निष्पक्ष होकर काम नहीं कर रहे हैं. मुस्लिम पक्ष की अर्जी में उन्हें हटाकर किसी दूसरे वकील को एमिकस क्यूरी नियुक्त किए जाने की मांग की गई है. हालांकि हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष की इस अर्जी का विरोध कर अपना एतराज जताया और आपत्ति दाख़िल करने का समय मांगा. अदालत ने अभी मुस्लिम पक्ष की अर्जी पर सुनवाई नहीं की है.

मामले की सुनवाई जस्टिस मयंक कुमार जैन कर रहें हैं. मुस्लिम पक्ष की तरफ से सुप्रीम कोर्ट की वकील तसनीम अहमदी ने दलीलें पेश कीं. उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनी बातों को कोर्ट के सामने रखा. तसनीम अहमदी की तरफ से मुकदमों की पोषणीयता को लेकर चार प्रमुख दलीलें पेश की गईं.

मुस्लिम पक्ष ने रखीं चार दलीलें

मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया कि मथुरा मामले को लेकर दाखिल किए गए मुकदमे 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से बाधित हैं. इसकी वजह से मुकदमों की सुनवाई नहीं हो सकती. दूसरी दलील लिमिटेशन एक्ट को लेकर दी गई. कोर्ट में कहा गया कि मंदिर पक्ष और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच 1968 में समझौता हो चुका है. समझौते के तहत ही शाही ईदगाह मस्जिद को 13.37 एकड़ जमीन मिली हुई है. इस समझौते की डिक्री भी 1973 में मथुरा की अदालत में हो चुकी है. नियम के मुताबिक समझौते और डिक्री को 3 साल के अंदर ही चुनौती दी जा सकते थी. अब 50 साल बाद मुकदमा दाखिल करने की कोई कानूनी वैधानिकता नहीं है. इसके अलावा यह भी कहा गया कि शाही ईदगाह मस्जिद वक्फ प्रॉपर्टी है. वक्फ प्रॉपर्टी होने की वजह से यह मामला वक्फ ट्रिब्यूनल में ही चल सकता है. चौथी दलील यह दी गई कि हिंदू पक्ष के पास इस मामले में कब्जा नहीं है, इसलिए यह मामले इस स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट से भी बाधित हैं. मुस्लिम पक्ष ने मुख्य रूप से इन्हीं चार दलीलों के आधार पर अपनी बातों को रखा है.

सभी पक्षों की बहस के बाद ही पोषणीयता पर फैसला

13 मार्च को होने वाली सुनवाई में सबसे पहले मुस्लिम पक्ष अपनी बची हुई दलीलों को पूरा करेगा. इसके बाद हिंदू पक्ष को अपनी बहस पेश करने का मौका दिया जाएगा. उम्मीद जताई जा रही है कि हिंदू पक्ष भी दो से तीन दिनों की सुनवाई में अपनी दलीलें खत्म करेगा. सभी पक्षों की बहस खत्म होने के बाद ही पोषणीयता को लेकर अदालत अपना फैसला सुनाएगी. मथुरा के मंदिर में मस्जिद विवाद को लेकर दाखिल किए गए डेढ़ दर्जन मुकदमों की सुनवाई अयोध्या विवाद की तर्ज पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीधे तौर पर हो रही है.

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