अजमेर. मौसम परिवर्तन के साथ ही कई तरह की बामारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. इन रोग में पीलिया भी शामिल है. मेडिकल की भाषा पीलिया को जोंडिस कहते हैं. पीलिया होने के कई कारण है, लेकिन इनमें मुख्य कारण दूषित भोजन, जल और पेय पदार्थ है. हमारे शरीर में लीवर का मुख्य काम खाने को पचाने का होता है. आयुर्वेदिक उपचार पद्धति में पीलिया का कारगर इलाज है. वहीं, कुछ नुस्खे भी हैं, जिनके उपयोग से पीलिया के मरीजों को फायदा होता है. चलिए अजमेर संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल के आयुर्वेद विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बीएल मिश्रा से पीलिया होन के कारण, लक्षण और उपचार के बारे में जानते हैं.
डॉ. मिश्रा बताते हैं कि शरीर में पाचक पित्त के विकृत होने से पीलिया नाम की बीमारी होती है. एलोपैथी में पाचक पित्त को बिलीरिबन के नाम से जाना जाता है. विकृत पित्त की रक्त में मात्रा बढ़ जाने से आंखों, नाखून और त्वचा का रंग हल्दी सा नजर आने लगता है, जिसको आम बोलचाल की भाषा में पीलिया कहा जाता है. उन्होंने बताया कि इस विकृत पित्त की मात्रा रक्त में अधिक होने से मस्तिष्क में सूजन आ जाती है. साथ ही मस्तिष्क की कार्य क्षमता कम हो जाती है. इस स्थिति में यह हेपेटाइटिस का रूप ले लेता है. यकृत (लीवर) में पाचक पित्त के सूख जाने से रक्त कण बनाना काम हो जाता है, जिससे शरीर में पीलापन आने लगता है.
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पीलिया के लक्षण :वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि लीवर में सूजन, भूख नहीं लगाना, सिर दर्द, बुखार, घबराहट, पेट का फूलना (आफरा आना), काम में मन न लगना, शरीर में थकान, कमजोरी, चक्कर आना, नाखून और आंखों में पीलापन नजर आना, मूत्र का रंग पीला होना, मल का रंग बदलना आदि पीलिया के लक्षण हैं.
पीलिया होने के कारण :डॉ. मिश्रा बताते हैं कि मौसम में बदलाव के समय पीलिया होने की संभावना अधिक रहती है. सर्दी के बाद गर्मी बढ़ने पर खानपान में असावधानी से पीलिया होने की संभावना अधिक होती है. दरअसल, गर्मी पड़ने पर खाद्य सामग्री ताजा ही इस्तेमाल की जानी चाहिए. डिब्बा बंद खाद्य सामग्री, बाजार में बनने वाली खाद्य सामग्री का इस्तेमाल कम किया जाना चाहिए. घर पर ताजा बना हुआ भोजन ही ग्रहण करना चाहिए. गर्मी के कारण भोजन में जल्द बैक्टीरिया पनप जाते हैं. ऐसे भोजन का सेवन करने से पीलिया हो जाता है. दूषित जल और अन्य पेय पदार्थों के सेवन के कारण भी हो जाता है.