झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / state

450 साल पुराना है हजारीबाग का नरसिंह स्थान मेला, जानिए इसे क्यों कहा जाता है केतारी मेला - NARASIMHA TEMPLE OF HAZARIBAG

हजारीबाग के नरसिंह स्थान मंदिर में हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मेला लगता है. इस केतारी मेला भी कहा जाता है.

kartik-purnima-mela-years-old-narasimha-temple-hazaribag
नरसिंह मंदिर में लगा कार्तिक पुर्णिमा का मेला (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Nov 15, 2024, 5:55 PM IST

हजारीबाग:शहर के मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर बड़कागांव मार्ग पर कटकमदाग प्रखंड के खपरियावां गांव में स्थित ऐतिहासिक नरसिंह स्थान मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मेला का आयोजन किया जाता है. स्थानीय लोग इस मेले को केतारी मेला भी कहते हैं. जिसमें कार्तिक पूर्णिमा के दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करने आते हैं.


हजारीबाग के खपरियावां में नरसिंह मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भव्य मेला का आयोजन किया जाता है. जिसे स्थानीय लोग केतारी मेला भी कहते हैं. अति प्राचीन धरोहर लगभग साढ़े चार सौ वर्ष के इतिहास को संजोए हुए है यह मंदिर. यहां भगवान विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है. जो काले रंग के ग्रेफाइट पत्थर की बनी है. यहां गर्भ गृह में भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव विराजमान हैं. यहां स्थापित शिवलिंग जमीन से तीन फीट नीचे है. गर्भ गृह में शिव के साथ विष्णु भगवान के विराजमान रहने का अद्भुत संयोग है, जो वैष्णव और शिव भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

जानकारी देते हुए ईटीवी भारत संवाददाता गौरव प्रकाश (ईटीवी भारत)

इसके अलावा भगवान सूर्य देव, नारद, शिव पार्वती और नवग्रह के प्रतिमा दर्शनीय हैं. गर्भगृह के बाहर हनुमान जी की प्रतिमा है. यहां सालों भर दर्शन पूजन करने श्रद्धालु आते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजा का अपना एक अलग महत्व है. कार्तिक और माघ महीने में भक्तों की भीड़ यहां बढ़ जाती है. यहां मुंडन, उपनयन, शादी विवाह व अन्य धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं.

श्री नरसिंह मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. इसकी स्थापना 1632 ई. में पंडित दामोदर मिश्र ने की थी. वो संस्कृत और ज्योतिष के विद्वान होने के साथ-साथ तांत्रिक भी थे. देवी के उपासक पंडित दामोदर मिश्र ने स्वप्न देखा था कि नेपाल के काक भूसारी पर्वत में भगवान नरसिंह के प्रतिमा है. जब पंडित दामोदर मिश्र वहां गए और उन्होंने अपने स्वप्न में देखे हुए जगह की तलाश की, तो उन्हें वह मूर्ति मिली. जिस मूर्ति को हजारीबाग के खपरियावां मंदिर में स्थापित की. जो बाद में नरसिंह स्थान के रूप में जाना जाने लगा है.

उस समय मंदिर मंडपनुमा था. एक कक्षीय खपरैल भवन में पाषाण काल की मूर्ति रखी गई है. मंदिर परिसर में एक विशाल कुआं है, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसका अंत पता नहीं चलता, अर्थात वह पताल कुआं है. बाद में स्वर्गीय लंबोदर पाठक ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया और आज यह भव्य मंदिर के रूप में विद्यमान है.

यह मेला किसानों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बिंदू है. 450 सालों से किसान ईख बेचने के लिए पहुंचते हैं. यह मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा करने के बाद ईख घर ले जाना जरूरी होता है. जिसे लोग प्रसाद के रूप में भी ग्रहण करते हैं. इस कारण भी इसे केतारी मेला के नाम से लोग जानते हैं. सिर्फ हजारीबाग ही नहीं दूसरे जिले से भी किसान ईख लेकर यहां बेचने पहुंचते हैं. पाषाण कालीन नरसिंह मंदिर भगवान मनोकामना पूरा करने वाले देवता कहे जाते हैं. यह भी कहा जाता है कि पूरे झारखंड में नरसिंह भगवान का यह इकलौता मंदिर है.

ये भी पढ़ें-हजारीबाग में 400 साल पुराना मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा मेलाः जानिए, क्या है केतारी मेला मान्यता

झारखंड का एकलौता मंदिर है नरसिंह मंदिर, कार्तिक पूर्णमासी के दिन इसका है खास महत्व

हजारीबागः ऐतिहासिक नरसिंह मंदिर की दान पेटी से चोरी, 2 साल से नहीं खुली थी

ABOUT THE AUTHOR

...view details