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उत्तराखंड में रात को होती है हरियाली देवी कांठा यात्रा, मां अपने मायके हरियाल पर्वत होती हैं रवाना

ऐतिहासिक हरियाली देवी कांठा यात्रा धनतेरस को रात को निकलेगी. इस दिन मां हरियाली देवी अपने मायके हरियाल पर्वत के लिए रवाना होती हैं.

HISTORIC HARIYALI DEVI YATRA
हरियाली देवी कांठा यात्रा (Photo- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 4 hours ago

रुद्रप्रयाग: विश्व प्रसिद्ध हरियाली देवी कांठा यात्रा को लेकर भक्तों में खासा उत्साह का माहौल बना हुआ है. हर वर्ष की भांति इस बार भी धनतेरस के दिन यात्रा का आगाज होगा. यह विश्व की एक ऐसी यात्रा है, जो रात के समय की जाती है और इस यात्रा में हजारों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं. यह यात्रा सालभर में एक बार होती है, जिसका इंतजार भक्तों को बेसब्री से रहता है.

महालक्ष्मी के रूप में हरियाली देवी की पूजा:हरियाली देवी को विष्णुशक्ति, योगमाया और महालक्ष्मी के रूप माना जाता है. इस देवी की क्रियाएं सात्विक रूप में पालन की जाती हैं. यात्रा करने से सात दिन पूर्व तामसिक भोजन मीट-मांस, मदिरा, प्याज और लहसुन का त्याग करना जरूरी होता है. हरियाली देवी कांठा यात्रा 29 अक्टूबर को धनतेरस के दिन जसोली गांव से शाम साढ़े छः बजे अपने मूल स्थान से हरि पर्वत की ओर प्रस्थान करेगी, जिसकी ऊंचाई समुद्रतल से 9,500 फीट है.

जसोली मंदिर से हरियाली पर्वत की दूरी दस किलोमीटर:हरियाली देवी कांठा यात्रा के चार मुख्य पड़ाव हैं. जसोली मंदिर से हरियाली पर्वत की दूरी लगभग दस किलोमीटर है. जसोली से यात्रा शाम के समय प्रस्थान करेगी और अपने पहले पड़ाव कोदिमा पहुंचेगी. यहां से लगभग आठ बजे यात्रा अपने दूसरे पड़ाव बासो पहुंचेगी. यहां पर हजारों भक्त अलाव का सहारा लेकर जंगल में भजन-कीर्तन करते हैं.

उत्तराखंड में रात को होती है हरियाली देवी कांठा यात्रा (video-ETV Bharat)

सूर्य की पहली किरण के साथ मंदिर में प्रवेश करेगी मां की डोली:रात 12 बजे के बाद यात्रा तीसरे पड़ाव पंचरंग्या पहुंचेगी, जहां मां भगवती को स्नान कराया जाएगा और कुछ समय विश्राम के बाद यात्रा अपने चौथे पड़ाव कनखल को प्रस्थान करेगी. यहां यात्री सुबह पांच बजे तक विश्राम करेंगे. इसके बाद सूर्य की पहली किरण के साथ भगवती की डोली अपने मंदिर में प्रवेश करती है, जहां भगवती के मायके पाबो गांव के लोगों द्वारा भगवती का फूल मालाओं, जयकारों के साथ भव्य स्वागत किया जाता है. हरियाल मंदिर में पूजा-अर्चना, हवन के बाद यात्रा जसोली मंदिर की ओर प्रस्थान करती है. पूरी यात्रा नंगे पांव की जाती है. यह यात्रा घने जंगल के बीच से होकर भगवती के जयकारों के साथ होती है.

धनतेरस को निकलेगी हरियाली देवी की यात्रा:हरियाली मंदिर के मुख्य पुजारी विनोद प्रसाद मैठाणी ने कहा कि हरियाली देवी कांठा यात्रा का निर्वहन हर साल की भांति इस साल भी 29 अक्टूबर धनतेरस के दिन शाम साढ़े छः बजे जसोली मंदिर से हरियाली कांठा के लिए प्रस्थान करेगी. उन्होंने सभी भक्तों से आग्रह किया कि हरियाली देवी की सात्विक क्रियाओं का पालन करें. उन्होंने कहा कि हरियाली देवी डोली यात्रा में भगवती की डोली के साथ उनके भाई हीत और लाटू देवता के निशान भगवती की अगुवाई करते हैं. यात्रा के अगले दिन वापसी में कोदिमा गांव की महिलाएं अपनी धियाण के रूप में हीत की कंडी में भगवती को पूरी, पकौड़ी, नये अनाज का भोग अर्पित करते हैं और नम आंखों के साथ भगवती को जसोली की ओर विदा करते हैं.

हरियाली देवी का जंगल पवित्र वनों में शुमार:विनोद प्रसाद मैठाणी ने कहा कि धनपुर, रानीगढ़, बच्छणस्यूं और चलणस्यूं पट्टियों के लोग भगवती के दर्शन के लिए जसोली पहुंचते हैं. हरियाली देवी यात्रा के दर्शन को लेकर धियाणियों को भी उनके मायके द्वारा बुलाया जाता है. प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली ने बताया कि हरियाली देवी का जंगल पवित्र वनों की श्रेणी में भी आता है. यह वन यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त है और विश्व के बडे़ पवित्र वनों में शुमार है, जिसका संरक्षण देवी के नाम से किया जाता है.

कैसे पहुंचें हरियाली देवी मंदिर:हरियाली मंदिर की दूरी रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से 26 किलोमीटर है. जसोली पहुंचकर शाम साढ़े छः बजे यात्रा में शामिल होकर हरियाल पर्वत के लिए प्रस्थान किया जा सकता है. जसोली से हरियाल पर्वत की दूरी दस किलोमीटर है और यह यात्रा पैदल नंगे पांव की जाती है.

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