रुद्रप्रयाग: विश्व प्रसिद्ध हरियाली देवी कांठा यात्रा को लेकर भक्तों में खासा उत्साह का माहौल बना हुआ है. हर वर्ष की भांति इस बार भी धनतेरस के दिन यात्रा का आगाज होगा. यह विश्व की एक ऐसी यात्रा है, जो रात के समय की जाती है और इस यात्रा में हजारों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं. यह यात्रा सालभर में एक बार होती है, जिसका इंतजार भक्तों को बेसब्री से रहता है.
महालक्ष्मी के रूप में हरियाली देवी की पूजा:हरियाली देवी को विष्णुशक्ति, योगमाया और महालक्ष्मी के रूप माना जाता है. इस देवी की क्रियाएं सात्विक रूप में पालन की जाती हैं. यात्रा करने से सात दिन पूर्व तामसिक भोजन मीट-मांस, मदिरा, प्याज और लहसुन का त्याग करना जरूरी होता है. हरियाली देवी कांठा यात्रा 29 अक्टूबर को धनतेरस के दिन जसोली गांव से शाम साढ़े छः बजे अपने मूल स्थान से हरि पर्वत की ओर प्रस्थान करेगी, जिसकी ऊंचाई समुद्रतल से 9,500 फीट है.
जसोली मंदिर से हरियाली पर्वत की दूरी दस किलोमीटर:हरियाली देवी कांठा यात्रा के चार मुख्य पड़ाव हैं. जसोली मंदिर से हरियाली पर्वत की दूरी लगभग दस किलोमीटर है. जसोली से यात्रा शाम के समय प्रस्थान करेगी और अपने पहले पड़ाव कोदिमा पहुंचेगी. यहां से लगभग आठ बजे यात्रा अपने दूसरे पड़ाव बासो पहुंचेगी. यहां पर हजारों भक्त अलाव का सहारा लेकर जंगल में भजन-कीर्तन करते हैं.
सूर्य की पहली किरण के साथ मंदिर में प्रवेश करेगी मां की डोली:रात 12 बजे के बाद यात्रा तीसरे पड़ाव पंचरंग्या पहुंचेगी, जहां मां भगवती को स्नान कराया जाएगा और कुछ समय विश्राम के बाद यात्रा अपने चौथे पड़ाव कनखल को प्रस्थान करेगी. यहां यात्री सुबह पांच बजे तक विश्राम करेंगे. इसके बाद सूर्य की पहली किरण के साथ भगवती की डोली अपने मंदिर में प्रवेश करती है, जहां भगवती के मायके पाबो गांव के लोगों द्वारा भगवती का फूल मालाओं, जयकारों के साथ भव्य स्वागत किया जाता है. हरियाल मंदिर में पूजा-अर्चना, हवन के बाद यात्रा जसोली मंदिर की ओर प्रस्थान करती है. पूरी यात्रा नंगे पांव की जाती है. यह यात्रा घने जंगल के बीच से होकर भगवती के जयकारों के साथ होती है.