सारण:'म्हारी छोरियां छोरो से कम है के', यह फिल्म का डायलॉग जरूर है लेकिन, बिहार के छपरा में यह चरितार्थ हो रहा है. जैसे पहलवान महावीर फोगाट लड़के की चाहत में एक-दो नहीं चार-चार लड़कियों के पिता बन जाते हैं. उसी तरह बिहार के कमल सिंह भी लड़के की चाहत में एक नहीं, दो नहीं, आठ बेटियों के पिता बन गए. बेटे की चाहत ऐसी थी कि आठ बेटियों के बाद एक लड़के ने जन्म लिया.
मुश्किल थी नौ बच्चों की जिम्मेदारी: सामाजिक ताने-बाने में 8-8 लड़कियों को रखना कमल सिंह के लिए मुश्किल का सबब था. लोग ताने देने लगे, ताने इतने बढ़े की कमल सिंह ने अपने पूरे परिवार के साथ अपना पैतृक गांव नाचाप को छोड़ दिया और छपरा के एकमा में जाकर बस जाते है. आंटे चक्की का बिजनेस करके बेटियों को पालन-पोषण करने लगे. कमल सिंह साल 1982 में बिहार के छपरा जिले के एकमा गांव में आकर बस गए थे. इनके पास पुस्तैनी चार बीघा जमीन थी, जिस पर खेती भी शुरू की.
सभी बेटियों को कामयाब बनाया:समाज और रिश्तेदारों की तरफ से यह दबाव बनने लगा कि सभी बेटियों की शादी जल्द कर दें. लेकिन कमल सिंह ने कुछ और ही ठाना था. एक पिता की हैसियत से उन्हें काबिल बनाने की ली. सामाजिक दबाव में भले अपनी बड़ी बेटी की शादी उन्होंने कर दी लेकिन, बाकी बेटियों की काबिलियत को वह समझते रहे और उन्होंने एक-एक करके सभी बेटियों को कामयाब बनाया.
"पापा कहते थे कि कड़ी मेहनत और ईमानदारी, पूरी लगन और निष्ठा से कार्य करना है. हम लोगों ने उनकी बात को माना, जिसका परिणाम सामने है. आज हमारे पापा की मेहनत रंग लाई है और हम लोग इस मुकाम पर खड़े हैं, यह हमारे पापा की वजह से है. पापा को लोग बेटी होने पर ताना दिया करते थे, लेकिन आज हम बेटियों ने साबित कर दिया है कि बेटियां अभिशाप नहीं वरदान हैं.''- रिंकी, कमल सिंह की बेटी
जब कमल सिंह को छोड़ना पड़ा घर:यह कहानी बिहार की राजधानी पटना से 70 किलोमीटर दूर सारण जिले के गांव एकमा की है. 5 मई 1980 को कमल सिंह की शारदा देवी से शादी हुई. घर की हालत अच्छी नहीं थी. घर में एक-एक कर आठ बेटियों ने जन्म लिया और फिर हुआ एक बेटा. जिसके बाद उन्हें समाज के ताने सुनने को मिलने लगे. रिश्तेदार बेटियों को अभिशाप कहते थे. काफी सुनने के बाद उन्होंने अपनी बेटियों के साथ बिहार के सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र के नाचाप का पैतृक घर छोड़ दिया और सारण के एकमा में बस गए. कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद बेटियों को खूब पढ़ाया और काबिल बनाया.
''हम लोगों ने बचपन से ही लक्ष्य बना लिया था कि हमें अपनी अलग पहचान बनानी है. हमारी सफलता में भी हमारे माता-पिता की अहम भूमिका है. आज हम सबको इस बात का गर्व है कि, मेरे पापा ने जो हमें सिखाया, हम लोगों ने ठीक वैसा ही किया. हमारे पापा ने कभी मुश्किलों से हार नहीं मानी, लगातार मेहनत करते रहे. पड़ोसी और रिश्तेदार अक्सर ताना देते थे, इसके बावजूद पापा ने हम लोगों को ईमानदारी से कार्य करने की प्रेरणा दी और आज उसी वजह से हम सभी बहनें अपने पिता का नाम रोशन कर रहे हैं.''- एएसआई पिंकी सिंह
बड़ी बेटी ने दिखाई राह:वर्ष 2006 में बड़ी बेटी का सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में कांस्टेबल पद पर चयन हो गया, जिसके बाद अन्य बेटियों का हौसला बढ़ा. दूसरी बेटी रानी शादी के बाद 2009 में बिहार पुलिस में कांस्टेबल चुन ली गईं. इसके बाद अन्य पांच बेटियों ने भी विभिन्न बल में नियुक्त हो गईं. कमल सिंह की बेटियां ही एक-दूसरे की शिक्षक और गाइड बनीं. गांव के ही स्कूल में पढ़ीं, और मैदान में जाकर दौड़ की प्रैक्टिस भी करती थी.