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बेटियों की बदौलत छपरा में शान से चलते हैं कमल सिंह, Seven Singh Sister का लोग देते हैं उदाहरण - Fathers Day 2024 - FATHERS DAY 2024

Saran Seven Singh Sisters: आज ईटीवी भारत पिता दिवस (Father's Day) के अवसर पर ऐसे एक पिता की कहानी लेकर आया है, जिनकी 8 बेटियां कामयाब हुईं. अब आसपास के गांव में कमल सिंह की बेटियों का नाम होता है और इन्हें 'सेवन सिंह सिस्टर' कहा जाता है. पढ़ें पूरी खबर..

SARAN SEVEN SINGH SISTERS
सारण की सात सिंह बहन (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jun 16, 2024, 7:10 AM IST

सारण:'म्हारी छोरियां छोरो से कम है के', यह फिल्म का डायलॉग जरूर है लेकिन, बिहार के छपरा में यह चरितार्थ हो रहा है. जैसे पहलवान महावीर फोगाट लड़के की चाहत में एक-दो नहीं चार-चार लड़कियों के पिता बन जाते हैं. उसी तरह बिहार के कमल सिंह भी लड़के की चाहत में एक नहीं, दो नहीं, आठ बेटियों के पिता बन गए. बेटे की चाहत ऐसी थी कि आठ बेटियों के बाद एक लड़के ने जन्म लिया.

मुश्किल थी नौ बच्चों की जिम्मेदारी: सामाजिक ताने-बाने में 8-8 लड़कियों को रखना कमल सिंह के लिए मुश्किल का सबब था. लोग ताने देने लगे, ताने इतने बढ़े की कमल सिंह ने अपने पूरे परिवार के साथ अपना पैतृक गांव नाचाप को छोड़ दिया और छपरा के एकमा में जाकर बस जाते है. आंटे चक्की का बिजनेस करके बेटियों को पालन-पोषण करने लगे. कमल सिंह साल 1982 में बिहार के छपरा जिले के एकमा गांव में आकर बस गए थे. इनके पास पुस्तैनी चार बीघा जमीन थी, जिस पर खेती भी शुरू की.

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सभी बेटियों को कामयाब बनाया:समाज और रिश्तेदारों की तरफ से यह दबाव बनने लगा कि सभी बेटियों की शादी जल्द कर दें. लेकिन कमल सिंह ने कुछ और ही ठाना था. एक पिता की हैसियत से उन्हें काबिल बनाने की ली. सामाजिक दबाव में भले अपनी बड़ी बेटी की शादी उन्होंने कर दी लेकिन, बाकी बेटियों की काबिलियत को वह समझते रहे और उन्होंने एक-एक करके सभी बेटियों को कामयाब बनाया.

"पापा कहते थे कि कड़ी मेहनत और ईमानदारी, पूरी लगन और निष्ठा से कार्य करना है. हम लोगों ने उनकी बात को माना, जिसका परिणाम सामने है. आज हमारे पापा की मेहनत रंग लाई है और हम लोग इस मुकाम पर खड़े हैं, यह हमारे पापा की वजह से है. पापा को लोग बेटी होने पर ताना दिया करते थे, लेकिन आज हम बेटियों ने साबित कर दिया है कि बेटियां अभिशाप नहीं वरदान हैं.''- रिंकी, कमल सिंह की बेटी

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जब कमल सिंह को छोड़ना पड़ा घर:यह कहानी बिहार की राजधानी पटना से 70 किलोमीटर दूर सारण जिले के गांव एकमा की है. 5 मई 1980 को कमल सिंह की शारदा देवी से शादी हुई. घर की हालत अच्छी नहीं थी. घर में एक-एक कर आठ बेटियों ने जन्म लिया और फिर हुआ एक बेटा. जिसके बाद उन्हें समाज के ताने सुनने को मिलने लगे. रिश्तेदार बेटियों को अभिशाप कहते थे. काफी सुनने के बाद उन्होंने अपनी बेटियों के साथ बिहार के सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र के नाचाप का पैतृक घर छोड़ दिया और सारण के एकमा में बस गए. कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद बेटियों को खूब पढ़ाया और काबिल बनाया.

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''हम लोगों ने बचपन से ही लक्ष्य बना लिया था कि हमें अपनी अलग पहचान बनानी है. हमारी सफलता में भी हमारे माता-पिता की अहम भूमिका है. आज हम सबको इस बात का गर्व है कि, मेरे पापा ने जो हमें सिखाया, हम लोगों ने ठीक वैसा ही किया. हमारे पापा ने कभी मुश्किलों से हार नहीं मानी, लगातार मेहनत करते रहे. पड़ोसी और रिश्तेदार अक्सर ताना देते थे, इसके बावजूद पापा ने हम लोगों को ईमानदारी से कार्य करने की प्रेरणा दी और आज उसी वजह से हम सभी बहनें अपने पिता का नाम रोशन कर रहे हैं.''- एएसआई पिंकी सिंह

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बड़ी बेटी ने दिखाई राह:वर्ष 2006 में बड़ी बेटी का सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में कांस्टेबल पद पर चयन हो गया, जिसके बाद अन्य बेटियों का हौसला बढ़ा. दूसरी बेटी रानी शादी के बाद 2009 में बिहार पुलिस में कांस्टेबल चुन ली गईं. इसके बाद अन्य पांच बेटियों ने भी विभिन्न बल में नियुक्त हो गईं. कमल सिंह की बेटियां ही एक-दूसरे की शिक्षक और गाइड बनीं. गांव के ही स्कूल में पढ़ीं, और मैदान में जाकर दौड़ की प्रैक्टिस भी करती थी.

'बेटियां अभिशाप नहीं बल्कि वरदान': इस बीच भी कई लोगों और रिश्तेदारों ने बेटियों के हाथ पीले करने की बात कही, लेकिन ना तो पिता ने उनकी बातों पर ध्यान दिया और ना उनकी जिद्दी बेटियों ने हार मानी. सभी ने आखिरकार अपने मेहनत और लगन से उस मुकाम को हासिल कर लिया और समाज के लोगों को ये दिखा दिया कि बेटियां अभिशाप नहीं बल्कि वरदान होती हैं.

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''हमारी परिस्थिति ठीक नहीं थी, तो हमें गांव छोड़ना पड़ा. किसी तरह गुजर-बसर कर इन्हें पढ़ाया-लिखाया. जब तक नौकरी नहीं लगी, इन्होंने भी हार नहीं मानी. आज सातों बेटियां पुलिस में अपनी सेवा दे रही हैं. भगवान सातों जन्म में यही सात बेटियां मुझे दे. इनसब पर मुझे काफी गर्व है. मुझे तिरछी टोपी काफी अच्छी लगती थी. ऊपर वाले की कृपा से मेरी सभी बेटियां आज इस टोपी को पहनने के लायक हो गई हैं.''- कमल सिंह

कहां पर कौन है कार्यरत: सबसे बड़ी बेटी शादीशुदा नीतू देवी की साल 2008 में ब्रेन हेमरेज के कारण मौत हो गई. बाकी बेटियां कामयाबी की सीढ़िया चढ़ती गईं. चार बेटियां बिहार पुलिस में कांस्टेबल, बाकी तीन बेटियां बिहार आबकारी, एसएसबी और सीआरपीएफ में सेवाएं दे रही हैं. सात बेटियों में राजीव इकलौते बेटा हैं और सरकारी नौकरी की तैयारियों में जुटा है.

''लोग ताना दिया करते थे. लोग कहते थे कि तुम्हारी तो इतनी सारी बहनें है. तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं बचेगा, सब यही लोग ले जाएंगी. मैं उनसे कहता था कि मेरी बहन कुछ ले नहीं जाएंगी, बल्कि उन लोगों ने मेरे लिए काफी कुछ बना दिया है. मुझे गर्व है कि मैं सेवन सिंह सिस्टर का भाई हूं.''- राजीव, कमल सिंह का बेटा

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'बड़ी मुश्किल से पाला-पोसा':कमल सिंह की पत्नी शारदा देवी बताती हैं कि मेरी आठ बेटियां थी. पहले 5 बेटियां होने के बाद उन्हें दो जुड़वा बेटी हुई. फिर एक बेटा हुआ जिसके बाद एक और सबसे छोटी बेटी हुई. लेकिन एक बेटी की किसी कारणवश मौत हो गई. सभी को उन्होंने बड़ी मुश्किल से पाला-पोसा और पढ़ाया लिखाया. लेकिन किसी को कभी ये एहसास नहीं होने दिया कि वह बोझ हैं.

"छोटी थी तो बहुत दिक्कत होती थी. सबको खिलाना-पिलाना काफी मुश्किल था, लेकिन भगवान की कृपा से सब अपने-अपने जगह पर पहुंच गईं. बहुत अच्छा लगता है सबको देखकर."- शारदा देवी

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कमल सिंह की बेटियां बढ़ा रही मान:कमल सिंह की 7 बेटियां में सबसे बड़ी रानी कुमारी सिंह बिहार पुलिस में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं. दूसरी बेटी रेनू कुमारी सिंह एसएसबी में कांस्टेबल हैं. तीसरी बेटी सोनी कुमारी सिंह सीआरपीएफ में हैं. चौथी बेटी प्रीती कुमारी सिंह क्राइम ब्रांच में कार्यरत हैं. पांचवीं बेटी पिंकी कुमारी सिंह एक्ससाइज विभाग में हैं. छठवें नंबर की बेटी रिंकी सिंह बिहार पुलिस में कांस्टेबल हैं और सबसे छोटी बेटी नन्ही कुमारी सिंह जीआरपी पटना में कार्यरत है.

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