कुल्लू:एक तरफ जहां हिमाचल के सरकारी स्कूल में छात्रों के दाखिले में कमी चिंता का कारण है. दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है. सरकारें स्मार्ट क्लास रूम बनाने की बात करती है. स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब बनाने की शुरुआत देश में की गई, लेकिन धरातल पर झांके तो आज भी ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का आधारभूत ढांचा जर्जर ही नजर आता है. बस यहां स्कूल के नाम का फट्टा जरूर है, लेकिन स्कूल जैसा यहां कुछ भी नहीं है.
आज भी ग्रामीण इलाको में शिक्षा ग्रहण करने के लिए छात्रों को कई दिक्कत का सामना करना पड़ता है. जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार की ग्राम पंचायत पलाहच में स्थित राजकीय माध्यमिक पाठशाला शट याउगी 8 सालों से अपने नए भवन का इंतजार कर रहा है. स्कूल का अपना भवन न होने के चलते छात्रों को मजबूरी में गांव के सामुदायिक भवन में शिक्षा ग्रहण करनी पड़ रही है. सामुदायिक भवन में भी मात्र दो ही कमरे हैं. एक कमरे में बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं तो दूसरे कमरे में पशुओं का इलाज किया जा रहा है. 8 सालों से भवन की राह देख रहे अभिभावक भी अब अपने बच्चों को दूसरे स्कूलों में स्थानांतरित करने का मन बना चुके हैं. कुछ बच्चे स्कूल छोड़कर निजी स्कूलों में भी प्रवेश ले चुके हैं. अगर जल्द ही स्कूल का नया भवन नहीं बना तो हो सकता है कि आने वाले सत्र में यहां पर बच्चे ही ना रहें.
एक कमरे में पशु चिकित्सालय दूसरे में स्कूल
पलाहच पंचायत के शटयाउगी गांव में सरकार के बेहतर शिक्षा मुहैया करवाने के तमाम दावे खोखले साबित हो रहे हैं. यहां सरकारी स्कूल तो है बच्चे भी हैं, लेकिन नहीं है तो सिर्फ स्कूल का भवन. गांव के समुदायिक भवन के दो कमरों हैं. एक कमरे में पशु पालन विभाग का चिकित्सालय है और दूसरे कमरे में पाठशाला में पढ़ रहे 18 बच्चों को शिक्षा दी जा रही है. पाठशाला को इस भवन में स्थानांतरित किए हुए आठ साल हो चुके हैं, लेकिन शिक्षा विभाग की सुस्त कार्यप्रणाली के कारण नए भवन का निर्माण फाइलों में ही चल रहा है.
2016 में क्षतिग्रस्त हो गया था स्कूल का भवन
गौर रहे कि 2016 में गोलाहधार-रम्बी सड़क निर्माण के चलते पहाड़ी से लगातार मलबा गिर रहा था. स्कूल का शौचालय भी क्षतिग्रस्त हो गया था. स्कूल भवन सहित 20 घरों को खतरा पैदा हो गया. ऐसे में पंचायत प्रतिनिधियों के द्वारा इस बारे शिक्षा विभाग को सूचित किया गया. शिक्षा विभाग की टीम ने मौके पर स्कूल का निरीक्षण किया तो पाया गया कि यह भवन पूरी तरह से असुरक्षित है और यहां पर शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को भी खतरा हो सकता है. आनन फानन में बच्चों को गांव के सामुदायिक भवन में शिफ्ट किया गया और अब 8 साल बीत जाने के बाद भी ये स्कूल यहां ही है.