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WATCH VEDIO: नरमुंडों के सिंहासन पर विराजे भगवान भोलेनाथ, सड़क पर हुआ भूत पिशाच का नाच

Govardhan Puja in Varanasi : यदुवंशी समाज की ओर से सदियों से शोभायात्रा निकालने की है परंपरा.

काशी में निकाली गई शोभायात्रा.
काशी में निकाली गई शोभायात्रा. (Photo Credit : ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 4 hours ago

वाराणसी :दीपावली के बाद शुक्रवार को देशभर में गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जा रहा है. भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी इस परंपरा का निर्वाह भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी में पुरातन समय से होता आ रहा है. इस आयोजन में यदुवंशी समाज के लोग बड़ी संख्या में एकजुट होकर गोवर्धन शोभायात्रा निकालते हैं. इसी क्रम में शुक्रवार को काशी में शोभायात्रा निकाली गई.

काशी में गोवर्धन पूजा के अवसर पर निकाली गई शोभायात्रा. (Video Credit : ETV Bharat)

शोभायात्रा में नरमुंडों और नर कंकाल के बीच भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की झांकी निकाली गई. इस दौरान भूत प्रेत पिशाचों की टोलियों के नृत्य की झलक देखने की मिली. इसके अलावा भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी का महारास का अद्भुत नजारा काशी की सड़कों पर देखने को मिला. मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए अपनी सबसे छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया था और लगातार हो रही बारिश से गोकुलवासियों की रक्षा की थी. तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा है. काशी में भी यह परंपरा सदियों से निभाई जाती रही है.

गोवर्धन पूजा समिति के पूर्व मंत्री ओपी सिंह यादव का कहना है कि काशी में एक पांडू नाम का राजा हुआ करता था, जो अत्याचारी था. उसके अत्याचार से पुरी काशी और आसपास सब लोग परेशान थे. भगवान श्री कृष्ण ने पांडू नाम के राजा का वध करके काशी को उसके आतंक से मुक्त कराया था. तभी से गोवर्धन पूजा के मौके पर काशी में भगवान श्री कृष्ण को धन्यवाद देने और उनकी आराधना के लिए गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाता है. इस मौके पर यदुवंशी समाज के लोग एकजुट होकर शोभायात्रा का आयोजन करते हैं. जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से आए कलाकार झांकियों का प्रदर्शन करते हैं.

ओपी सिंह यादव के अनुसार इस दौरान यदुवंशी समाज के लोग अपने शास्त्र और ताकत का भी प्रदर्शन करते हैं. यह परंपरा सदियों पुरानी है. जिसका निर्वाह दीपावली के अगले दिन करने की परंपरा है. शोभायात्रा 8 किलोमीटर का सफर तय करके गोवर्धन मंदिर पहुंचती है. जहां पर पूजा पाठ के साथ इसका भव्य समापन होता है.

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