देहरादून:उत्तराखंड में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के बयान से गोरखाली समाज नाराज है. गोदियाल ने प्रदेश में नेपाली शिक्षकों को भर्ती किए का विरोध किया था. गोदियाल ने कहा था कि धामी सरकार पीटीए शिक्षकों के पद समाप्त कर नेपाली शिक्षकों की भर्ती कर रही है, उन्होंने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि बच्चों को उपयोगी भाषाएं सीखाए. हालांकि गोरखाली समाज के विरोध के बाद गणेश गोदियाल को फिर से बयान आया है.
पहले का बयान: गोदियाल ने मीडिया को जारी एक बयान में कहा था कि जिन भाषाओं को सीख कर बच्चे भविष्य में कोई रोजगार पा सकें या फिर जीवन में वो भाषा उनके काम आस सके, ऐसी ही भाषाओं को आमतौर पर बच्चों को पढ़ाया जाता है, लेकिन नेपाली भाषा पढ़कर बच्चे किस तरह का रोजगार पा सकेंगे ये सोचने वाली बात है.
विरोध के बाद दिया बयान: गणेश गोदियाल के इस बयान का गोरखाली समाज ने विरोध किया, जिसके बाद अब गणेश गोदियाल एक और बयान दिया. उन्होंने कहा कि उनका मकसद किसी समाज या वर्ग विशेष को टारगेट करने की नहीं है. बल्कि उनका उद्देश्य सरकार की ऐसी नीतियों का विरोध करना है जो उत्तराखंड के युवाओं के हितों की ना हो. विरोध करना उनका नागरिक अधिकार है, और उन्हें इस अधिकार से कोई वंचित नहीं कर सकता है. लेकिन कुछ लोग किसी समाज के विरोध के पक्ष में इसे लेकर जा रहे हैं, ऐसे लोग किसी न किसी वजह से पूर्वाग्रह से ग्रसित है. उन्होंने जो बात कही है वह आज भी उस बात पर कायम है.
इधर गणेश गोदियाल को गोरखा समाज ने संकीर्ण मानसिकता का बताया है. गोरखाली सुधार सभा के अध्यक्ष पदम थापा ने कहा कि बीते दिनों एक बयान में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने राज्य में होने वाले नेपाली भाषी शिक्षकों की भर्ती का विरोध किया था. उनका यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है. स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर गोरखा सैनिकों की वीरता, देशभक्ति और बलिदान में गोरखाओं का अहम योगदान रहा है. ऐसे में एक वरिष्ठ नेता के नेपाली भाषा को लेकर दिया बयान उनकी दूषित मानसिकता को दर्शाता है.
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