गोरखपुर: महान कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन (Bharat Ratna to MS Swaminathan) को, शुक्रवार को केंद्र की मोदी सरकार द्वारा भारत रत्न दिए जाने की घोषणा से, कृषि वैज्ञानिकों, कृषकों और पूरे देशवासियों में खुशी की लहर दौड़ गई. कुछ महीने पहले ही ही स्वामीनाथन का निधन हुआ था. इसके बाद उन्हें मिले देश के इस सर्वोच्च सम्मान ने उनके साथ और उनकी टीम में काम करने वाले, कृषि वैज्ञानिकों को उत्साहित कर दिया है.
ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिकों में से एक हैं डॉक्टर रामचेत चौधरी. वह गोरखपुर में रहते हैं और 25 जनवरी को इन्हें भी पद्मश्री देने घोषणा भारत सरकार ने की है. ईटीवी भारत ने डॉक्टर चौधरी से एमएस स्वामीनाथन को मरणोपरांत भारत रत्न दिये जाने को लेकर विशेष बातचीत की. उन्होंने कहा कि वह मानव नहीं महामानव थे. कृषि और किसानों के बारे में उनकी सोच ने उन्हें विश्व व्यापी बनाया. कृषि सुधार से लेकर संयुक्त राष्ट्र में भी उन्होंने जो अपनी सेवाएं दी, वह पूरी दुनिया याद करती है.
उनकी टीम में, उनके नेतृत्व में, उनके साथ काम कर, उन्होंने कृषि के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है. यही वजह है कि वह बुद्ध के महाप्रसाद के रूप में कहे जाने वाले काला नमक चावल के जीवन को फिर से स्थापित करने में सफलता पाए हैं. अंतरराष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामचेत चौधरी ने कहा कि जब स्वामीनाथ जी का निधन हुआ, तो उनसे जुड़ा कालम उन्होंने ही लिखा, जो देश भर में प्रकाशित हुआ. उनके साथ तीन मौकों पर काम करने का अवसर मिला. पहला मौका था जब हम विश्व बैंक के काम को नाइजीरिया में छोड़ रहे थे.
उस समय उन्हें ऑफर मिला स्वामीनाथन की तरफ से, जब वह अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान फिलिपींस के डायरेक्टर थे. उस समय डॉ. रामचेत ने उनके साथ कम्बोडिया प्रोजेक्ट में ज्वाइन किया था. बाद में उन्होनें उनको काम देखते हुए बड़ी जिम्मेदारी दी. उनको इंजर ग्लोबल कोऑर्डिनेटर बना दिया. इसके तहत दुनिया के ऐसे 110 देश के लिए चावल उत्पादन विशेष तौर पर होता है. वहां पर काम करने की जिम्मेदारी सौंपी.