कोटा : दीपावली पर हर घर में ऐश्वर्य व वैभव की देवी मां लक्ष्मी की पूजा होती है. साथ ही ज्यादातर परिवार मां लक्ष्मी के अंकित सिक्के खरीदते हैं और उनका घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहे इसकी कामना के साथ पूजा के उपरांत उन सिक्कों को सहेज कर रखते हैं. वहीं, वरिष्ठ मुद्रा विशेषज्ञ (न्यूमिजमाटिक्स) एडवोकेट शैलेश जैन कहते हैं कि दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के लिए सिक्के खरीदने की परंपरा रियासतकाल से चल आ रही है. देश के कई राजाओं यहां तक कि विदेशी राजाओं और मुगलों ने भी मां लक्ष्मी पर सिक्के जारी किए थे.
उन्होंने कहा कि मां लक्ष्मी अंकित सिक्कों को ऐश्वर्य, समृद्धि और खजाने में संपन्नता के लिए हिंदू शासकों ने सहेजकर रखा. यही रीत कई मुस्लिम शासकों ने भी अपनाए और मां लक्ष्मी पर सिक्के जारी किए, क्योंकि लक्ष्मी जी को सदियों से ऐश्वर्या, सौभाग्य की देवी के रूप में पूजा जाता रहा है. उन्होंने कहा कि करीब 2300 साल पहले भी मां लक्ष्मी की मूर्ति अंकित सिक्के जारी हुए थे. यहां तक कि विदेशी शासकों द्वारा जारी किए गए कुछ सिक्के आज भी ब्रिटिश और विदेशी म्यूजियम में रखे हैं. न्यूमिजमाटिक्स एडवोकेट शैलेश जैन ने बताया कि ईसा से 300 साल पहले यानी 2300 साल पूर्व भी मां लक्ष्मी की मूर्ति अंकित सिक्के मिले हैं. लगभग इसी कालखंड में माता लक्ष्मी पर सिक्के या मुद्रा जारी होना शुरू हुआ था.
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हाथी कर रहे वैभव की बौछार : न्यूमिजमाटिक्स जैन का कहना है कि उज्जैन के सिक्कों पर गज लक्ष्मी का अंकन मिलता है. ये सिक्के भी 2200 से 2300 साल पुराने हैं. इसमें मां लक्ष्मी कमल पर आसीन पर दिखती हैं तो कुछ सिक्कों में बैठी नजर आती हैं. साथ ही इसमें मां लक्ष्मी के दोनों तरफ हाथी दिखते हैं. ये दोनों हाथी अपनी सूंड को ऊपर उठाए वैभव की वर्षा करते हैं. कुषाणवंश के राजा कनिष्क के समय के सिक्के पर एक देवी नजर आती हैं, जो गेहूं की बालियां लिए खड़ी दिखती हैं, जिन्हें इतिहासकार मां लक्ष्मी मानते हैं. इसी तरह वर्तमान में भी लक्ष्मी जी का यही स्वरूप देखता है.