गर्भावस्था में डायबिटीज कितना खतरनाक, कौन से टेस्ट कराने हैं जरूरी, जानिए - gestational diabetes - GESTATIONAL DIABETES
GESTATIONAL DIABETES गर्भावस्था में डायबिटीज होने पर गर्भवती महिला को किस तरह की परेशानी हो सकती है. गर्भ में पल रहे बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. डायबिटीज कितने प्रकार की होती है. गर्भवती महिला को कौन से टेस्ट करवाने जरूरी हैं. किस तरह की दवाइयां दी जाती है. गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज होने पर कब-कब कौन से टेस्ट करवाए जाते हैं. ऐसे सवालों के जवाब
रायपुर : गर्भावस्था में होने वाली डायबिटीज को जस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है. जस्टेशनल डायबिटीज आमतौर पर महिलाओं में गर्भावस्था के चार-पांच महीने के बाद डेवलप होता है, जो डिलीवरी के बाद अपने आप ठीक भी हो जाता है. इसलिए गर्भवती महिलाओं को बीच-बीच में डायबिटीज चेक करवाने के लिए भी कहा जाता है. आगे चलकर बढ़ती उम्र के साथ डायबिटीज होने की संभावना रहती है.
रोग प्रतिरोधक क्षमता हो जाती है कमजोर : स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ सावेरी सक्सेना ने बताया, "कुछ महिलाएं ऐसी होती हैं, जिनको गर्भावस्था के पहले ही डायबिटीज रहता है. जो टाइप 2 डायबिटीज होता है, वह अलग डायबिटीज होता है. गर्भावस्था में इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाती है. इसके साथ ही दवाइयों का डोज भी बढ़ जाता है. जस्टेशनल डायबिटीज होने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है."
"जस्टेशनल डायबिटीज का स्क्रीनिंग बहुत आवश्यक है. भारत में 8 से 10 फीसदी महिलाएं गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज से पीड़ित रहती हैं. ऐसे में गर्भवती महिलाओं का 24 सप्ताह से लेकर 28 सप्ताह के बीच एक ग्लूकोज टेस्ट किया जाता है." - डॉ सावेरी सक्सेना, स्त्री रोग विशेषज्ञ
कैसे होता है जस्टेशनल डायबिटीज का टेस्ट : डॉ सावेरी सक्सेना के मुताबिक, "गर्भवती महिला को 50 ग्राम ग्लूकोस डी पीने के लिए बोला जाता है. उसके 1 घंटे के बाद शुगर का टेस्ट किया जाता है. इसके साथ ही दूसरा टेस्ट डीप्सी कहलाता है, जिसमें 75 ग्राम ग्लूकोस डी पीने के लिए कहा जाता है और उसके 2 घंटे के बाद शुगर का टेस्ट होता है. ऐसी स्थिति में शुगर का रिपोर्ट 140 से कम आना चाहिए. इससे ज्यादा होता है तो दूसरे और भी टेस्ट कराने होते हैं."
गर्भावस्था में डायबिटीज के खतरे (ETV Bharat)
जस्टेशनल डायबिटीज के खतरे : डॉ सावेरी सक्सेना के मुताबिक, जस्टेशनल डायबिटीज होने पर गर्भवती महिला की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. बार-बार पेशाब में इंफेक्शन हो सकता है. वेजाइनल इंफेक्शन हो सकता है, यानी सफेद पानी जाने की समस्या हो सकती हैं. महिला का वजन अत्यधिक बढ़ सकता है. इसके साथ ही पसीना भी लगातार आने लगता है. इसका बच्चे पर भी असर पड़ता है. मां का ग्लूकोस लेवल बढ़ने पर गर्भस्थ शिशु का वजन भी बढ़ जाता है. बच्चे का वजन अगर जरूरत से ज्यादा बढ़ने लगे तो डिलीवरी के समय महिला को परेशानी हो सकती है. ऐसे समय में नॉर्मल डिलीवरी के बजाय ऑपरेशन करने पड़ सकते हैं. कभी-कभी गर्भ में पल रहे शिशु की मौत भी हो सकती है.
डायबिटीज से पीड़ित गर्भवती महिलाएं रहें अलर्ट : गर्भवती महिला डायबिटीज से पीड़ित है, तो इसका रिस्क भी रहता है. ऐसे समय में यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि बच्चे का ब्लड प्रॉपर फ्लो हो रहा है या नहीं. गर्भावस्था में डायबिटीज होता है तो ऐसी स्थिति में काफी सतर्क और सावधान रहने की जरूरत है. इसके लिए दो चीजों को फॉलो करना जरूरी है. पहले डाइट और दूसरा गर्भवती महिला को दी जाने वाली दवाई. गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को ज्यादा दवाई नहीं दी जाती, एकमात्र इलाज इंसुलिन है.