जमशेदपुरः जो लीक से हटकर कुछ करना चाहते हैं उनके लिए वेस्ट भी बेस्ट होता है. जी हां, ये बात बिल्कुल सच है और ऐसा करके मिसाल कायम कर रहे हैं जमशेपुर के गौरव आनंद. जिन्होंने वेस्ट समझे जाने वाले जलकुंभी को रोजगार का साधन बनाया है. जिनकी मदद से आज कई लोगों की जीविका इस जलकुंभी से जुड़ी है. जमशेदपुर के गौरव आनंद जलकुंभी से साड़ी समेत अन्य सामग्री का निर्माण पर लोगों को रोजगार दे रहे हैं.
नदियों और तालाबों मे होने वाले जलकुंभी को बेकार माना जाता है. जलकुंभी के कारण नदी-तालाब भी दूषित होते हैं और इसे निकाल कर फेंक देने से कचरा भी काफी फैलता है. जब नदी और तालाब की साफ-सफाई होती है तो इसे निकाल कर बाहर फेंक दिया जाता है. लेकिन जमशेदपुर के गौरव आनंद ने इस जलकुंभी को रोजगार का साधन बना दिया है. गौरव जलकुंभी से धागा निकाल कर साड़ी से लेकर सजावट तक की सामग्री का निर्माण कर रहे हैं.
छोड़ दी टाटा की नौकरीः
गौरव आनंद ने टाटा स्टील के सहयोगी संस्था जुस्को की अच्छी खासी नौकरी भी छोड़ दी. अब उनका पूरा ध्यान जलकुंभी से साड़ियां बनाने के अलावा दूसरे संस्थानों को प्रशिक्षित कर कचरे से कमाई करने में लगा दिया है. यह सभी काम वे अपनी संस्था स्वच्छता पुकारे के तहत कर रहे हैं. गौरव के अनुसार इस कार्य को वह और उनकी टीम पश्चिम बंगाल और असम में भी कर रही है. उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल में 24 परगना जिले के बंदगांव में अपना प्लांट स्थापित किया है.
खास से जलकुंभी से बनी साड़ीः
गौरव आनंद के अनुसार तालाबों और नदियों में होने वाली जलकुंभी को निकाल कर सुखाया जाता है, उसके बाद उससे धागा निकाला जाता है. उन्होंने बताया कि एक साड़ी के निर्माण में 85 प्रतिशत जलकुंभी का धागा और 15 प्रतिशत कपास के धागे का इस्तेमाल किया जाता है. इनको मिलाकर तीन दिन में अलग-अलग रंगों और डिजाइन की साड़ी तैयार हो जाती है. ये साड़ियां पूरी तरह से घर पर ही धुलाई योग्य है और सामान्य साड़ी की तरह टिकाऊ भी होती है.