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खास है जलकुंभी से बनी साड़ी! जानिए कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ गौरव आनंद ने इसे कैसे बनाया रोजगार का साधन

Gaurav Anand gave employment by water hyacinth in Jamshedpur. कुछ अलग करने की चाहत और समाज का भला करने की सोच मन में हो तो कई रास्ते निकल आते हैं. कुछ ऐसी ही बानगी पेश कर हैं जमशेदपुर के गौरव आनंद, जिन्होंने कॉर्पोरेट नौकरी को छोड़ आज लोगों को स्वरोजगार से जोड़ रहे हैं. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट से जानिए, गौरव आनंद की पूरी कहानी.

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 10, 2024, 6:27 PM IST

Gaurav Anand employing people by manufacturing sarees from water hyacinth in Jamshedpur
जमशेदपुर के गौरव आनंद जलकुंभी से साड़ी का निर्माण पर लोगों को दे रहे रोजगार

जमशेदपुर के गौरव आनंद जलकुंभी से साड़ी का निर्माण पर लोगों को दे रहे रोजगार

जमशेदपुरः जो लीक से हटकर कुछ करना चाहते हैं उनके लिए वेस्ट भी बेस्ट होता है. जी हां, ये बात बिल्कुल सच है और ऐसा करके मिसाल कायम कर रहे हैं जमशेपुर के गौरव आनंद. जिन्होंने वेस्ट समझे जाने वाले जलकुंभी को रोजगार का साधन बनाया है. जिनकी मदद से आज कई लोगों की जीविका इस जलकुंभी से जुड़ी है. जमशेदपुर के गौरव आनंद जलकुंभी से साड़ी समेत अन्य सामग्री का निर्माण पर लोगों को रोजगार दे रहे हैं.

नदियों और तालाबों मे होने वाले जलकुंभी को बेकार माना जाता है. जलकुंभी के कारण नदी-तालाब भी दूषित होते हैं और इसे निकाल कर फेंक देने से कचरा भी काफी फैलता है. जब नदी और तालाब की साफ-सफाई होती है तो इसे निकाल कर बाहर फेंक दिया जाता है. लेकिन जमशेदपुर के गौरव आनंद ने इस जलकुंभी को रोजगार का साधन बना दिया है. गौरव जलकुंभी से धागा निकाल कर साड़ी से लेकर सजावट तक की सामग्री का निर्माण कर रहे हैं.

छोड़ दी टाटा की नौकरीः

गौरव आनंद ने टाटा स्टील के सहयोगी संस्था जुस्को की अच्छी खासी नौकरी भी छोड़ दी. अब उनका पूरा ध्यान जलकुंभी से साड़ियां बनाने के अलावा दूसरे संस्थानों को प्रशिक्षित कर कचरे से कमाई करने में लगा दिया है. यह सभी काम वे अपनी संस्था स्वच्छता पुकारे के तहत कर रहे हैं. गौरव के अनुसार इस कार्य को वह और उनकी टीम पश्चिम बंगाल और असम में भी कर रही है. उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल में 24 परगना जिले के बंदगांव में अपना प्लांट स्थापित किया है.

खास से जलकुंभी से बनी साड़ीः

गौरव आनंद के अनुसार तालाबों और नदियों में होने वाली जलकुंभी को निकाल कर सुखाया जाता है, उसके बाद उससे धागा निकाला जाता है. उन्होंने बताया कि एक साड़ी के निर्माण में 85 प्रतिशत जलकुंभी का धागा और 15 प्रतिशत कपास के धागे का इस्तेमाल किया जाता है. इनको मिलाकर तीन दिन में अलग-अलग रंगों और डिजाइन की साड़ी तैयार हो जाती है. ये साड़ियां पूरी तरह से घर पर ही धुलाई योग्य है और सामान्य साड़ी की तरह टिकाऊ भी होती है.

आजीविका का साधन बना जलकुंभीः

गौरव आनंद ने बताया कि वो अभी तक 350 से ज्यादा साड़ियां बेच चुके हैं. जलकुंभी से बनी इन साड़ियों की कीमत 2500 रुपये रखी गई है. इन साड़ियों को माॅल या किसी मेले में स्टॉल लगा कर बेचा जाता है. गौरव बताते हैं कि जलकुंभी से धागा निकालने और साड़ी के साथ साथ अन्य सामग्री बनाने के लिए कड़ी मेहनत लगती है. इस दौरान तमाम काम हाथों से ही किए जाते हैं, इसलिए इलाके के कई लोग उनकी संस्था के साथ जुड़कर रोजगार पा रहे हैं.

गौरव आनंद के द्वारा नदियों की जलकुंभी को रोजगार का साधन बनाकर लोगों को स्वरोजगार से जोड़ना निश्चित ही सराहनीय है. फिलहाल गौरव नेशनल इंस्टीट्यूट आफ अर्बन अफेयर्स, एनटीपीसी कोरबा, आधार पूनावाला समूह, दिल्ली-एनसीआर में इनर व्हील क्लब सहित जलपाईगुड़ी के टी-गार्डन में काम करने वाले मजदूरों को प्रशिक्षण दे रहे हैं.

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