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शहीदों के गांव से 66 लाख की सड़क गायब, फंड मिलने के बावजूद नहीं बनी, DM ने दिए जांच के आदेश - ROADS NOT BUILT FUNDS WORTH 66 LAKH

लोकार्पण का पत्थर लगाने पहुंचे कर्मी को नहीं मिली सड़क, साल 2023 में कागजों में दिखाया गया निर्माण.

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शहीदों के गांव में गायब हुई 66 लाख की सड़क. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 24, 2025, 9:27 AM IST

Updated : Jan 24, 2025, 12:25 PM IST

महराजगंज :जिले के विशुनपुर गबड़ुआ गांव में पंडित दीनदयाल योजना के तहत हरिजन बस्ती को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण कार्य स्वीकृत किया गया था. इसके लिए 66.64 लाख रुपये का बजट भी निर्धारित किया गया था. विभागीय रिकॉर्ड के अनुसार, सड़क का निर्माण 23 मई 2023 को शुरू हुआ और 22 सितंबर 2023 को पूरा कर लिया गया था, लेकिन जब लोक निर्माण विभाग के कर्मचारी लोकार्पण शिलालेख लगाने पहुंचे तो यह खुलासा हुआ कि सड़क का निर्माण तो हुआ ही नहीं है.

इतने मीटर बनाई जानी थी सड़क :0.97 किमी यानी कि 970 मीटर की दूरी तक सड़क बनाई जानी थी. इसके लिए कुल 66.64 लाख रुपए की स्वीकृति 23 फरवरी 2023 को प्राप्त हुई थी. इसका भुगतान सहायक अभियंता की रिपोर्ट पर अधिशासी अभियंता की ओर से किया गया था.

जानकारी सामने आने के बाद गांव के लोग आक्रोशित हो गए. ग्रामीणों को यह भी पता चला कि निर्माण कार्य बिना पूरा किए ही भुगतान कर दिया गया था. सड़क के अभाव में गांव वासियों का गुस्सा बढ़ गया. उन्होंने इस गड़बड़ी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की.

मामले की गंभीरता को देखते हुए जिलाधिकारी अनुनय झा ने तुरंत कार्रवाई की. अधिशासी अभियंता सैय्यद अख्तर अब्बास की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया है. जांच के बाद दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. इस धांधली पर ग्रामीणों में जबरदस्त नाराजगी है. उनका कहना है कि यह गांव शहीदों का गांव है.

ग्रामीणों ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. मुख्य विकास अधिकारी अनुराज जैन ने इस मामले में आश्वासन दिया है कि जांच निष्पक्ष रूप से की जाएगी और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी. अब सभी की निगाहें जांच रिपोर्ट और जिलाधिकारी के तरफ से की जाने वाली अगली कार्रवाई पर टिकी हुई हैं.

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गबडुआ गांव से जुड़े थे स्वतंत्रता सेनानी :बिशुनपुर गबडुआ गांव, महराजगंज जिले के घुघली क्षेत्र में स्थित है. यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक प्रतीक है. 7 अगस्त 1942 की रात गांव में अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता ने मातम का माहौल पैदा कर दिया. डॉ. पीआर गुप्ता की पुस्तक पूर्वांचल के गांधी के अनुसार इस गांव ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की थी.

26 अगस्त 1942 को क्रांतिकारी प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना गांव में एक मीटिंग आयोजित करने वाले थे. इस योजना की जानकारी मिलते ही ब्रिटिश कलेक्टर ईडीबी मास ने पूरे गांव को कुचलने का आदेश दिया. 27 अगस्त की सुबह गांव की नाकेबंदी की गई. इस दौरान गांव के सुखराज और झिनकू ने अंग्रेजी सिपाहियों का विरोध किया, जिसके कारण उन्हें गोली मार दी गई.

अंग्रेजों ने जनकराज, नंगई, तिलकधारी, शिवदत्त, रामदेव समेत कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. 29 सितंबर 1942 को उन्हें एक-एक वर्ष की सजा सुनाई गई. अंग्रेजों का दमन यहीं नहीं रुका 1943 में उन्होंने फिर से गांव पर हमला किया.

आज यह गांव उन वीर सपूतों की स्मृतियों को संजोए हुए है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस शहीद स्थल पर सफाई और कार्यक्रम आयोजित कर इन अमर सेनानियों को श्रद्धांजलि दी जाती है.

Last Updated : Jan 24, 2025, 12:25 PM IST

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