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महाकुंभ का ऑक्सीजन बैंक; प्रयागराज में उगा दिए 5 लाख पेड़ों के 10 जंगल, श्रद्धालुओं को रोज दे रहे 11 करोड़ लीटर शुद्ध हवा - MAHA KUMBH 2025 AIR POLLUTION

महाकुंभ में हरित पहल: नगर निगम ने जापानी तकनीक से 30 बीघे में तैयार किए प्राकृतिक वन, प्रदूषण पर रोक, एक्यूआई-तापमान भी कंट्रोल

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महाकुंभ में श्रद्धालुओं को रोज 35 लाख लीटर ऑक्सीजन दे रहे 5 लाख पेड़. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 24, 2025, 4:07 PM IST

Updated : Jan 28, 2025, 12:16 PM IST

प्रयागराज (अमरीश शुक्ल): महाकुंभ मेला क्षेत्र के आसपास विकसित किए गए जंगल लाखों श्रद्धालुओं को रोजाना शुद्ध हवा दे रहे हैं. दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले को हरा-भरा और पर्यावरण अनुकूल बनाने की पहल रंग दिखाने लगी है. दरअसल, प्रयागराज में 10 जगहों पर करीब 30 बीघे में 5 लाख पेड़ लगाए गए हैं. ये पेड़ रोजाना 11.5 करोड़ लीटर ऑक्सीजन देते हैं. ये सब संभव हुआ है जापान की मियावाकी तकनीक से. जिसमें करीब 6 करोड़ रुपए खर्च हुए.

प्रयागराज नगर निगम ने इसी तकनीक से इन जंगलों को तैयार किया है. महाकुंभ को देखते हुए दो साल पहले जंगल लगाने शुरुआत की गई थी. आज ये पौधे 25 से 30 फीट के हो गए हैं. सामान्यत: एक पेड़ एक दिन में लगभग 230 लीटर प्राण वायु देते है. इस हिसाब से ये 5 लाख पेड़ वायुमंडल में रोज 11.5 करोड़ लीटर शुद्ध हवा रिलीज कर रहे हैं. एक तरह से ये पेड़ महाकुंभ के फेफड़े साबित हो रहे हैं.

महाकुंभ को वायु प्रदूषण से मुक्त रखने की कवायद पर संवाददाता की खास रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

बरगद, पीपल, नीम, महुआ, आम, इमली, सहित 63 तरह के पौधे: प्रयागराज नगर निगम में पर्यावरण अभियंता उत्तम कुमार ने बताया कि शहर में जापानी तकनीक से करीब 70 हजार स्क्वैर मीटर (30 बीघा) क्षेत्र में 63 प्रजातियों के पौधे लगाए गए हैं. यह जंगल तैयार करने और उनकी देखरेख के लिए जिस कंपनी से कांट्रैक्ट किया गया है, वह इन पौधों की तीन साल तक देखरेख व रख–रखाव करेगी.

इस परियोजना में फलदार वृक्षों से लेकर औषधीय और सजावटी पौधे भी लगाए गए हैं. आम, महुआ, नीम, पीपल, इमली, अर्जुन, सागौन, तुलसी, आंवला, बेर, गुड़हल, कदंब, गुलमोहर, जंगल जलेबी, बोगनवेलिया और ब्राह्मी जैसे सजावटी और औषधीय पौधे भी शामिल किए गए हैं. शीशम, बांस, कनेर (लाल और पीला), टेकोमा, कचनार, महोगनी, नींबू और सहजन जैसे पौधे शामिल हैं.

कहां-कहां विकसित किए गए सघन वन: जिन क्षेत्रों में जंगल विकसित किए गए हैं, उनमें ट्रांसपोर्ट नगर बालू मंडी, अवंतिका कॉलोनी नैनी, देवघाट पार्क झलवा, ट्रांसपोर्ट नगर पार्क–दो, जहांगीराबाद नैनी में तीन स्थानों पर, डांडी नीम सराय, एलआईजी पार्क नैनी, मनिकापुर झूंसी, ट्रांसपोर्ट नगर पार्क–नलकूप नंबर तीन, ट्रांसपोर्टनगर में महिंद्रा वर्कशॉप के पीछे, देव प्रयागम फेज 2, पार्क बी, देव प्रयागम फेज 2, पार्क सी, इंडस्ट्रियल एरिया नेवादा समगोर नैनी शामिल हैं.

जानिए प्रयागराज में कहां-कहां तैयार किए गए जंगल.
जानिए प्रयागराज में कहां-कहां तैयार किए गए जंगल. (Photo Credit; ETV Bharat)

डेढ़ साल में पौधे बन गए 25–30 फीट के पेड़: उत्तम कुमार ने बताया कि औद्योगिक एरिया नैनी में हमने 15 बीघे में मल्टीलेयर्ड पौधरोपण कराया था. औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण खाली पड़ी इस सरकारी जमीन पर पहले लोग कूड़ा कचरा डाल देते थे. इससे आसपास के गांव में रह रहे लोगों को काफी बदबू आती थी. सांस लेना दूभर था. अगर सफेद कपड़ा बाहर लोग सूखने के लिए डाल देते थे तो शाम तक वह काला पड़ जाता था.

हमें इस जमीन को समतल करवाना और उसे पौधरोपण के लायक बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी. हमने पहले कूड़ा कचरा साफ करवाया. इसके बाद एक मीटर गहराई में मिट्टी को निकाला गया. भूसा, ऑर्गेनिक खाद व लकड़ी का बुरादा मिलाकर उस 1मी गड्ढे को भरा गया. इसके बाद उसमें प्लांटेशन किया गया.

प्लांटेशन में हमने इस बात का ध्यान रखा कि नीचे ऐसे पौधे लगाए जाएं, जिनकी हाइट 8 से 10 फीट होती है. उसके बाद 15 से 20 फीट वाले पौधे लगाए गए. सबसे दूर–दूर बरगद, नीम, पीपल, कटहल, आम, अमरूद, कदम जैसे पौधे लगाए गए. उत्तम ने बताया कि पौधरोपण को अभी मात्र डेढ़ साल ही हुआ है और 20 से 25 फीट तक के पौधे तैयार हो गए हैं. अगर आप दूर से देखेंगे तो आपको एक सघन वन तैयार दिखाई देगा.

जापानी मियावाकी तकनीक के बारे में बताते पर्यावरण आयुक्त उत्तम कुमार.
जापानी मियावाकी तकनीक के बारे में बताते पर्यावरण आयुक्त उत्तम कुमार. (Photo Credit; ETV Bharat)

एक पौधे से कितनी ऑक्सीजन मिलती है: पारंपरिक पत्तेदार पेड़ जैसे बरगद, पीपल सालभर में उतनी ऑक्सीजन देते हैं जितनी 10 लोग सालभर में सांस लेते हैं. प्रयागराज यूनिवर्सिटी के वनस्पति विज्ञान के पूर्व अध्यक्ष व रिटायर्ड प्रोफेसर एनबी सिंह ने बताया कि ऑक्सीजन की मात्रा पेड़ की लंबाई और उसकी छाया के एरिया पर निर्भर करती है. नाॅर्मल स्थिति में एक स्वस्थ पेड़ एक दिन में करीब 230 लीटर ऑक्सीजन देता है, जबकि एक सामान्य व्यक्ति को 24 घंटे में करीब 550 लीटर आक्सीजन की जरूरत पड़ती है.

मालूम हो कि महाकुंभ 2025 को शुरू हुए 12 दिन हो गए हैं. श्रद्धालुओं की संख्या की बात करें तो 11 दिन में 10 करोड़ से ज्यादा लोग यहां आ चुके हैं और अमृत स्नान का पुण्य कमा चुके हैं. आम दिनों में 20 से 30 लाख श्रद्धालु संगम स्नान कर रहे हैं. ऐसे में अचानक से दो माह के भीतर जो 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. इतनी भीड़ से हो रहे कार्बन उत्सर्जन को भी ये जंगल बैलेंस कर रहे हैं और लोगों को स्वच्छ पानी के साथ स्वच्छ हवा भी मिल रही है. पर्यावरण पर दबाव कम पड़ रहा है. पेड़ हवा को फिल्टर करते हैं, मिट्टी से जहरीले पदार्थ सोखते हैं.

क्या है मियावाकी तकनीक: रिटायर्ड प्राेफेसर एनबी सिंह के मुताबिक मियावाकी तकनीक जापान की पौधरोपण की एक पद्यति है. जहां जमीनों की कमी है और कम स्थान में अधिक पौधरोपण करना हो, वहां इसका प्रयोग किया जाता है. मियावाकी तकनीक, जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी ने 1970 के आसपास विकसित की थी.

जापानी मियावाकी तकनीक के बारे में बताते रिटायर्ड प्रोफेसर एनबी सिंह.
जापानी मियावाकी तकनीक के बारे में बताते रिटायर्ड प्रोफेसर एनबी सिंह. (Photo Credit; ETV Bharat)

कैसे होता है मियावाकी तकनीक में प्लांटेशन: इस तकनीक में देशी प्रजातियों के पेड़-पौधों को एक दूसरे के करीब मल्टी लेयर में लगाया जाता है. इसमें पौधे 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं. एनबी सिंह बताते हैं कि पारंपिक पेड़ों की अपेक्षा मियावाकी तकनीक से लगाए गए पौधे पारंपरिक पेड़ों की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं और अधिक ऑक्सीजन देते हैं. ज्यादा हरे–भरे रहते हैं.

यह तकनीक प्राकृतिक वनों की तरह जैव विविधता को बढ़ावा देने वाली होती है. इससे मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ती है. यह तकनीक, शहरी इलाकों में पर्यावरण को शुद्ध करने में काफी असरकार है.

एक हेक्टेयर में लगाए जाते हैं 35 हजार पौधे: मियावाकी तकनीक में सबसे पहले एक मीटर गहराई में मिट्टी को हटाते हैं. इसके बाद उसमें गोबर, नीम की खड़ी, भूसा मिलाकर भरते हैं. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है. सामान्य पौधरोपण में 3 साल समय लगता है, जबकि मियावाकी तकनीक से 6 महीने में पौधे ग्रोथ ले लेते हैं. ये पौधे बायोमास बढ़ाते हैं और तेजी से कार्बनडाई ऑक्साइड अवशोषित करते हैं. सामान्य पौधों की अपेक्षा कई गुना अधिक ऑक्सीजन देते हैं. ये मल्टी लेयर स्ट्रक्चर में लगाए जाते हैं.

क्या है मियावाकी तकनीक का मकसद: जापान में शहरों के आसपास और अंदर ऑक्सीजन बैंक के रूप में इस तकनीक से डेवलप किए गए जंगल का प्रयोग किया जाता है. जहां जमीनें कम हैं और प्रदूषण ज्यादा, वहां हवा को शुद्ध करने और कार्बनडाई ऑक्साइड और ऑक्सीजन का बैलेंस ठीक करने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है. कम जमीन में और कम समय में अधिक कार्बन अवशोषित करने वाले और अधिक आक्सीजन देने वाले पौधे तैयार हो जाते हैं. आमतौर पर एक पारंपिरक पेड़ हर साल करीब 21 से 48 पाउंड कार्बन उत्सर्जन करते हैं.

प्रयागराज का तापमान भी हो रहा कंट्रोल: इन जंगलों से गर्मी में आसपास के तापमान में भी दो से तीन डिग्री की गिरावट दर्ज की गई है. प्रयागराज के नगर आयुक्त चंद्र मोहन गर्ग कहते हैं कि हम और भी खाली पड़ी सरकारी जमीनों पर मियावाकी तकनीक से पौधे रोपने की प्लानिंग कर रहे हैं. जल्द ही इसका भी एमओयू किया जाएगा.

24 घंटे ऑक्सीजन देने वाले इन पौधों से ठीक रख सकते हैं घर का पर्यावरण: अगर आपको पर्यावरण को ठीक रखने में अपना योगदान देना है तो सबसे पहले अपने घर का पर्यावरण ठीक कर सकते हैं. यहीं से शुरुआत कीजिए. दुनिया में 9 ऐसे पेड़-पाैधे हैं जिससे 24 घंटे ऑक्सीजन मिलती है. इनमें ऐरेका पाम, स्नेक प्लांट, एलोवेरा, मनी प्लांट, आर्किड प्लांट, पीपल, अरलिया, तुलसी, वाइल्ड जरबेरा, नीम, क्रिसमस कैक्टस शामिल हैं. ये पौधे 24 घंटे ऑक्सीजन देते हैं.

पहले जहां सांस लेना दूभर था, अब मिल रही स्वच्छ हवा, बदबू भी खत्म: नैनी औद्योगिक क्षेत्र की पाल बस्ती में रहने वाले कमलेश पाल ने बताया कि पहले यहां सांस लेना दूभर था. पहले बहुत प्रदूषण रहता था. बगल में मुर्गी का फार्म होने के कारण बहुत बदबू आती थी. साफ हवा नहीं मिलती थी. लोग बीमार बहुत होते थे. अब जब से यह पौधरोपण हुआ है हवा काफी साफ-सुथरी हो गई है. यहां काफी ठंडा रहता है. काफी अच्छा महसूस होता है. अब केवल 10 से 15 फीसद ही प्रदूषण रह गया है. बदबू आना एकदम खत्म हो गई है.

पिपरांव की रहने वाली पूजा पाल ने बताया कि पहले यहां काफी प्रदूषण था. बदबू आती थी पर अब यहां काफी अच्छा महसूस होता है. प्रदूषण कम हो गया है. यहां तरह-तरह के पक्षी आते हैं. काफी अच्छा हरा-भरा महसूस होता है. यहां और सरकारी जमीनों पर पौधरोपण होना चाहिए. उर्मिला पाल कहती हैं कि पहले काफी धूल–मिट्टी उड़ती थी. बदबू काफी आती थी. जबसे पौधे लगे हैं बदबू खत्म हो गई है. प्रदूषण काफी कम हुआ है.

प्रयागराज महाकुंभ में अमृत स्नान करते श्रद्धालु.
प्रयागराज महाकुंभ में अमृत स्नान करते श्रद्धालु. (Photo Credit; ETV Bharat)

महाकुंभ में 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान: प्रयागराज विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष विजय किरण आनंद कहते हैं कि महाकुंभ में 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं व लाखों की संख्या में आने वाले वाहनों के कारण पर्यावरण पर अधिक दबाव पड़ता. प्रदूषण और अधिक हो जाता. इसको ध्यान में रखकर नगर निगम व वन विभाग के सहयोग से प्रयागराज में पांच लाख से अधिक पौधों का रोपण कराया गया है.

प्रयागराज में विभिन्न स्थानों पर जंगल विकसित किए गए ताकि कुंभनगर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को शुद्ध हवा और स्वस्थ वातावरण मिल सके. प्रयागराज नगर निगम ने पिछले दो वर्षों में जापानी मियावाकी तकनीक का उपयोग करके कई ऑक्सीजन बैंक बनाए गए हैं. इन प्रयासों ने न केवल हरियाली को बढ़ाया है, बल्कि वायु गुणवत्ता में सुधार किया है.

प्रयागराज नगर निगम के आयुक्त चंद्र मोहन गर्ग ने बताया कि मियावाकी तकनीक का उपयोग करके शहर के कई हिस्सों में घने जंगल तैयार कर रहे हैं. निगम ने सबसे अधिक 63 प्रजातियों के पौधे नैनी औद्योगिक क्षेत्र में लगाए हैं. बसवार जहां कूड़ा डंप किया जाता था वहां 27 विभिन्न प्रजातियों के 27,000 पेड़ लगाए गए हैं. अब ये पौधे तैयार हैं. इससे वायु प्रदूषण काफी हद तक कम हुआ है. इससे धूल, गंदगी और दुर्गंध को भी कम करने में मदद मिली है.

जनवरी में प्रयागराज का एक्यूआई.
जनवरी में प्रयागराज का एक्यूआई. (Photo Credit; Prayagraj Municipal Council)

एक्यूआई स्कोर घटा: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार प्रयागराज में एक जनवरी से लेकर अब तक का एक्यूआई स्कोर बता रहा है कि 14 जनवरी को महाकुंभ 2025 का पहला अमृत स्नन था. 13 को पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ महाकुंभ का आगाज हुआ. दो दिन में करीब साढ़े पांच करोड़ श्रद्धालुओं का महाकुंभ में आना हुआ. लाखों की संख्या में वाहन आए पर आपको जानकर हैरानी होगी कि सामान्य दिनों की अपेक्षा दो दिन का एक्यूआई स्कोर 106 व 94 रहा, जबकि एक जनवरी को यह स्कार 156 रहा जोकि खतरनाक स्तर माना जाता है. यानी उस दिन हवा सांस लेने के लायक नहीं थी.

प्रो. शैलेंद्र राय ने बताया कैसे कम हो रहा प्रदूषण.
प्रो. शैलेंद्र राय ने बताया कैसे कम हो रहा प्रदूषण. (Photo Credit; ETV Bharat)

पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहतर है मियावाकी तकनीक: इलाहाबाद विश्वविद्यालय एटमॉस्फेरिक साइंसेस के विभागाध्यक्ष शैलेंद्र राय का कहना है कि जापान की मियावाकी तकनीक से विकसित किए गए वन, पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत अच्छे होते हैं. इसीलिए अमेजॉन के जंगलों को पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहतर माना जाता है. अमेजॉन के जंगल भी मल्टीलेयर्ड होते हैं. प्रयागराज में जिस तरह से 5 लाख पौधे डेवलप किए गए हैं, इससे निश्चित रूप से यहां के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर करने में मदद मिलेगी.

ये भी पढ़ेंः यूपी में 26 जनवरी से सर्दी का लगेगा 'बैक गियर'; 5 डिग्री तक गिरेगा तापमान, बारिश थमेगी पर घना कोहरा छाएगा

प्रयागराज (अमरीश शुक्ल): महाकुंभ मेला क्षेत्र के आसपास विकसित किए गए जंगल लाखों श्रद्धालुओं को रोजाना शुद्ध हवा दे रहे हैं. दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले को हरा-भरा और पर्यावरण अनुकूल बनाने की पहल रंग दिखाने लगी है. दरअसल, प्रयागराज में 10 जगहों पर करीब 30 बीघे में 5 लाख पेड़ लगाए गए हैं. ये पेड़ रोजाना 11.5 करोड़ लीटर ऑक्सीजन देते हैं. ये सब संभव हुआ है जापान की मियावाकी तकनीक से. जिसमें करीब 6 करोड़ रुपए खर्च हुए.

प्रयागराज नगर निगम ने इसी तकनीक से इन जंगलों को तैयार किया है. महाकुंभ को देखते हुए दो साल पहले जंगल लगाने शुरुआत की गई थी. आज ये पौधे 25 से 30 फीट के हो गए हैं. सामान्यत: एक पेड़ एक दिन में लगभग 230 लीटर प्राण वायु देते है. इस हिसाब से ये 5 लाख पेड़ वायुमंडल में रोज 11.5 करोड़ लीटर शुद्ध हवा रिलीज कर रहे हैं. एक तरह से ये पेड़ महाकुंभ के फेफड़े साबित हो रहे हैं.

महाकुंभ को वायु प्रदूषण से मुक्त रखने की कवायद पर संवाददाता की खास रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

बरगद, पीपल, नीम, महुआ, आम, इमली, सहित 63 तरह के पौधे: प्रयागराज नगर निगम में पर्यावरण अभियंता उत्तम कुमार ने बताया कि शहर में जापानी तकनीक से करीब 70 हजार स्क्वैर मीटर (30 बीघा) क्षेत्र में 63 प्रजातियों के पौधे लगाए गए हैं. यह जंगल तैयार करने और उनकी देखरेख के लिए जिस कंपनी से कांट्रैक्ट किया गया है, वह इन पौधों की तीन साल तक देखरेख व रख–रखाव करेगी.

इस परियोजना में फलदार वृक्षों से लेकर औषधीय और सजावटी पौधे भी लगाए गए हैं. आम, महुआ, नीम, पीपल, इमली, अर्जुन, सागौन, तुलसी, आंवला, बेर, गुड़हल, कदंब, गुलमोहर, जंगल जलेबी, बोगनवेलिया और ब्राह्मी जैसे सजावटी और औषधीय पौधे भी शामिल किए गए हैं. शीशम, बांस, कनेर (लाल और पीला), टेकोमा, कचनार, महोगनी, नींबू और सहजन जैसे पौधे शामिल हैं.

कहां-कहां विकसित किए गए सघन वन: जिन क्षेत्रों में जंगल विकसित किए गए हैं, उनमें ट्रांसपोर्ट नगर बालू मंडी, अवंतिका कॉलोनी नैनी, देवघाट पार्क झलवा, ट्रांसपोर्ट नगर पार्क–दो, जहांगीराबाद नैनी में तीन स्थानों पर, डांडी नीम सराय, एलआईजी पार्क नैनी, मनिकापुर झूंसी, ट्रांसपोर्ट नगर पार्क–नलकूप नंबर तीन, ट्रांसपोर्टनगर में महिंद्रा वर्कशॉप के पीछे, देव प्रयागम फेज 2, पार्क बी, देव प्रयागम फेज 2, पार्क सी, इंडस्ट्रियल एरिया नेवादा समगोर नैनी शामिल हैं.

जानिए प्रयागराज में कहां-कहां तैयार किए गए जंगल.
जानिए प्रयागराज में कहां-कहां तैयार किए गए जंगल. (Photo Credit; ETV Bharat)

डेढ़ साल में पौधे बन गए 25–30 फीट के पेड़: उत्तम कुमार ने बताया कि औद्योगिक एरिया नैनी में हमने 15 बीघे में मल्टीलेयर्ड पौधरोपण कराया था. औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण खाली पड़ी इस सरकारी जमीन पर पहले लोग कूड़ा कचरा डाल देते थे. इससे आसपास के गांव में रह रहे लोगों को काफी बदबू आती थी. सांस लेना दूभर था. अगर सफेद कपड़ा बाहर लोग सूखने के लिए डाल देते थे तो शाम तक वह काला पड़ जाता था.

हमें इस जमीन को समतल करवाना और उसे पौधरोपण के लायक बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी. हमने पहले कूड़ा कचरा साफ करवाया. इसके बाद एक मीटर गहराई में मिट्टी को निकाला गया. भूसा, ऑर्गेनिक खाद व लकड़ी का बुरादा मिलाकर उस 1मी गड्ढे को भरा गया. इसके बाद उसमें प्लांटेशन किया गया.

प्लांटेशन में हमने इस बात का ध्यान रखा कि नीचे ऐसे पौधे लगाए जाएं, जिनकी हाइट 8 से 10 फीट होती है. उसके बाद 15 से 20 फीट वाले पौधे लगाए गए. सबसे दूर–दूर बरगद, नीम, पीपल, कटहल, आम, अमरूद, कदम जैसे पौधे लगाए गए. उत्तम ने बताया कि पौधरोपण को अभी मात्र डेढ़ साल ही हुआ है और 20 से 25 फीट तक के पौधे तैयार हो गए हैं. अगर आप दूर से देखेंगे तो आपको एक सघन वन तैयार दिखाई देगा.

जापानी मियावाकी तकनीक के बारे में बताते पर्यावरण आयुक्त उत्तम कुमार.
जापानी मियावाकी तकनीक के बारे में बताते पर्यावरण आयुक्त उत्तम कुमार. (Photo Credit; ETV Bharat)

एक पौधे से कितनी ऑक्सीजन मिलती है: पारंपरिक पत्तेदार पेड़ जैसे बरगद, पीपल सालभर में उतनी ऑक्सीजन देते हैं जितनी 10 लोग सालभर में सांस लेते हैं. प्रयागराज यूनिवर्सिटी के वनस्पति विज्ञान के पूर्व अध्यक्ष व रिटायर्ड प्रोफेसर एनबी सिंह ने बताया कि ऑक्सीजन की मात्रा पेड़ की लंबाई और उसकी छाया के एरिया पर निर्भर करती है. नाॅर्मल स्थिति में एक स्वस्थ पेड़ एक दिन में करीब 230 लीटर ऑक्सीजन देता है, जबकि एक सामान्य व्यक्ति को 24 घंटे में करीब 550 लीटर आक्सीजन की जरूरत पड़ती है.

मालूम हो कि महाकुंभ 2025 को शुरू हुए 12 दिन हो गए हैं. श्रद्धालुओं की संख्या की बात करें तो 11 दिन में 10 करोड़ से ज्यादा लोग यहां आ चुके हैं और अमृत स्नान का पुण्य कमा चुके हैं. आम दिनों में 20 से 30 लाख श्रद्धालु संगम स्नान कर रहे हैं. ऐसे में अचानक से दो माह के भीतर जो 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. इतनी भीड़ से हो रहे कार्बन उत्सर्जन को भी ये जंगल बैलेंस कर रहे हैं और लोगों को स्वच्छ पानी के साथ स्वच्छ हवा भी मिल रही है. पर्यावरण पर दबाव कम पड़ रहा है. पेड़ हवा को फिल्टर करते हैं, मिट्टी से जहरीले पदार्थ सोखते हैं.

क्या है मियावाकी तकनीक: रिटायर्ड प्राेफेसर एनबी सिंह के मुताबिक मियावाकी तकनीक जापान की पौधरोपण की एक पद्यति है. जहां जमीनों की कमी है और कम स्थान में अधिक पौधरोपण करना हो, वहां इसका प्रयोग किया जाता है. मियावाकी तकनीक, जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी ने 1970 के आसपास विकसित की थी.

जापानी मियावाकी तकनीक के बारे में बताते रिटायर्ड प्रोफेसर एनबी सिंह.
जापानी मियावाकी तकनीक के बारे में बताते रिटायर्ड प्रोफेसर एनबी सिंह. (Photo Credit; ETV Bharat)

कैसे होता है मियावाकी तकनीक में प्लांटेशन: इस तकनीक में देशी प्रजातियों के पेड़-पौधों को एक दूसरे के करीब मल्टी लेयर में लगाया जाता है. इसमें पौधे 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं. एनबी सिंह बताते हैं कि पारंपिक पेड़ों की अपेक्षा मियावाकी तकनीक से लगाए गए पौधे पारंपरिक पेड़ों की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं और अधिक ऑक्सीजन देते हैं. ज्यादा हरे–भरे रहते हैं.

यह तकनीक प्राकृतिक वनों की तरह जैव विविधता को बढ़ावा देने वाली होती है. इससे मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ती है. यह तकनीक, शहरी इलाकों में पर्यावरण को शुद्ध करने में काफी असरकार है.

एक हेक्टेयर में लगाए जाते हैं 35 हजार पौधे: मियावाकी तकनीक में सबसे पहले एक मीटर गहराई में मिट्टी को हटाते हैं. इसके बाद उसमें गोबर, नीम की खड़ी, भूसा मिलाकर भरते हैं. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है. सामान्य पौधरोपण में 3 साल समय लगता है, जबकि मियावाकी तकनीक से 6 महीने में पौधे ग्रोथ ले लेते हैं. ये पौधे बायोमास बढ़ाते हैं और तेजी से कार्बनडाई ऑक्साइड अवशोषित करते हैं. सामान्य पौधों की अपेक्षा कई गुना अधिक ऑक्सीजन देते हैं. ये मल्टी लेयर स्ट्रक्चर में लगाए जाते हैं.

क्या है मियावाकी तकनीक का मकसद: जापान में शहरों के आसपास और अंदर ऑक्सीजन बैंक के रूप में इस तकनीक से डेवलप किए गए जंगल का प्रयोग किया जाता है. जहां जमीनें कम हैं और प्रदूषण ज्यादा, वहां हवा को शुद्ध करने और कार्बनडाई ऑक्साइड और ऑक्सीजन का बैलेंस ठीक करने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है. कम जमीन में और कम समय में अधिक कार्बन अवशोषित करने वाले और अधिक आक्सीजन देने वाले पौधे तैयार हो जाते हैं. आमतौर पर एक पारंपिरक पेड़ हर साल करीब 21 से 48 पाउंड कार्बन उत्सर्जन करते हैं.

प्रयागराज का तापमान भी हो रहा कंट्रोल: इन जंगलों से गर्मी में आसपास के तापमान में भी दो से तीन डिग्री की गिरावट दर्ज की गई है. प्रयागराज के नगर आयुक्त चंद्र मोहन गर्ग कहते हैं कि हम और भी खाली पड़ी सरकारी जमीनों पर मियावाकी तकनीक से पौधे रोपने की प्लानिंग कर रहे हैं. जल्द ही इसका भी एमओयू किया जाएगा.

24 घंटे ऑक्सीजन देने वाले इन पौधों से ठीक रख सकते हैं घर का पर्यावरण: अगर आपको पर्यावरण को ठीक रखने में अपना योगदान देना है तो सबसे पहले अपने घर का पर्यावरण ठीक कर सकते हैं. यहीं से शुरुआत कीजिए. दुनिया में 9 ऐसे पेड़-पाैधे हैं जिससे 24 घंटे ऑक्सीजन मिलती है. इनमें ऐरेका पाम, स्नेक प्लांट, एलोवेरा, मनी प्लांट, आर्किड प्लांट, पीपल, अरलिया, तुलसी, वाइल्ड जरबेरा, नीम, क्रिसमस कैक्टस शामिल हैं. ये पौधे 24 घंटे ऑक्सीजन देते हैं.

पहले जहां सांस लेना दूभर था, अब मिल रही स्वच्छ हवा, बदबू भी खत्म: नैनी औद्योगिक क्षेत्र की पाल बस्ती में रहने वाले कमलेश पाल ने बताया कि पहले यहां सांस लेना दूभर था. पहले बहुत प्रदूषण रहता था. बगल में मुर्गी का फार्म होने के कारण बहुत बदबू आती थी. साफ हवा नहीं मिलती थी. लोग बीमार बहुत होते थे. अब जब से यह पौधरोपण हुआ है हवा काफी साफ-सुथरी हो गई है. यहां काफी ठंडा रहता है. काफी अच्छा महसूस होता है. अब केवल 10 से 15 फीसद ही प्रदूषण रह गया है. बदबू आना एकदम खत्म हो गई है.

पिपरांव की रहने वाली पूजा पाल ने बताया कि पहले यहां काफी प्रदूषण था. बदबू आती थी पर अब यहां काफी अच्छा महसूस होता है. प्रदूषण कम हो गया है. यहां तरह-तरह के पक्षी आते हैं. काफी अच्छा हरा-भरा महसूस होता है. यहां और सरकारी जमीनों पर पौधरोपण होना चाहिए. उर्मिला पाल कहती हैं कि पहले काफी धूल–मिट्टी उड़ती थी. बदबू काफी आती थी. जबसे पौधे लगे हैं बदबू खत्म हो गई है. प्रदूषण काफी कम हुआ है.

प्रयागराज महाकुंभ में अमृत स्नान करते श्रद्धालु.
प्रयागराज महाकुंभ में अमृत स्नान करते श्रद्धालु. (Photo Credit; ETV Bharat)

महाकुंभ में 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान: प्रयागराज विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष विजय किरण आनंद कहते हैं कि महाकुंभ में 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं व लाखों की संख्या में आने वाले वाहनों के कारण पर्यावरण पर अधिक दबाव पड़ता. प्रदूषण और अधिक हो जाता. इसको ध्यान में रखकर नगर निगम व वन विभाग के सहयोग से प्रयागराज में पांच लाख से अधिक पौधों का रोपण कराया गया है.

प्रयागराज में विभिन्न स्थानों पर जंगल विकसित किए गए ताकि कुंभनगर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को शुद्ध हवा और स्वस्थ वातावरण मिल सके. प्रयागराज नगर निगम ने पिछले दो वर्षों में जापानी मियावाकी तकनीक का उपयोग करके कई ऑक्सीजन बैंक बनाए गए हैं. इन प्रयासों ने न केवल हरियाली को बढ़ाया है, बल्कि वायु गुणवत्ता में सुधार किया है.

प्रयागराज नगर निगम के आयुक्त चंद्र मोहन गर्ग ने बताया कि मियावाकी तकनीक का उपयोग करके शहर के कई हिस्सों में घने जंगल तैयार कर रहे हैं. निगम ने सबसे अधिक 63 प्रजातियों के पौधे नैनी औद्योगिक क्षेत्र में लगाए हैं. बसवार जहां कूड़ा डंप किया जाता था वहां 27 विभिन्न प्रजातियों के 27,000 पेड़ लगाए गए हैं. अब ये पौधे तैयार हैं. इससे वायु प्रदूषण काफी हद तक कम हुआ है. इससे धूल, गंदगी और दुर्गंध को भी कम करने में मदद मिली है.

जनवरी में प्रयागराज का एक्यूआई.
जनवरी में प्रयागराज का एक्यूआई. (Photo Credit; Prayagraj Municipal Council)

एक्यूआई स्कोर घटा: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार प्रयागराज में एक जनवरी से लेकर अब तक का एक्यूआई स्कोर बता रहा है कि 14 जनवरी को महाकुंभ 2025 का पहला अमृत स्नन था. 13 को पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ महाकुंभ का आगाज हुआ. दो दिन में करीब साढ़े पांच करोड़ श्रद्धालुओं का महाकुंभ में आना हुआ. लाखों की संख्या में वाहन आए पर आपको जानकर हैरानी होगी कि सामान्य दिनों की अपेक्षा दो दिन का एक्यूआई स्कोर 106 व 94 रहा, जबकि एक जनवरी को यह स्कार 156 रहा जोकि खतरनाक स्तर माना जाता है. यानी उस दिन हवा सांस लेने के लायक नहीं थी.

प्रो. शैलेंद्र राय ने बताया कैसे कम हो रहा प्रदूषण.
प्रो. शैलेंद्र राय ने बताया कैसे कम हो रहा प्रदूषण. (Photo Credit; ETV Bharat)

पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहतर है मियावाकी तकनीक: इलाहाबाद विश्वविद्यालय एटमॉस्फेरिक साइंसेस के विभागाध्यक्ष शैलेंद्र राय का कहना है कि जापान की मियावाकी तकनीक से विकसित किए गए वन, पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत अच्छे होते हैं. इसीलिए अमेजॉन के जंगलों को पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहतर माना जाता है. अमेजॉन के जंगल भी मल्टीलेयर्ड होते हैं. प्रयागराज में जिस तरह से 5 लाख पौधे डेवलप किए गए हैं, इससे निश्चित रूप से यहां के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर करने में मदद मिलेगी.

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Last Updated : Jan 28, 2025, 12:16 PM IST
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