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हाईकोर्ट ने कहा- सीआरपीसी नहीं BNSS के तहत सुनी जानी चाहिए इरफान सोलंकी की अपील

सरकार की आपत्ति के बाद हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को संशोधन दाखिल करने को कहा. इरफान सोलंकी की जमानत पर सुनवाई 6 नवम्बर को होगी.

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माजवादी पार्टी के पूर्व विधायक इरफान सोलंकी और उनके भाई रिजवान सोलंकी (Photo Credit- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 5, 2024, 8:04 PM IST

प्रयागराज:कानपुर से समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक इरफान सोलंकी और उनके भाई रिजवान सोलंकी की सजा के खिलाफ अपील व जमानत पर सुनवाई दंड प्रकिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत नहीं, बल्कि नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के प्रावधानों के तहत होनी चाहिए. मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कोर्ट के समक्ष यह आपत्ति उठाई. इस पर अदालत ने दोनों पक्षों को संशोधन अर्जी दाखिल करने का निर्देश दिया. मामले की सुनवाई अब 6 नवंबर को होगी.

कोर्ट ने अपीलार्थी व राज्य सरकार के अधिवक्ताओं को संशोधन प्रार्थना दाखिल करने का समय दिया है. अपील नए कानून बीएनएनएस के तहत नहीं दाखिल की गई थी. इरफान सोलंकी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जल्दी सुनवाई की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को जमानत पर 10 दिन के भीतर सुनवाई का निर्देश दिया था. आदेश के परिपेक्ष्य में हाइकोर्ट लिस्टिंग एप्लीकेशन डाली गई थी.

इस पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति अदालत ने जमानत पर सुरेंद्र सिंह की पीठ ने सुनवाई के लिए 5 नवंबर की तिथि नियत की थी. मगर सुनवाई के दौरान मनीष गोयल ने आपत्ति की, कि मामला सीआरपीसी के तहत दाखिल है जबकि इसे नए कानून बीएनएसएस के तहत दाखिल किया जाना चाहिए, क्योंकि 1 जुलाई 2024 से नया कानून प्रभाव में आ चुका है.

सोलंकी बंधुओं पर कानपुर की एक महिला का घर जलाने के केस में अदालत ने सात साल कैद की सजा सुनाई है. इसे उन्होंने अपील में चुनौती दी है. सात साल की कैद की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने की मांग में राज्य सरकार ने भी शासकीय अपील दाखिल की है. कानपुर की अदालत ने इरफान व अन्य के विरुद्ध सात साल की सजा सुनाई थी. अपील के लंबित रहने के दौरान जमानत पर रिहा करने की मांग की गई है.

वाराणसी में ई रिक्शा पंजीयन रोक पर जवाब तलब, संचालन को लेकर याचिका दाखिल
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी में जिलाधिकारी के आदेश से ई-रिक्शा के पंजीयन पर रोक लगाने और जाम की समस्या के मद्देनजर इनके संचालन को लेकर डीएम के आदेश के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर सरकार और प्रशासन से जवाब मांगा है. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने अखिल भारतीय रिक्शा चालक व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है.

याचिका में डीएम के आदेश को चुनौती दी गई है. कहा गया है कि डीएम का आदेश मोटर वेहिकल एक्ट में दिए गए प्रावधानों के खिलाफ है. याची संगठन का कहना है कि ई रिक्शा संचालन में गरीब लोग जुड़े हैं. ऐसे में डीएम का आदेश अव्यवहारिक है. डीएम ने अग्रिम आदेशों तक पंजीयन पर रोक लगा दी है, जो गलत एवं असंवैधानिक है. हाईकोर्ट ने इस जनहित याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 29 नवंबर की तारीख लगाई है.

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