रांची:झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से चार लोकसभा सीटों यानी सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा और पलामू के लिए 13 मई को मतदान है. इन चार सीटों में से एक मात्र पलामू सीट एससी के लिए रिजर्व है जबकि शेष तीन सीटें एसटी के लिए. वर्तमान में इन चार सीटों में से सिर्फ सिंहभूम को छोड़कर सभी तीन सीटों पर भाजपा का कब्जा है.
भाजपा ने 2019 में कांग्रेस की टिकट पर सिंहभूम सीट से विजयी गीता कोड़ा को मैदान में उतार रखा है. लेकिन इस बार की लड़ाई 2019 वाली नहीं दिख रही है. इसकी वजह हैं मुद्दें. अब सवाल है कि पहले चरण की चार लोकसभा क्षेत्रों में कौन-कौन से मुद्दे हावी हैं. एक तरफ इंडिया गठबंधन है तो दूसरी तरफ एनडीए.
सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र में हावी मुद्दे
यह इलाका 'हो' आदिवासी बहुल है. भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा इसी आदिवासी समाज से आती हैं, जबकि झामुमो की प्रत्याशी जोबा मांझी संथाली आदिवासी समाज से आती हैं. भाजपा की ओर से झामुमो सरकार के ग्रामीण क्षेत्रों का विकास नहीं होना, आदिवासी बहुल इस क्षेत्र के 'हो' और 'संथाली' समाज को बांटने का आरोप लगाया जा रहा है. रोजगार के लिए यहां के युवा पलायन कर रहे हैं. पश्चिम सिंहभूम की खदानों को राज्य सरकार ने खोलने में दिलचस्पी नहीं दिखायी, इसकी वजह से बेरोजगारी बढ़ी. यहां के युवा दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं.
सिंहभूम के सभी पांच विधानसभा (सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर) क्षेत्रों में झामुमो के विधायक हैं, लेकिन इन इलाकों में सड़क, पेयजल, शिक्षा और अन्य मूलभूत सुविधाओं से लोग वंचित हैं. भाजपा की दलील है कि पीएम मोदी ने डीएमएफटी की शुरुआत की थी. लेकिन झामुमो के विधायकों ने डीएमएफटी में घोटाला किया. अपने चहेतों को करोड़ों का काम दिया. जबकि ज्यादातर काम अधूरे पड़े हैं.
वहीं, झामुमो की ओर से कहा जा रहा है कि भाजपा सिर्फ जुमलेबाजी की सरकार है. भाजपा कभी आदिवासियों की हितैषी नहीं हो सकती. भाजपा ने आजतक जो भी घोषणाएं की, उसे धरातल पर नहीं उतारा. ईचा डैम इस इलाके का बड़ा मुद्दा है. भाजपा का कहना है कि झामुमो की सरकार चाहती तो ईचा डैम के निर्माण पर रोक लग सकती थी. वहीं झामुमो का कहना है कि यह केंद्र सरकार की ही योजना है. अगर भाजपा चाहती तो इस योजना को बंद करा सकती थी. इसकी वजह से 87 गांव विस्थापित हो रहे हैं.
खास बात है कि सिंहभूम में 'हो' समाज बहुत एग्रेसिव स्थिति में है. पहली बार सिंहभूम में आदिवासी समाज बंटा हुआ दिख रहा है. इससे पहले के चुनावों में आदिवासी समाज के बीच खाई कभी नजर नहीं आई थी.
खूंटी लोकसभा क्षेत्र में कौन-कौन से मुद्दे हावी
खूंटी में सीधा मुकाबला भाजपा के अर्जुन मुंडा और कांग्रेस के कालीचरण मुंडा के बीच है. वैसे यहां कुल सात प्रत्याशी भाग्य आजमाने उतरे हैं. कांग्रेस की बात करें तो चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय मुद्दों पर फोकस किया जा रहा है. कांग्रेस का कहना है कि खूंटी से लगातार पलायन हो रहा है. यहां रोजगार नहीं मिल रहा है. नशे की लत में ग्रामीण समाए जा रहे हैं.
इसके अलावा कांग्रेस के मेनिफेस्टो से मिलने वाले फायदे गिनाए जा रहे हैं. हर साल महिलाओं के खाते में 1 लाख रु. और बेरोजगारों को भत्ता का भरोसा दिलाया जा रहा है, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा तीसरी बार भाग्य आजमा रहे हैं, वह स्थानीय लोगों से मुलाकात के दौरान उनकी समस्याओं के समाधान का भरोसा दिला रहे हैं.
वहीं भाजपा प्रत्याशी और केंद्र में मंत्री अर्जुन मुंडा की ओर से मोदी की गारंटी की बात की जा रही है. कोरोना काल में हुए काम, राम मंदिर का निर्माण, युवाओं को कुशल बनाकर रोजगार के अवसर मुहैया कराना, एकलव्य विद्यालयों की स्थापना का जिक्र हो रहा है. साथ ही पीएम मोदी के कार्यकाल में देश स्तर पर हुए कार्यों का बखान किया जा रहा है.
कुल मिलाकर देखें तो केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा सिर्फ पीएम मोदी के नाम पर ही वोट मांग रहे हैं. भगवान बिरसा मुंडा के नाम का भी सहारा लिया जा रहा है. अर्जुन मुंडा का कहना है कि केंद्र में बनी भाजपा सरकार ने ही भगवान बिरसा मुंडा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. उनकी जयंती को पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया.
निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ी बबीता कच्छप को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि वह इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना सकती हैं. क्योंकि वह खूंटी में चर्चित पथलगड़ी आंदोलन का नेतृत्व कर चुकी हैं. इसी वजह से 2019 के चुनाव में आंदोलन प्रभावित इलाकों के लोगों ने वोट बहिष्कार किया था और सभी सरकारी दस्तावेज जला दिए थे. लेकिन अब माहौल बदल गया है. पत्थलगांव क्षेत्र के लोग इस बार वोट देने के लिए बेताब हैं. उनकी दलील है कि उनको गुमराह कर सरकारी दस्तावेज को जलवाया गया था. हालांकि अभी तक पत्थलगड़ी समर्थकों का स्टैंड समझ से परे हैं कि वे किसकी तरफ झुकेंगे.