विकासनगर: देहरादून के पछुवादून क्षेत्र में खेतों में बासमती धान की खेती लहलहा रही है. चारों ओर धान की खुशबू महक रही है. इस देश-विदेश के लोग चावल की खुशबू और स्वाद के दीवाने होते हैं. यही वजह है कि इस बासमती चावल की डिमांड काफी रहती है. यह चावल पौष्टिकता के साथ तमाम गुणों से भरपूर होता है.
उत्तराखंड में वैसे तो किसान कई प्रकार की फसलों की खेती करते आ रहे हैं. जिसमें अनेक अनाज अपने विशेष पौष्टिकता भरे गुणों और स्वाद के लिए पहुंचाने जाते हैं. इनमें देहरादून का बासमती चावल भी शामिल है. इस चावल की वजह से देहरादून की कभी पहचान होती थी, लेकिन कुछ दशकों में बासमती की खेती में गिरावट आई है, लेकिन अब पारंपरिक खेती करने वाले किसानों ने फिर से देहरादूनी बासमती धान का रकबा बढ़ाया है.
विकासनगर में बासमती की खेती (वीडियो- ETV Bharat) रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करते हैं किसान:किसानों का मानना है कि अब वो नई प्रजाति की बासमती धान की ओर आकर्षित होकर इसकी खेती करने लगे हैं. उनका कहना है भले ही देहरादून बासमती धान की फसल का उत्पादन कम हो, लेकिन इसमें बीमारियां कम लगती है और रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी नहीं करना पडता है. इसके उत्पादन के लिए किसान केवल गोबर की खाद का इस्तेमाल करते हैं. जब उत्पादन हो जाता है तो पहले अपने लिए सालभर का चावल रख लेते हैं, फिर बाकी का बेच देते हैं.
अन्य बासमती चावलों की तुलना 20-25 रुपए प्रति किलो ज्यादा कीमत मिल जाती है. इसकी खुशबू और स्वाद हमेशा बना रहता है. जिस कारण से देश-दुनिया में देहरादूनी बासमती का रुतबा बरकरार है. इन दिनों भी खेतों में बासमती धान की बालियां लहलहा रही हैं. कुछ दिनों बाद फसल पक कर तैयार हो जाएगी. जिसके बाद वो धान की कटाई में लग जाएंगे.
खेतों में बासमती (फोटो- ETV Bharat) क्या बोले कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक?कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक संजय सिंह राठी का कहना है कि वो भी करीब 20 साल पहले बासमती के किसान रहे हैं. उत्तराखंड की तलहटी के साथ जम्मू कश्मीर से लेकर नेपाल के बॉर्डर तक शिवालिक पर्वत श्रृंखला से लगती भूमि बासमती के लिए काफी अनुकूल है. यहां पर जो बासमती पैदा होती है, इसकी गुणवत्ता काफी अच्छी होती है. गुणवत्ता के साथ इसकी खुशबू को देश में ही नहीं यूरोप से लेकर ब्रिटेन में खूब पसंद किया जाता है.
खेतों में लहलहा रही बासमती धान (फोटो- ETV Bharat) कृषि वैज्ञानिक संजय राठी ने बताया कि उत्तराखंड में बासमती के किस्म की बात करें तो सबसे पुरानी बासमती 'देहरादूनी बासमती' है. जो यहां के काफी अनुकूल है. हालांकि, इसका उत्पादन आज के उन्नत धान के उनके मुकाबले करीब आधा होता है, लेकिन इसकी गुणवत्ता काफी अच्छी होती है. जब यह चावल मार्केट में आता है तो हाथों हाथ बिक भी जाता है. अपनी अलग ही स्वाद और खुशबू की वजह से यह अन्य बासमती से खास होती है. यही वजह है कि लोग इस चावल को खरीदते हैं.
बासमती धान की बालियां (फोटो- ETV Bharat) पछुवादून क्षेत्र में करीब 200 हेक्टेयर भूमि में हो रही बासमती की खेती:उन्होंने बताया कि इस धान का भूसा पशुओं के चारे में काफी बढ़िया होती है. जिस वजह से मवेशियों के लिए फायदेमंद होती है. उन्होंने कहा कि इसके पैदावार में पिछले कुछ सालों से गिरावट आई है, लेकिन बाजारों में डिमांड बढ़ता देख किसानों में फिर से रुझान बढ़ा है. कृषि वैज्ञानिक संजय राठी के मुताबिक, पछवादून के सोरना डोबरी, विकासनगर, बरोटीवाला, प्रतीतपुर, धर्मावाला गांव, नयागांव आदि क्षेत्रों के करीब 200 हेक्टेयर भूमि में देहरादून बासमती की पैदावार की जा रही है.
खेत में कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक संजय सिंह राठी (फोटो- ETV Bharat) एक हेक्टेयर भूमि में होती है 10 से 12 क्विंटल धान की पैदावार:बासमती धान को लेकर एक कलस्टर बनाया हुआ है. जिसमें सभी किसान पंजीकृत हैं. उन्होंने बताया कि लोकल जो चावल मिल हैं, उनमें यूनाइटेड राइस मिल या इंडिया गेट बासमती और लाल किला चावल मिल शामिल हैं. जो किसानों को अपने स्तर से बीज उपलब्ध कराते हैं. इसके बाद वो चावल को प्रोसेसिंग कर बेचते हैं. इसकी औसतन पैदावार 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इसमें ज्यादा रोग या किट की समस्या नहीं आती है. जिसके चलते ज्यादा रसायनों का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है.
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