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Rajasthan: अजमेर में कमजोर हो रहा कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा, कार्यकाल पूरा होने के 4 वर्ष बाद भी नहीं बदले शहर और देहात अध्यक्ष

अजमेर में कांग्रेस पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है. संगठन में पदाधिकारी भी लंबे समय से नहीं बदले गए.

Factionalism in Ajmer Congress
अजमेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन और देहात कांग्रेस अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राठौड़ (Photo ETV Bharat Ajmer)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 4 hours ago

अजमेर: अजमेर में कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा कमजोर हो रहा है. जिला स्तरीय पदाधिकारियों में कोई बदलाव नहीं होने से संगठन में ठहराव सा आ गया है. शहर और देहात कांग्रेस संगठन में 9 साल से कोई बदलाव नहीं हुआ. दोनों अध्यक्षों और उनकी कार्यकारणी का कार्यकाल 4 वर्ष पहले ही पूरा हो गया था. इसके बावजूद इन्हें नहीं बदला गया. इसका खमियाजा कांग्रेस ने हर चुनाव में हार के रूप में भुगता है. इसके बावजूद अजमेर के हालात को प्रदेश कांग्रेस और आलाकमान ने कभी गंभीरता से नहीं लिया.

अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी पर गुटबाजी का ग्रहण है. हर खास मौके पर यह गुटबाजी सामने आ जाती है. यही कारण है कि अजमेर शहर में अजमेर उत्तर और अजमेर दक्षिण की सीट 2023 से अभी तक कांग्रेस के हाथ नहीं लगी. कांग्रेस की गुटबाजी शहर में ही नहीं देहात में भी अपने पैर पसार चुकी है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच के अंतर्कलह ने अजमेर कांग्रेस के हाल बेहाल कर दिए. वर्तमान में कांग्रेस के अजमेर शहर अध्यक्ष विजय जैन और देहात कांग्रेस से भूपेंद्र सिंह राठौड़ निवर्तमान अध्यक्ष है. 9 वर्ष पहले पीसीसी चीफ रहे सचिन पायलट ने दोनों को नियुक्ति दी थी. तब से आज तक कोई बदलाव नहीं हुआ. इस दौरान विधानसभा और लोकसभा चुनाव भी हो गए, लेकिन जिला स्तर के पदाधिकारियों में कोई बदलाव नहीं हुआ.

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ये हाल है जिले में कांग्रेस का:​अजमेर जिले की संवैधानिक संस्थाओं में कांग्रेस की सब जगह हालत खराब है. अजमेर नगर निगम में भाजपा का बोर्ड है. यहां 80 वार्ड में से कांग्रेस के महज 18 पार्षद ही चुनाव जीत पाए थे. इसी तरह पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़, ब्यावर और विजयनगर के स्थानीय निकायों में भाजपा का बोर्ड है. केवल केकडी नगर परिषद में कांग्रेस का बोर्ड है. इसी तरह जिला परिषद के चुनाव में 32 में से 11 सदस्य कांग्रेस के जीतकर आए, जबकि 21 सीटों पर बीजेपी के सदस्य जीते. यहां कांग्रेस के समर्थन से बीजेपी नेता भंवर सिंह पलाड़ा अपने पत्नी सुशील कंवर पलाड़ा को दूसरी बार जिला प्रमुख बनाने में कामयाब रहे. केकडी और ब्यावर के जिला बनने से पहले अजमेर में 8 विधानसभा सीटें थीं. इन सीटों में से कांग्रेस को एक मात्र किशनगढ़ सीट मिली है. अजमेर लोकसभा सीट से भी कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली.

गहलोत और पायलट गुट में रही खींचतान:पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट में खींचतान का असर अजमेर में कांग्रेस के स्थानीय संगठन में भी आ गया. 9 वर्ष पहले सचिन पायलट ने पीसीसी चीफ रहते शहर और देहात अध्यक्ष बनाए थे. वे आज भी निवर्तमान के रूप में मौजूद है. कांग्रेस को पिछले चुनावों में मिली लगातार हार से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर रहा है. कांग्रेस का कार्यकर्ता आलाकमान की ओर से उम्मीद की निगाह से देख रहा है कि अजमेर शहर और देहात कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर निर्विवाद कार्यकर्ता को मौका दिया जाए जो संगठन को मजबूती दे सके.

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अजमेर की राजनीति में राठौड़ की सक्रियता:विगत अशोक गहलोत सरकार में आरटीडीसी के चैयरमैन रहे धर्मेंद्र सिंह राठौड़ अजमेर की राजनीति में काफी सक्रिय रहे हैं. राठौड़ खुद भी अजमेर में अपनी राजनीति जमीन को उपजाऊ बनाने की कवायद में है. विगत चुनाव में विवादों के कारण राठौड़ को टिकट नहीं मिल पाया, लेकिन राठौड़ अब भी अजमेर में अपना राजनीति भविष्य देख रहे है. हालांकि अजमेर में विगत 25 वर्षों में हुए सभी चुनाव का रिकॉर्ड देखे तो परिणाम कांग्रेस के पक्ष में संतोषजनक नहीं रहे. शहर की दोनों सीटों पर 5 बार कांग्रेस को लगातार शिकस्त मिली है.

अजमेर कांग्रेस में गुटबाजी नई बात नहीं:राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार पीके श्रीवास्तव का कहना था कि अजमेर जिला कांग्रेस में गुटबाजी नई बात नहीं है. यहां अध्यक्ष भी लंबे समय तक बने रहे हैं. श्री गोपाल बाहेती और महेंद्र सिंह रलावता का छोड़ दें तो मानक लाल सोगानी, जसराज जयपाल या वर्तमान शहर और देहात अध्यक्ष सभी कार्यकाल पूरा होने के बाद भी पद पर बने रहे. अजमेर के लिहाज से कांग्रेस की नीति फिट नहीं बैठती है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अजमेर में या तो नेतृत्व ही नहीं चाहती है या बीजेपी के मजबूत संगठन से डरती है. वर्तमान में देखें तो अजमेर शहर और देहात अध्यक्ष के पद रिक्त हैं. इन पदों पर निवर्तमान अध्यक्ष ही दायित्व संभाल रहे हैं. कांग्रेस के किसी बड़े नेता के आने पर यह सक्रिय होते हैं. उसके बाद निष्क्रिय हो जाते हैं. इससे ना तो संगठन मजबूत हो पा रहा है और ना ही इसका फायदा चुनाव में कांग्रेस को मिल रहा है. अजमेर उत्तर और दक्षिण की सीट की बात करें तो भाजपा दोनों सीटों पर लंबे समय से काबिज है. विगत विधानसभा चुनाव में दोनों ही सीटें गुटबाजी के कारण कांग्रेस हारी. कांग्रेस उम्मीदवारों के सामने है सबसे बड़ी चुनौती खुद उनकी पार्टी के लोग होते हैं.

कांग्रेस में गुटबाजी से इनकार:इधर, कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता प्रियदर्शी भटनागर ने पार्टी में गुटबाजी से इनकार किया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस संगठन धरातल पर काम कर रहा है. हाल ही में मंडल स्तर पर अध्यक्षों की नियुक्तियां हुई है. भटनागर ने माना कि नगर निगम, नगर परिषद और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस कमजोर और गुटबाजी से त्रस्त है. कांग्रेस ने अपने कामकाज की समीक्षा की है. अब यह मिथक भी टूटने लगा है कि यहां बीजेपी विचारधारा के लोग अधिक है. अजमेर में 30 वर्षों से दोनों सीटों पर भाजपा के विधायक रहे है और जनता ने उनके कामो की पोल खुलते भी देखा है. कांग्रेस जनहित के मुद्दे उठा रही है. इस बार नगर निगम , जिला परिषद और पंचायत के चुनाव में नतीजे कांग्रेस के पक्ष में रहेंगे.

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