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लोक गायिका उप्रेती सिस्टर्स ने बयां किया पहाड़ का दर्द, बोलीं- मोदी के नाम पर चुनाव जीतने वाले सोचें उन्होंने क्या किया? - Upreti Sisters on Loksabha Election

Uttarakhand Lok Sabha Election 2024, 19 April 2024, 4 June 2024 उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव 2024 की सरगर्मियां तेज है. इसी बीच ईटीवी भारत ने उत्तराखंड की उभरती हुई लोक गायिका उप्रेती सिस्टर्स से खास बातचीत की. और चुनावी मुद्दों और उत्तराखंड की समस्याओं पर उनके मन की बात जानी...

Upreti Sisters on Loksabha Election
लोक गायिका उप्रेती सिस्टर्स

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 16, 2024, 10:37 AM IST

Updated : Apr 16, 2024, 1:55 PM IST

उप्रेती सिस्टर्स से खास बातचीत.

देहरादून: उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होना है. मतदान से पहले ईटीवी भारत उत्तराखंड की तमाम बड़ी हस्तियों से बात कर चुनावी मुद्दों पर उनकी राय ले रहा है. इसी क्रम में ईटीवी भारत ने अब उत्तराखंड की उभरती हुई गायिका उप्रेती सिस्टर्स से खास बातचीत की. ईटीवी भारत ने पूछा कि वो उत्तराखंड के लिए क्या चाहती हैं.

सवाल: प्रदेश में लोक संगीत की क्या स्थिति है और जो युवा संगीत के क्षेत्र में एक मुकाम हासिल करना चाहते हैं, उनको क्या करने की जरूरत है?

जवाब:नवरात्रों की शुभकामनाएं देते हुए नीरजा उप्रेती ने कहा कि आने वाला चुनाव उत्तराखंड के लिए प्रगतिशील हो और राज्य में विकास लेकर आए. साथ ही कहा कि यह विकास ऐसा हो जो पहाड़ के लिए सकारात्मक और फलीभूत हो. पहले के मुकाबले संगीत की तरफ युवाओं का रुझान अधिक बढ़ रहा है. लोगों का ध्यान लोक संगीत की तरफ आकर्षित हो रहा है. इसके साथ ही जो वाद्य यंत्र हैं, उस ओर भी युवाओं का ध्यान आकर्षित हो रहा है, जो अच्छी बात है. लिहाजा प्रदेश अपने लोक संगीत की तरफ तन, मन और धन से आगे बढ़े.

सवाल: संगीत और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकारों को क्या करने की जरूरत है?

जवाब:ज्योति उप्रेती ने कहा कि जब कोई व्यक्ति कोई काम करता है, तो प्रोत्साहन उसके कार्य को चार गुणा बढ़ा देता है. उत्तराखंड में प्राकृतिक संपदा के साथ-साथ कण-कण में लोक संगीत विराजमान है. जब पहाड़ों और नदी- झरनों से संगीत का स्वर गूंजता है, तो वो गांव घरों से निकलकर देवभूमि को विश्व के प्रांगण पर सजाता है. ऐसे में हर घर और हर गांव में लोक संगीत गूंज रहा है और ऐसा लोकसंगीत जो यहां की संस्कृति को सुदृढ़ और समृद्धिशाली बनाता है.

राज्य के मुखिया और संस्कृति विभाग का यह काम होता है कि वह प्रदेश की संस्कृति को गांव घरों से उठाकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए विश्व पटल पर पहुंचाएं. आज प्रदेश की संस्कृति को लोक गायक और लोक कलाकार आगे बढ़ा रहे हैं. ऐसे में उनको प्रोत्साहन देना बहुत जरूरी है.

सवाल:आप प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों से आती हैं, क्या लगता है कि पहाड़ों में अभी क्या-क्या समस्याएं हैं?

जवाब: उप्रेती सिस्टर्स ने बताया कि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में समस्याओं का अंबार है. समस्याओं की लिस्ट काफी लंबी है, वो हाल ही में कुमाऊं क्षेत्र का भ्रमण करके आई हैं. जिसके तहत प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य की समस्याएं सबसे अधिक हैं, जिसके तहत छोटी-छोटी बीमारियों में भी मरीज को रेफर कर दिया जाता है. कई बार तो मरीज बड़े हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देता है. इसके अलावा शिक्षा व्यवस्था भी काफी लचर है, क्योंकि पर्वतीय क्षेत्रों में मौजूद सरकारी स्कूलों में गिने-चुने बच्चे ही पढ़ाई कर रहे हैं. यही वजह है कि पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन हो रहा है. अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छे स्कूल से शिक्षा ग्रहण करें.

सवाल:उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहा पलायन एक गंभीर समस्या बनी हुई है, ऐसे में आप पलायन होने की असल वजह क्या मानती हैं?

जवाब: भारत का 80 फ़ीसदी परिवेश ग्रामीण है. ऐसे ही गांव मिलकर देवभूमि का निर्माण करते हैं. लिहाजा गांव हैं तो हम हैं, गांव हैं तो हमारी संस्कृति है. ऐसे में जब तक गांव सुरक्षित नहीं हैं, हमारी संस्कृति सुरक्षित नहीं है. वर्तमान समय में गांव से पलायन होने की मुख्य वजह स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क के साथ मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. गांव में पानी के प्राकृतिक स्रोत, शुद्ध हवा, जंगल और जमीन थे, जहां आप बिना रोक टोक घूम सकते थे, लेकिन समस्या ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा खत्म होने की कगार पर है. यही कारण है कि पर्वतीय क्षेत्रों का युवा जल, जंगल और जमीन छोड़कर शहर की तरफ भाग रहा है.

वहीं, उप्रेती सिस्टर्स का मानना है कि उत्तराखंड में नशा गंभीर समस्या बनता जा रहा है. शहर में बच्चों के स्कूल बैग तक नशा पहुंच गया है. प्रदेश के शहरी क्षेत्रों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले छोटे-छोटे बच्चे भी नशे की गिरफ्त में फंसे हुए हैं. ऐसे में एक बड़ा सवाल यही है कि शहर से ग्रामीण क्षेत्रों में नशा कैसे पहुंच रहा है? जो आने वाले समय में एक गंभीर समस्या बनकर प्रदेश में उभरेगा. युवाओं में बढ़ता नशा सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. युवाओं के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें नशे की गिरफ्त से बाहर निकलना होगा.

सवाल: लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी रहते हैं. राष्ट्र के मुद्दों के सामने कई बार स्थानीय मुद्दे दब जाते हैं. उत्तराखंड के लिहाज से इन चुनावों में कौन-कौन से स्थानीय मुद्दे राजनीतिक पार्टियों को उठाने चाहिए?

जवाब:सबसे पहले तो जनता को जागरूक होने की जरूरत है. क्योंकि सरकार जनता बनाती है. जनता सोचती है कि चुनाव से उस पर क्या फर्क पड़ रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है. यदि जनता चाहे तो वो वोट की शक्ति से बड़े-बड़ों के तख्त पलट सकती है. विधायक और सांसद के पास काम करने के लिए पांच साल का वक्त बहुत होता है.

स्थानीय मुद्दों की बात की जाए तो उत्तराखंड में धधकते जंगल बड़ा मुद्दा है. कुमाऊं क्षेत्र में हर तरफ जंगलों में आग लगी हुई है. उत्तराखंड आने वाला पर्यटक चारधाम के दर्शन के साथ ही खूबसूरत पहाड़ों का दीदार करने आता है, लेकिन मौजूदा समय में धुंध होने के चलते पहाड़ नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में चुनाव के दौरान प्रत्याशियों से अपनी स्थानीय समस्याओं को लेकर सवाल करना चाहिए.

सवाल: प्रदेश की आधी आबादी महिलाओं की है, लेकिन आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं की समस्याएं पहाड़ जैसी हैं. ऐसे में स्थानीय स्तर पर क्या करने की जरूरत है?

जवाब: पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाओं के लिए स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं. ऐसे में महिलाओं को आगे लेकर स्वरोजगार से जोड़ सकते हैं. केंद्र सरकार की ओर से ग्रामीण स्तर पर महिलाओं के लिए तमाम योजनाएं चलाई जाती हैं. ऐसे में ग्राम प्रधानों को इतना जागरूक होना चाहिए कि योजनाओं की जानकारी महिलाओं तक पहुंचाएं. अगर सरकार की ओर से योजनाएं नहीं आ रही हैं तो उसके लिए लड़ें, ताकि उनके गांव की महिलाओं के साथ प्रदेश की सभी महिलाओं का भला हो सके. आज भी प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम महिलाएं काम कर रही हैं. इसके साथ ही महिलाएं आज भी बिना किसी शिकायत के परिवार का पूरा काम कर रही हैं. इसके साथ ही प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्गों के लिए छोटे-छोटे क्लीनिक भी बनाए जाने चाहिए, ताकि वो बिना किसी के सहारे के ही अपना इलाज करवाने जा सकें.

सवाल: पर्वतीय क्षेत्र का युवा क्या सोच रहा है?

जवाब: प्रदेश के युवाओं का सबसे पहला मुद्दा जल, जंगल और जमीन को सुरक्षित करना है. कुछ लोगों ने मजबूरी में अपनी जमीनों को बेचा है. कुछ सरकारों ने बेचा, कुछ ठेकेदारों ने बेचा, ऐसे में अब प्रदेश का युवा जाग चुका है कि हमारे जल, जंगल और जमीन कितने कीमती हैं. ऐसे में विकास का एक दायरा होना चाहिए. शहरी क्षेत्र के लिए अलग और ग्रामीण या पर्वतीय क्षेत्र के लिए अलग. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का एक दायरा भविष्य के लिहाज से ठीक नहीं है. प्रदेश का युवा यह जान चुका है कि सख्त भू कानून की आवश्यकता है. साथ ही मूल निवास का मुद्दा भी है.

सवाल: मौजूदा राज्य और केंद्र सरकार को किस तरह से देखती हैं?

जवाब: भारत को सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाने में मौजूदा केंद्र सरकार बहुत बेहतर काम कर रही है. इसीलिए इस सरकार को लंबे समय तक केंद्र की सत्ता में बने रहना जरूरी है, लेकिन केंद्र सरकार के भरोसे पूरा देश नहीं चल सकता है. केंद्र सरकार जो काम कर रही है, उसको ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचने में काफी लंबा समय लगता है. ऐसे में गांव में बैठे प्रधान अगर यह सोच रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वह चुनाव जीत जाएंगे तो वह अपने आप को निम्न कोटि पर रखकर तौल रहे हैं. ऐसे में अगर कोई भी उम्मीदवार बनता है तो वह अपने आप से पूछे कि वह इतनी बार जीत चुका है, लेकिन अभी तक जनता के दिल में अपने लिए जगह नहीं बन पाया है. साथ ही कहा कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के अंदर काफी आक्रोश है, क्योंकि वहां जनप्रतिनिधियों ने कोई काम नहीं किया.

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Last Updated : Apr 16, 2024, 1:55 PM IST

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