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उत्तराखंड में बढ़ेगा विद्युत उत्पादन, अगले 8 सालों में होगी 8500 मेगावाट बिजली पैदा! - Electricity production in dehradun

Electricity Production will Increase in Uttarakhand धामी सरकार उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिए तमाम कोशिशें कर रही है. इसी कड़ी में यूजेवीएनएल विद्युत उत्पादन को लेकर तमाम काम कर रही है. ताकि, विद्युत का उत्पादन सरप्लस किया जा सके. इस संबंध में यूजेवीएनएल के एमडी संदीप सिंघल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है.

Electricity production will increase in Uttarakhand
उत्तराखंड में बढ़ेगा बिजली उत्पादन (photo- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 24, 2024, 10:01 PM IST

Updated : Sep 24, 2024, 10:52 PM IST

देहरादून: यूजेवीएनएल (उत्तराखंड जल विद्युत निगम) ने अगले 8 सालों में जल विद्युत परियोजना के जरिए 8500 मेगावाट विद्युत का उत्पादन होने का दावा किया है. यूजेवीएनएल के एमडी संदीप सिंघल ने बताया कि उत्तराखंड में 20 हजार मेगावाट हाइड्रो पावर उत्पादन की क्षमता है, जिसके सापेक्ष सिर्फ 4249 मेगावाट हाइड्रो पावर का उत्पादन किया जा रहा है. ऐसे में यूजेवीएनएल प्रयास कर रहा है कि अगले 8 सालों में विद्युत उत्पादन को दुगुना यानी 8500 मेगावाट किया जा सके. इसके लिए कार्ययोजना तैयार की गई है. जिसके तहत कौन सी परियोजनाएं यूजेवीएनएल, सेंटर पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग या फिर प्राइवेट डेवलपर्स की ओर से बनाई जाएगी, ये तय किया गया है.

यूजेवीएनएल में 148.5 मेगावाट क्षमता की पांच परियोजनाएं बढ़ीं: यूजेवीएनएल के एमडी संदीप सिंघल ने बताया कि मौजूदा समय में यूजेवीएनएल में 148.5 मेगावाट क्षमता की पांच परियोजनाएं बढ़ गई है, जिसके तहत देहरादून में 120 मेगावाट की व्यासी जल विद्युत परियोजना, पिथौरागढ़ जिले में 5 मेगावाट की सुरिनगाड़ परियोजना, रुद्रप्रयाग जिले में 4 मेगावाट की कालीगंगा-1एवं 4.5 मेगावाट की कालीगंगा- 2 परियोजनाऔर रुद्रप्रयाग जिले में 15 मेगावाट की मद्महेश्वर जल विद्युत परियोजना शामिल है. इसके अलावा देहरादून जिले में 300 मेगावाट की लखवाड़ परियोजनाका निर्माण किया जा रहा है.

अगले 8 सालों में होगी 8500 मेगावाट बिजली पैदा! (video-ETV Bharat)

दिन के समय विद्युत उपलब्धता बढ़ती है:एमडी संदीप सिंघल ने बताया कि सोलर परियोजना जोकि वेरिएबल और अनसर्टेन है, क्योंकि दिन के समय विद्युत उपलब्धता बढ़ गई है. जबकि, शाम और रात को विद्युत उपलब्धता बहुत कम हो जाती है. ऐसे में जितना भी जहां भी स्टोरेज किया जा सकता है, इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है, ताकि ग्रिड को स्टेबल किया जा सके. उन्होंने कहा कि एनर्जी स्टोरेज के तहत, बैटरी स्टोरेज, पंप स्टोरेज और हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में भी स्टोरेज हो, ताकि दिन की जगह रात में भी इस्तेमाल किया जा सके.

यूजेवीएनल से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु (photo- ETV Bharat)

हाइड्रो काइनेटिक टरबाइन पर जोर:विद्युत उत्पादन के लिए हाइड्रो काइनेटिक टरबाइन पर भी जोर दिया जा रहा है, जिस पर यूजेवीएनएल के एमडी संदीप सिंघल ने बताया कि नहरों में जो पानी का प्रवाह होता है. उसका इस्तेमाल करके हाइड्रो काइनेटिक टरबाइन चलाया जाता है, जिससे विद्युत का उत्पादन होता है. यह तकनीकी सफलतापूर्वक धरातल पर उतर सके, इसके लिए यूजेवीएनएल लगातार प्रयास कर रहा है. इसके लिए आईआईटी रुड़की और यूजेवीएनएल के बीच में एमओयू भी साइन किया गया है. लिहाजा हाइड्रो काइनेटिक टरबाइन का डेवलपमेंट किया जा रहा है. ऐसे में जब टरबाइन का काम पूरा हो जाएगा, तो उसके बाद इस टरबाइन के जरिए विद्युत उत्पादन किया जाएगा.

उत्तराखंड में जियोथर्मल पावर की बड़ी संभावना:उत्तराखंड में जियोथर्मल पावर की बड़ी संभावना है, जिस पर यूजेवीएनएल एमडी ने बताया कि जियोथर्मल पावर प्लांट के लिए उत्तराखंड सरकार और आइसलैंड सरकार के बीच एक एमओयू साइन किया जाना है. इसके बाद प्रदेश में जियोथर्मल पावर प्लांट की संभावनाओं की स्टडी की जाएगी, ताकि यह पता लगाया जा सके कि प्रदेश में जियोथर्मल की कितनी संभावना है. हालांकि, फिलहाल तपोवन और बदरीनाथ में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग्स पर जियोथर्मल पावर प्लांट लगाने की संभावना है.

आउटबर्स्ट फ्लड का होता है अध्ययन:संदीप सिंघल ने बताया कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र काफी संवेदनशील हैं. ऐसे में पावर प्लांट परियोजनाओं के लिए तमाम तरह के अध्ययन कराए जाते हैं, जिसके सवाल पर यूजेवीएनएल एमडी ने बताया कि परियोजना के दौरान ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड का भी अध्ययन कराया जाता है, ताकि किसी भी डैम वैराज और स्थानीय लोगों को क्षति न पहुंचे. उन्होंने कहा कि सभी विद्युत परियोजनाओं में अर्ली मॉर्निंग सिस्टम लगा दिया गया है, ताकि अगर कोई अप्रत्याशित फ्लड आती है तो परियोजनाओं और स्थानीय लोगों को इसकी सूचना पहले ही दी जा सके.

डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान भी बनाए गए:साथ ही डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान भी बनाए गए हैं कि अगर कोई आपदा जैसी स्थिति आती है तो उस दौरान नुकसान को कम से कम किया जा सके. इसके अलावा जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से ये भी चिन्हित किया जाता है कि भूगर्भीय दृष्टिगत परियोजना का निर्माण किया जा सकता है. साथ ही सिस्मिक डिजाइन किया जाता है, ताकि अगर भूकंप आए तो भी परियोजना को कोई क्षति न पहुंचे. इसके अलावा ब्लास्ट की वजह से अधिक वाइब्रेशन उत्पन्न ना हो इसकी भी मॉनिटरिंग की जाती है. इसके अलावा पर्यावरणीय प्रभाव को देखते हुए भी तमाम प्रोजेक्ट्स छोड़ दिए जाते हैं.

उत्तराखंड, अन्य राज्य के साथ मिलकर ऊर्जा का करता है बैंकिंग:शीतकाल सीजन के दौरान विद्युत की मांग बढ़ जाती है और विद्युत का उत्पादन घट जाता है. ऐसे में विद्युत आपूर्ति के लिए क्या किया जाता है. इसके सवाल पर यूजीवीएनएल एमडी ने बताया कि मानसून सीजन के दौरान हाइड्रो पावर प्लांट में विद्युत का उत्पादन अधिक होता है. ऐसे में उत्तराखंड, अन्य राज्य के साथ मिलकर ऊर्जा का बैंकिंग कर लेता है, जिसके अनुसार जब उत्तराखंड में अधिक विद्युत उत्पादन होता है तो जिन राज्यों को विद्युत की जरूरत होती है उनको विद्युत उपलब्ध करा दी जाती है. ऐसे में जब लीग सीजन के दौरान प्रदेश में विद्युत उत्पादन कम होता है तो उन राज्यों से ऊर्जा वापस ले ली जाती है.

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Last Updated : Sep 24, 2024, 10:52 PM IST

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