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DA ही नहीं CM सुक्खू के सामने संशोधित वेतनमान के एरियर की भी चुनौती, 10 हजार करोड़ कहां से जुटाएगी सरकार

हिमाचल में कर्मचारियों का अभी 11 फीसदी डीए पेंडिंग हैं. सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार की आर्थिक मोर्चे पर अभी चुनौती कम नहीं हुई है.

सुखविंदर सिंह सुक्खू, मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश
सुखविंदर सिंह सुक्खू, मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश (सोशल मीडिया)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 4 hours ago

शिमला:दीपावली पर वेतन के साथ ही चार प्रतिशत डीए की किश्त देकर कर्मचारियों की वाहवाही लूटने वाली सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के सामने अभी भी आर्थिक मोर्चे पर चुनौती कम नहीं हुई है. अब सरकार को डीए की बकाया किश्तों, उसके एरियर के साथ ही संशोधित वेतनमान के एरियर के दस हजार करोड़ रुपये की रकम के भुगतान की चिंता है. पूर्व में भाजपा सरकार के समय छठे वेतन आयोग को लागू किया गया था तब सरकार ने संशोधित वेतनमान के एरियर की 50 हजार रुपये की एक किश्त दी थी.

सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार में राज्य की आर्थिक स्थिति को लेकर एक श्वेत पत्र विधानसभा में सदन के पटल पर रखा था तब शपथ पत्र में जिक्र किया गया था कि संशोधित वेतनमान के एरियर की बकाया रकम के तौर पर दस हजार करोड़ रुपये की देनदारी भाजपा सरकार ने छोड़ी है.

DA का 42 माह का एरियर बाकी

कर्मचारियों को दिवाली से पहले वेतन व चार प्रतिशत DA दिया गया. चार फीसदी एरियर चुकाने के लिए करीब 600 करोड़ रुपये खर्च हुए. अभी 11 फीसदी DA बकाया है साथ ही 42 महीने का एरियर भी पेंडिंग है.

ये एरियर 1 जुलाई, 2022 से 21 महीने और 1 जनवरी, 2023 से 21 महीने का लंबित है. इस पर सरकार को अनुमानित डेढ़ हजार करोड़ रुपये खर्च करना होगा साथ ही पूरा बकाया एरियर देने पर भी 2200 करोड़ रुपये चाहिए. इसमें 10 हजार करोड़ संशोधित वेतनमान का एरियर जोड़ दें तो आंकड़ा बड़ा हो जाता है.

घट रही RDG, कहां से आएगा पैसा

हिमाचल सरकार को केंद्र से मिलने वाली रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट यानी RDG में निरंतर कमी आ रही है. वित्त वर्ष 2025-2026 में ये ग्रांट घटकर 3257 करोड़ रुपये रह जाएगी. आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2021-22 में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट 10,249 करोड़ रुपये थी फिर अगले वित्तीय वर्ष यानी 2022-23 में ये 9377 करोड़ रुपये रह गई.

वर्ष 2023-24 में ये 8058 करोड़ रुपये थी और फिर 2024-25 यानी चालू वित्त वर्ष में ये ग्रांट 6258 करोड़ रुपये है. अगले वित्तीय वर्ष में ये ग्रांट घटकर सिर्फ 3257 करोड़ रुपये रह जाएगी. अभी मौजूदा वित्त वर्ष में राज्य को केंद्र से आरडीजी के रूप में 520 करोड़ रुपये महीने के मिलते हैं. अगले वित्त वर्ष में जब ये ग्रांट सिर्फ 3257 करोड़ रुपये सालाना होगी, तो महीने में कुल 271 करोड़ रुपये ही मिलेंगे. इससे सरकार के खजाने को कोई राहत नहीं मिलने वाली.

किस तरह निकलेगा दिसम्बर

चूंकि फेस्टिव सीजन में राज्य को केंद्र ने एक माह की सेंट्रल टैक्स की हिस्सेदारी एडवांस में दी है. लिहाजा, नवंबर में राज्य सरकार को केंद्रीय करों की हिस्सेदारी के 740 करोड़ रुपये नहीं मिलेंगे. चालू महीने यानी नवम्बर में राज्य सरकार के पास रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के 520 करोड़ रुपये, टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू के 1200 करोड़ रुपये व अन्य संसाधनों से भी कुछ रकम आएगी.

इसके अलावा राज्य सरकार के पास नवंबर महीने में लोन लेने का विकल्प भी रहेगा. हालांकि लोन की लिमिट अब केवल 1017 करोड़ रुपये ही बची है. ऐसे में दिसंबर महीने तक किसी तरह गाड़ी खिंच जाएगी, लेकिन अगले वित्तीय वर्ष में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट काफी घट जाने से गुजारा करना कठिन होगा. नवम्बर महीने में सरकार का खर्च वेतन व पेंशन के रूप में 2000 करोड़ रुपये है.

कठिन होगा संशोधित वेतनमान के एरियर का भुगतान

अगले साल RDG घट जाएगी. GST कंपनसेशन पहले ही बंद है. वित्त आयोग की सिफारिशें अक्टूबर 2026 से लागू होंगी. ऐसे में वेतन व पेंशन का खर्च पूरा करना ही कठिन हो जाएगा, फिर एरियर की तो बात दूर है. एक आस की किरण BBMB परियोजनाओं का बकाया 4500 करोड़ रुपये एरियर, शानन परियोजना का हस्तांतरण, वाटर सेस लागू करने से मिलने वाली रकम से कुछ हालात सुधर सकते हैं, लेकिन भारी भरकम देनदारी चुकाना फिर भी सरल नहीं है.

सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का दावा है कि राज्य में कोई आर्थिक संकट नहीं है. सरकार वित्तीय अनुशासन अपनाकर आगे बढ़ रही है. कठिन हालात में भी सरकार ने DA की एक किस्त दी है. राज्य को कर्ज़ में धकेलने का काम पिछली सरकार ने किया है. वहीं, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है कि कांग्रेस सरकार हर बात का दोष भाजपा पर मढ़कर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती.

वरिष्ठ पत्रकार ओपी वर्मा कहना है कि हिमाचल के लिए बढ़ता कर्ज़ चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है. अब हालात ये हैं कि बिना बेल आउट पैकेज के बात बनती नहीं दिखती. अगले साल मार्च में नया वित्तीय साल शुरू होने पर सरकार को मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी.

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