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हिमाचल के इस मेले में जमकर चलते हैं पत्थर, घायल होने पर खुश होते हैं लोग

शिमला के धामी क्षेत्र में दिवाली के अगले दिन पत्थर मेले का हर साल आयोजन होता है. इस मेले में हजारों लोग शामिल होते हैं.

STONE FAIR DHAMI
धामी का पत्थरबाजी मेला (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 2 hours ago

Updated : 17 minutes ago

शिमला: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से करीब 30 किलोमीटर दूर धामी के हलोग में हर साल दिवाली के अगले दिन पत्थर मेला आयोजित होता है. इस मेले की अपनी धार्मिक मान्यता है. पत्थर लगने से जो शख्स घायल होता है. उसके खून से मां भीमाकाली के मंदिर में तिलक किया जाता है. शुक्रवार को भी दिवाली से अगले दिन धामी में पुरानी परंपराओं के मुताबिक दो घरानों के बीच यह पत्थरबाजी का मेला हुआ.

दोपहर दो बजे के बाद धामी के मुख्य चौक पर कटेडू व जमोगी खानदानों के खूंद (पत्थर मारने वाले) एक तरफ एकत्रित हुए. दोनों ही तरफ से धामी के राजपरिवारों के आने के बाद पत्थर बरसाए गए. इस बार जमोगी खानदान के सुरेंद्र नाम के शख्स को पत्थर लगा और उसके चेहरे से खून निकलने के बाद पत्थरबाजी रोकी गई. इसके बाद सुरेंद्र के खून से माता का तिलक किया गया. इसके बाद मेला संपन्न हो गया.

धामी का पत्थरबाजी मेला (ETV Bharat)

ये थी परंपरा

मान्यता है कि सैकड़ों साल पहले धामी रियासत में स्थित मां भीमाकाली के मंदिर में मानव बलि दी जाती थी. धामी रियासत के राजा राणा की रानी इस मानव बलि के खिलाफ थी. बलि प्रथा पर रोक लगाने के लिए रानी मंदिर के साथ लगते चबूतरे यानी चौरे पर सती हो गई थी. रानी के सती होने के बाद पशु बलि शुरू की गई और बाद में पशु बलि को भी बंद कर दिया गया था जिसके बाद पत्थराबी के इस मेले की शुरुआत हुई. दो खानदानों के लोग दो समूहों में बंट जाते हैं और एक-दूसरे पर पत्थर से हमला करते हैं. इस परंपरा को निभाने के लिए जिस जगह पर पत्थरों के खेल को खेला जाता है उसे चौरा कहते हैं.

किसी शख्स के घायल होने पर खुश होते हैं लोग

हैरानी की बात है कि पत्थर लगने के बाद खून निकलने पर लोग खुश होते हैं. दोनों दल एक-दूसरे पर पत्थर मारते हैं और जैसे ही किसी व्यक्ति को पत्थर लगने के कारण खून निकलता है, उसका खून मां भीमाकाली को अर्पित किया जाता है और मेला पूरा हो जाता है. मेले के दौरान स्थानीय प्रशासन की तरफ से एंबुलेंस व मेडिकल टीम का बंदोबस्त भी होता है.

ये भी पढ़ें: ये है हिमाचल का 'काला पानी' ? एक बार यहां पहुंच गए तो एक साल से पहले नहीं होती थी वापसी

शिमला: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से करीब 30 किलोमीटर दूर धामी के हलोग में हर साल दिवाली के अगले दिन पत्थर मेला आयोजित होता है. इस मेले की अपनी धार्मिक मान्यता है. पत्थर लगने से जो शख्स घायल होता है. उसके खून से मां भीमाकाली के मंदिर में तिलक किया जाता है. शुक्रवार को भी दिवाली से अगले दिन धामी में पुरानी परंपराओं के मुताबिक दो घरानों के बीच यह पत्थरबाजी का मेला हुआ.

दोपहर दो बजे के बाद धामी के मुख्य चौक पर कटेडू व जमोगी खानदानों के खूंद (पत्थर मारने वाले) एक तरफ एकत्रित हुए. दोनों ही तरफ से धामी के राजपरिवारों के आने के बाद पत्थर बरसाए गए. इस बार जमोगी खानदान के सुरेंद्र नाम के शख्स को पत्थर लगा और उसके चेहरे से खून निकलने के बाद पत्थरबाजी रोकी गई. इसके बाद सुरेंद्र के खून से माता का तिलक किया गया. इसके बाद मेला संपन्न हो गया.

धामी का पत्थरबाजी मेला (ETV Bharat)

ये थी परंपरा

मान्यता है कि सैकड़ों साल पहले धामी रियासत में स्थित मां भीमाकाली के मंदिर में मानव बलि दी जाती थी. धामी रियासत के राजा राणा की रानी इस मानव बलि के खिलाफ थी. बलि प्रथा पर रोक लगाने के लिए रानी मंदिर के साथ लगते चबूतरे यानी चौरे पर सती हो गई थी. रानी के सती होने के बाद पशु बलि शुरू की गई और बाद में पशु बलि को भी बंद कर दिया गया था जिसके बाद पत्थराबी के इस मेले की शुरुआत हुई. दो खानदानों के लोग दो समूहों में बंट जाते हैं और एक-दूसरे पर पत्थर से हमला करते हैं. इस परंपरा को निभाने के लिए जिस जगह पर पत्थरों के खेल को खेला जाता है उसे चौरा कहते हैं.

किसी शख्स के घायल होने पर खुश होते हैं लोग

हैरानी की बात है कि पत्थर लगने के बाद खून निकलने पर लोग खुश होते हैं. दोनों दल एक-दूसरे पर पत्थर मारते हैं और जैसे ही किसी व्यक्ति को पत्थर लगने के कारण खून निकलता है, उसका खून मां भीमाकाली को अर्पित किया जाता है और मेला पूरा हो जाता है. मेले के दौरान स्थानीय प्रशासन की तरफ से एंबुलेंस व मेडिकल टीम का बंदोबस्त भी होता है.

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Last Updated : 17 minutes ago
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