हल्द्वानी:कुमाऊं मंडल में जगह-जगह रामलीला के साथ-साथ मां दुर्गा के पंडाल भी बनाए गए हैं, जहां विधि-विधान के साथ मां दुर्गा की आराधना की जा रही है. इसी तरह का नजारा लालकुआं स्थित सेंचुरी पेपर मिल में पिछले कई दशकों से देखने को मिलता है. जहां मां दुर्गा की बंगाली विधि-विधान और बंगाली वाद्य यंत्र के थाप पर आराधना की जाती है.
उत्तराखंड में दुर्गा पूजा पर यहां दिखती है बंगाल की संस्कृति की झलक, श्रद्धालुओं ने सुख-समृद्धि की कामना - SHARADIYA NAVRATRI 2024
लालकुआं में दुर्गा पूजा में बंगाल की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. नवरात्रि में मंदिर में लोगों का जनसैलाब उमड़ता है.
By ETV Bharat Uttarakhand Team
Published : Oct 12, 2024, 6:58 AM IST
|Updated : Oct 12, 2024, 8:38 AM IST
हर साल लालकुआं स्थित सेंचुरी पेपर मिल में मां दुर्गा की पूजा करने के लिए बंगाल से कारीगर और पुजारी आते हैं. कई दिनों की कड़ी परिश्रम के बाद पश्चिम बंगाल से आए कारीगर मां दुर्गा की भव्य मूर्ति तैयार करते हैं, जहां पश्चिम बंगाल से आए पुजारी विधि-विधान के साथ बांग्ला रीति रिवाज से मां दुर्गा की आराधना करते हैं.दुर्गा पूजा पंडाल में उत्तराखंड के साथ ही बंगाल की संस्कृति की झलक देखने को मिल रही है. पंडाल में मां दुर्गा की 10 फीट से अधिक ऊंची प्रतिमा बनाई गई है.मूर्ति की विशेषता की बात की जाए तो इसमें मां दुर्गा के साथ मां लक्ष्मी, माता सरस्वती, भगवान कार्तिकेय,भगवान गणेश की मूर्ति बनाई गई है. मां दुर्गा की मूर्ति महिषासुर का वध करते स्थापित की गई है.
यहां दुर्गा पूजा को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. यही नहीं आरती के समय नजारा कुछ अलग ही दिखता है, जहां छोटे-छोटे बच्चे भी बांग्ला वाद्य यंत्र के साथ मां दुर्गा की आराधना करते हैं. वहीं मां दुर्गा का सिंगर भी बांग्ला संस्कृत में किया जाता है. शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना को लेकर बंगाली परिवारों की मान्यता है कि मां भगवती नवरात्रि में मायके आती हैं. ऐसे में उनका भव्य रूप से स्वागत किया जाता है. इस दौरान बंगाली महिलाएं सिंदूर खेला और सिंदूरदान करती हैं. इसको लेकर ये मान्यता है कि पति की आयु बढ़ती है और परिवार में सुख शांति की प्राप्ति होती है. नवमी के मौके पर महाआरती की गई, जहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे और मां दुर्गा का आशीर्वाद लेकर परिवार की खुशहाली की कामना की.
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