नई दिल्ली:दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह एक जनहित याचिका (पीआईएल) को प्रतिनिधित्व के रूप में ले, जिसमें इचथियोसिस से पीड़ित रोगियों की देखभाल की निगरानी के लिए एक समिति के गठन की मांग की गई है. याचिका में और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम) के तहत इचथियोसिस को विकलांगता के रूप में वर्गीकृत करने का भी अनुरोध किया गया है.
न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने मंगलवार को निर्देश जारी करते हुए कहा कि सामाजिक न्याय और रोजगार मंत्रालय वर्तमान याचिका को एक प्रतिनिधित्व के रूप में ले और याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देने और संबंधित विशेषज्ञों, समितियों से इनपुट लेने के बाद यथासंभव शीघ्रता से कानून के अनुसार निर्णय ले. अधिवक्ता अरविंद के माध्यम से सेंटर फॉर इचथियोसिस रिलेटेड मेंबर्स फाउंडेशन द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इचथियोसिस का कोई स्थायी इलाज नहीं हैं. इस स्थिति से प्रभावित व्यक्ति व्यापक भेदभाव का सामना करते हैं, जिससे उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की पीड़ा सहनी पड़ती है. याचिका में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि इचथियोसिस से पीड़ित कई व्यक्तियों के पास पहचान के दस्तावेज नहीं होते हैं, क्योंकि यह बीमारी उनके बायोमेट्रिक विवरण दर्ज करने से रोकती है.
विकलांगता के रूप में मान्यता नहीं मिलने से लाभ से वंचित:यह भी कहा गया है कि इचथियोसिस आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम की धारा 2(एस) में उल्लिखित मानदंडों को पूरा करता है, लेकिन क्योंकि इसे आधिकारिक तौर पर विकलांगता के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, इसलिए प्रभावित लोगों को अधिनियम के तहत विकलांग व्यक्तियों को मिलने वाले लाभों से वंचित किया जाता है.
याचिकाकर्ता ने अधिसूचना का दिया हवाला :याचिकाकर्ता ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की 23 सितंबर 2022 की एक अधिसूचना का हवाला दिया है, जो इचथियोसिस को एक त्वचा रोग के रूप में वर्गीकृत करती है जिसके लिए दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता होती है. इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने 17 फरवरी 2024 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी थी, और 3 मई 2024 को जवाब मिला.