श्रीनगर गढ़वाल:चमोली जनपद के घेस गांव में 23 सालों से जड़ी बूटियों का उत्पादन किया जा रहा है. गांव में 182 ग्रामीण कुटकी का कृषिकरण कर रहे हैं. लगभग 12 से 15 हेक्टेयर भूमि पर कृषिकरण किया जा रहा है. जिससे लगभग 100 कुंतल कुटकी का प्रतिवर्ष विपणन किया जा रहा है. घेस में जड़ी-बूटी का कृषिकरण कर रहें काश्तकार लगभग 4 से 5 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष कमा रहे हैं. घेस को जड़ी-बूटी और कृषिकरण में देश का अग्रणी गांव बनाने के लिए हैप्रेक अहम योगदान है. अब इस कड़ी में डाबर इंडिया का भी जुड़ने जा रहा है. डाबर इंडिया भी घेस के काश्तकारों को जड़ी-बूटी के कृषिकरण का प्रशिक्षण देगी.
चमोली जनपद के जिला मुख्यालय गोपेश्वर से लगभग 145 किलोमीटर दूर, त्रिशूल पर्वत की तलहटी पर बसा घेस गांव जड़ी-बूटी के कृषिकरण कर देश-विदेश में अपनी छाप छोड़ रहा है. घेस गांव को उत्तराखंड के हर्बल गांव के रूप में पहचाना जाता है. भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत उत्तराखंड को हर्बल हब के रूप में तैयार करने की प्रदेश सरकार ने कवायद तेज कर दी है. प्रदेश सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत प्रदेश के सभी जिलों के एक-एक गांव को आदर्श आयुष गांव बनाने जा रही है. जिसमें चमोली जनपद का घेस गांव में शामिल है.
हैप्रेक निदेशक विजयकांत पुरोहित ने बताया घेस गांव को जड़ी-बूटी कृषिकरण में देश का अग्रणी गांव बनाने में गढ़वाल विवि के उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंंद्र (हैप्रेक) का अहम योगदान है. 2001-2002 में हैप्रेक संस्थान के वैज्ञानिकों ने घेस गांव का भ्रमण कर वहां के जलवायु को देखते हुए काश्तकारों को कुटकी की खेती का प्रशिक्षण दिया. हैप्रेक संस्थान ने उस समय घेस गांव के 32 काश्तकारों को चयनित किया था. जिसमें 4 काश्तकारों ने ही जड़ी-बूटी की खेती करने को दिलचस्पी दिखाई. कुटकी की खेती कर बड़ी मात्रा में आमदनी हुई. समय-समय पर हैप्रेक का भी सहयोग मिलने पर गांव के काश्तकारों ने इसे बढ़ाया.