लातेहारःझारखंड के लगभग सभी जिलों में बूढ़े बरसात ने पिछले तीन-चार दिनों तक जमकर कहर बरपाया. लातेहार भी उससे अछूता नहीं रहा, यहां बारिश ने खूब तबाही मचाई. ऐसी मान्यता है कि जब बरसात का मौसम अपनी समाप्ति पर हो तो काफी कम बारिश होती है, लेकिन मान्यताओं के विपरीत इस बार बारिश ने खूब तबाही मचाई है.
दरअसल ऐसी मान्यता है कि यदि कास के फूल खिल जाए तो प्रकृति संकेत दे देती है कि अब बरसात बूढ़ा हो गया है. बारिश की संभावना अब काफी कम है. हमारे धार्मिक ग्रंथो में भी इस बात का जिक्र है. महाकवि तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य श्री रामचरितमानस के किष्किंधा कांड के एक चौपाई में इस बात का वर्णन किया गया है.
'फूले कास सकल महि छाई।
जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई।'- (किष्किंधा कांड, रामचरितमानस)
तुलसीदास जी ने इस चौपाई के माध्यम से प्रभु श्रीराम और भ्राता लक्ष्मण के बीच हो रहे बातचीत का वर्णन किया है. प्रभु श्रीराम लक्ष्मण से कह रहे हैं कि कास के फूल खिल चुके हैं, अब बरसात का अंत हो गया है.
चारों ओर कास के फूल खिले, पर बूढ़े बारिश ने मचाया कहर
हालांकि इस बार बरसात के मौसम में काफी अच्छी बारिश हुई और भादो मास के अंतिम समय में कास के फूल भी चारों ओर खिल चुके हैं. मान्यताओं के अलावे वैज्ञानिक मानकों के अनुसार भी बरसात के मौसम को काफी कमजोर हो जाना चाहिए था. परंतु सभी मान्यताओं को पीछे छोड़ते हुए इस बार बूढ़े हो चुके बरसात ने जमकर कहर बरसाया. कोई ऐसी जगह नहीं बची, जहां बरसात के कारण बर्बादी नहीं हुई हो. बूढ़े बरसात ने जाते-जाते जहां मक्का के फसल को भारी नुकसान पहुंचाया, वहीं कई सड़क और पुल-पुलिया को भी क्षतिग्रस्त कर दिया.
बारिश तो रुकी पर नुकसान की भरपाई करना हुआ कठिन