मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर:छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में सरकार भले ही शहरों जैसी सुविधाएं देने के दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ग्रामीण क्षेत्र की हालत आज भी जस की तस बनी हुई है. लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. एमसीबी जिले के जनपद पंचायत मनेन्द्रगढ़ के तहत आने वाले ग्राम पंचायत पाराडोल गांव का आश्रित गांव हरकटनपारा इसका ज्वलंत उदाहरण है.
आजादी के कई सालों बाद भी नहीं बदले हालात: यह गांव घने जंगलों के बीच बसा हुआ है. मुख्य सड़क करीब पांच किलोमीटर दूर है. गांव के निवासियों में ज्यादातर बैगा जनजाति के लोग हैं. वह बेहद कठिनाइयों में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं. बैगा जनजाति को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र माना जाता है. उनके विकास के लिए विशेष योजनाओं का वादा किया जाता है लेकिन जमीनी हकीकत इस वादे से कोसों दूर है.
खराब सड़कों से जूझते ग्रामीण: हरकाटनपारा की कच्ची और खस्ताहाल सड़कें किसी सजा से कम नहीं हैं. गांव तक पहुंचने के लिए लोग उबड़ खाबड़ और कीचड़ भरे रास्तों से होकर जान जोखिम में डालते हैं. चार पहिया वाहन यहां तक पहुंचना तो दूर पैदल चलना भी दूभर है.
चुनाव के समय नेता आते हैं, वादे करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद सबकुछ भुला दिया जाता है. सरपंच और विधायक दोनों ने सड़क बनाने का वादा किया था, लेकिन आज तक कुछ नहीं बदला. - जगदीश, स्थानीय निवासी
बीमारी के समय चारपाई पर उठाकर सड़क तक ले जाना पड़ता है. सिर्फ वादे हुए हैं, कोई काम नहीं हुआ. मैं भी अपने गांव में पक्की सड़क देखना चाहती हूं. - दासिया, बुजुर्ग महिला