प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक मामले में कहा कि राज्य में डॉक्टर और सीएमओ महिला की जांच करते समय टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया नहीं जानते हैं. हाईकोर्ट ने प्रदेश के प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण को इसके लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी करने का आदेश दिया. इसका पालन सभी सीएमओ और उनके द्वारा गठित बोर्ड करेंगे.
याची नाबालिग पीड़िता और उसके परिवार ने प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश दिया, जिसने अपनी रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में कहा गया कि लगभग 29 सप्ताह का गर्भ है. इस अवस्था में गर्भपात एवं गर्भ को पूर्ण अवधि तक ले जाने से पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा. पीड़िता और उसके परिवार के सदस्य चिकित्सीय गर्भपात चाहते थे, इसलिए कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली.
न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ एवं न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल की खंडपीठ ने कहा कि हमारे सामने आए कई मामलों में याची ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की प्रार्थना की थी. हमने पाया कि जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों सहित मेडिकल कॉलेजों और पीड़िता की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त डॉक्टरों को पीड़िता की जांच करते समय और उसके बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में उचित जानकारी नहीं है.