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यूपी में दिव्यांग बच्चों की पहचान कर रही सरकार, मील का पत्थर साबित हो रही है ये योजना - Sponsorship scheme - SPONSORSHIP SCHEME

महिला एवं बाल विकास विभाग दिसंबर माह तक दिव्यांग बच्चों की पहचान कर योजना को पूरा करेगी.

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (photo credit- Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 6, 2024, 10:50 AM IST

लखनऊ:यूपी सरकार की ओर से शुरू की गई स्पॉन्सरशिप योजना वंचित, बेसहारा और दिव्यांग बच्चों के कल्याण में मील का पत्थर साबित हो रही है. एक अभियान के तहत महिला एवं बाल विकास विभाग एक अभियान के तहत दिसंबर माह तक दिव्यांग बच्चों की पहचान कर योजना की पात्रता पूरी करने वाले बच्चों की आर्थिक सहायता करेगी.

स्पॉन्सरशिप योजना के तहत प्रति बच्चे को मासिक 4,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है. वित्त वर्ष 2024-25 में 20 हजार बच्चों की सहायता के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही योगी सरकार की यह पहल राज्य के वंचित बच्चों के प्रति उसकी समर्पित प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जो समावेशी विकास के व्यापक एजेंडे का हिस्सा है.

यह योजना केंद्र सरकार की मिशन वात्सल्य पहल का हिस्सा है. इसका उद्देश्य ऐसे बच्चों को सहायता प्रदान करना है, जो कठिन परिस्थितियों में अपने विस्तारित परिवारों के साथ रह रहे हैं. प्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में स्पॉन्सरशिप योजना के तहत 11,860 बच्चों को 1,423.20 लाख रुपये की सहायता राशि वितरित की है. इसके माध्यम से सरकार यह सुनिश्चित कर रही है, कि कठिन परिस्थितियों में जी रहे किसी भी बच्चे को सहायता से वंचित न रहना पड़े.

दिव्यांग बच्चों की पहचान कर रही है योगी सरकार:मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर प्रदेश में भर में एक विशेष अभियान के तहत दिव्यांग बच्चों की पहचान की जा रही है. दिसंबर महीने तक चलने वाले इस अभियान के तहत जनपद स्तर पर योजनबद्ध तरीके से दिव्यांग बच्चों को चिन्हित कर सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ दिया जाएगा. इन बच्चों में से जो बच्चे स्पॉन्सरशिप योजना की पात्रता पूर्ण कर रहे हैं. उन्हें तत्काल समयबद्ध तरीके से योजना में शामिल किया जाएगा.

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अनाथ बच्चों के लिए वरदान साबित हो रही है योजना:स्पॉन्सरशिप योजना के तहत दी गई वित्तीय सहायता से इन बच्चों की उचित देखभाल, शिक्षा और अन्य आवश्यक जरूरतों को पूरा किया जा रहा है. योजना की पात्रता मापदंड इस प्रकार तय किए गए हैं, कि सबसे ज्यादा जरूरतमंद बच्चों को इसका लाभ मिल सके. ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों की वार्षिक आय सीमा 72,000 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 96,000 रुपये तय की गई है. ऐसे मामलों में जहां दोनों अभिभावकों या कानूनी संरक्षकों का निधन हो चुका है, आय सीमा की बाध्यता समाप्त कर दी गई है.

इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए अभिभावकों को आवश्यक दस्तावेज, जैसे आधार कार्ड, आय प्रमाण पत्र, उम्र प्रमाण पत्र, अभिभावकों के निधन का प्रमाण पत्र, और बच्चे का शैक्षणिक संस्थान में पंजीकरण प्रमाण, जिला बाल संरक्षण इकाई या जिला प्रोबेशन अधिकारी के कार्यालय में जमा करना होगा.

इस योजना के अंतर्गत प्रति बच्चे को मासिक 4,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है. सहायता राशि का 60% हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा और 40% हिस्सा राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है. उत्तर प्रदेश कैबिनेट द्वारा 17 जुलाई 2022 को स्वीकृत स्पॉन्सरशिप योजना ने अपने दायरे का काफी विस्तार किया है. महिला बाल विकास विभाग द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में इस योजना के तहत 7,018 बच्चों को 910.07 लाख रुपये वितरित किए गए थे. वहीं, वित्तीय वर्ष 2024-25 में अब तक 11,860 बच्चों को 1,423.20 लाख रुपये की सहायता दी जा चुकी है.

वर्ष के अंत तक 20,000 बच्चों तक योजना का लाभ पहुंचाने का लक्ष्य:इस योजना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर बच्चा स्कूल जाए और एक पूर्ण जीवन जी सके. इस वित्तीय वर्ष में लाभार्थियों और फंडिंग, दोनों में ही वृद्धि देखी गई है. इस साल के अंत तक 20,000 बच्चों तक इस योजना का लाभ पहुंचाने का लक्ष्य है.

यह विशेष पहल उन बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए समर्पित है, जो विभिन्न कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. योजना के तहत उन बच्चों को सहायता दी जाती है, जिनकी मां विधवा, तलाकशुदा या परित्यक्त हैं, जिनके माता-पिता गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं, या जो बेघर, अनाथ, विस्थापित परिवारों से हैं. साथ ही, यह योजना उन बच्चों की मदद करती है जो बाल तस्करी, बाल विवाह, बाल श्रम, या भीख मांगने से बचाए गए हैं और प्राकृतिक आपदाओं, विकलांगता या अन्य किसी आपदा के कारण प्रभावित हुए हैं.

आर्थिकरूप से कमजोर व शोषित बच्चों के पुनर्वास में मददगार:योजना का लाभ उन बच्चों को भी दिया जाता है, जिनके माता-पिता जेल में हैं, जो एचआईवी/एड्स से प्रभावित हैं या जिनके अभिभावक उनकी देखभाल करने में शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से असमर्थ हैं. इसके अलावा, सड़क पर रहने वाले बच्चों या उत्पीड़न, शोषण का शिकार हुए बच्चों के पुनर्वास के लिए भी यह योजना मददगार साबित होती है.

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