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लखनऊ में कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स के नीचे शिव मंदिर का दावा; LDA ने शुरू की जांच, बिल्डर को नोटिस - LUCKNOW NEWS

शिकायत के बाद बिल्डर से परिसर के मानचित्र और अन्य जरूरी कागज मांगे गए

लखनऊ में कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स के नीचे शिव मंदिर की जांच.
लखनऊ में कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स के नीचे शिव मंदिर की जांच. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 31, 2024, 5:30 PM IST

लखनऊ :लखनऊ के हुसैनगंज में एक कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स के नीचे शिव मंदिर होने के मामले में लखनऊ विकास प्राधिकरण ने मंगलवार को जांच शुरू कर दी है. राजधानी के हुसैनगंज इलाके में दिलकुश परिसर के नीचे बंद शिव मंदिर होने का दावा किया गया था. इस मामले में स्थानीय लोगों ने तीन दिन लखनऊ विकास प्राधिकरण में शिकायत की थी. शिकायत के बाद जोनल अधिकारी शशि भूषण पाठक के नेतृत्व में इस स्थल का निरीक्षण किया गया. साथ ही बिल्डर को नोटिस दिया गया है. बिल्डर से परिसर के मानचित्र और अन्य जरूरी कागज मांगे गए हैं. संतुष्टिपरक जवाब न मिलने की दशा में अवैध निर्माण संबंधित कार्रवाई की जाएगी.

लखनऊ में कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स के नीचे शिव मंदिर की जांच. (Video Credit; ETV Bharat)

एलडीए से की गई थी शिकायत:संभल और उत्तर प्रदेश के कई जिलों के बाद अब राजधानी में भी कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के नीचे मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. इस संबंध में लखनऊ विकास प्राधिकरण में गुरुवार दोपहर हिंदूवादी संगठन ब्राह्मण संसद की ओर से शिकायत दर्ज कराते हुए परिसर के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई थी. लखनऊ विकास प्राधिकरण ने भी इस संबंध में जांच का आश्वासन दिया था.

पहले भी दर्ज कराई गई थी आपत्ति:मंदिर पक्ष से जुड़े हुए लोगों ने कहा है कि इस प्रकरण में तत्कालीन नगर मजिस्ट्रेट लखनऊ से शिकायत की गई थी. उन्होंने मामले का संज्ञान लेते हुए 14 जनवरी 1993 को कैसरबाग और चौक सीओ को पत्र लिखकर निर्माण कार्य पर रोक लगाने का आदेश दिया था. साथ ही मजिस्ट्रेट ने मंदिर परिसर में स्थित बरगद के पेड़, जो लगभग ढाई सौ साल पुराना था, उसको काटने से रोकने का भी आदेश दिया था, लेकिन निर्माण कार्य नहीं रुका. इसके बाद पंडित रामकृष्ण दीक्षित ने एक समिति रजिस्टर कराई, जिसका नाम मीता दास गजराज सिंह मंदिर एवं भक्ति भावना जनहित एवं समिति था.

हिंदू पक्ष का यह है दावा:इस मामले में हिंदू पक्ष द्वारा दावा किया गया है कि यह मंदिर 1885 का है, जो स्वर्गीय गजराज सिंह ने अपनी कमाई से अपनी जमीन पर बनवाया था. 1906 में रजिस्टर्ड वसीयत कर उस जमीन पर एक ठाकुरद्वारा और शिवालय का निर्माण कराया. 1918 में पूजा अर्चना के लिए द्वारका प्रसाद दीक्षित को पुजारी के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गई और कहा गया कि उनकी पुश्त दर पुश्त यहां पूजा पाठ करती रहेंगी. द्वारका प्रसाद के बाद लालता प्रसाद, उमाशंकर दीक्षित, रामकृष्ण दीक्षित और फिर यज्ञ मनी दीक्षित के पास यहां पूजा पाठ का अधिकार था. मंदिर पक्ष का दावा है कि रामकृष्ण दीक्षित जब इस मंदिर में पूजा-पाठ कर रहे थे तब 1993-94 में एक दल से जुड़े हुए नेता डॉक्टर शाहिद ने इस पर कब्जा कर लिया था.

राधा-रानी का मंदिर और शिवालय:मंदिर पक्ष का दावा है कि इस परिसर में एक राधा रानी का मंदिर, एक शिवालय, एक बरगद का पेड़ और कुछ पुरानी दुकानें थीं, जिससे मंदिर का खर्च चलता था, पर उसे धीरे-धीरे हटा दिया गया. मंदिर विधानसभा मार्ग स्थित राणा प्रताप चौराहे के करीब है.

शिकायत के बाद शुरू हुई कार्रवाई:ब्राह्मण संसद के अध्यक्ष अमरनाथ मिश्रा ने बताया कि अब यहां हिंदुओं को पूजा-पाठ करने से रोका जा रहा है. यह कांप्लेक्स पूरी तरह से अवैध है. जिसकी शिकायत हमने लखनऊ विकास प्राधिकरण में की है. लखनऊ विकास प्राधिकरण से हमको आश्वासन मिला है कि वह इस पूरे प्रकरण की जांच कर जरूरी कार्यवाही करेंगे. लखनऊ विकास प्राधिकरण के सचिव विवेक श्रीवास्तव से इन लोगों ने मुलाकात की. सचिव विवेक श्रीवास्तव ने सभी को आश्वासन दिया कि इस संबंध में जो भी विधिक होगा, उस हिसाब से लखनऊ विकास प्राधिकरण आगे कार्यवाही करेगा और पूरे प्रकरण की जांच कराएगा.

सचिव के आदेश के बाद जोनल अधिकारी शशिभूषण पाठक ने मंगलवार को स्थल की जांच की. बताया कि कई बिंदुओं पर जांच की जा रही है. सबसे पहली बात तो यह है कि यह मंदिर कितना पुराना है. इसके अलावा इस परिसर में अवैध निर्माण है या नहीं, इस संबंध में मानचित्र मांगा गया है. इसके साथ ही मालिकाना हक की भी जांच की जाएगी. उसके बाद में पूरी रिपोर्ट सामने आएगी.

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